अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines
नई दिल्ली : आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार में स्वतंत्र सोशल ऑडिट निदेशालय मौजूद है, इस पर केन्द्र सरकार करोड़ों रूपये खर्च भी कर रही है, बावजूद इसके इस निदेशालय से सोशल ऑडिट नहीं कराया जा रहा है.
इस सच का पर्दाफ़ाश बिहार के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता उज्जवल कुमार को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत ग्रामीण विकास विभाग से मिले अहम दस्तावेज़ों से हुआ है.
उज्जवल कुमार ने अपने आरटीआई में ये पूछा था कि ‘बिहार में सोशल ऑडिट निदेशालय बना है, उसमें बिहार सरकार और केन्द्र सरकार का कितना रूपया खर्च हुआ है?’
इसके जवाब में ग्रामीण विकास विभाग में सामाजिक अंकेक्षण सोसाईटी, बिहार के उप-सचिव सह सलाहकार कनक बाला ने बताया है कि —‘केन्द्र सरकार का एक करोड़ सात लाख चार हज़ार एक सौ पचास रूपये राशि खर्च हुआ है. राज्य सरकार से कोई राशि प्राप्त नहीं हुआ है.’
उज्जल कुमार ने यह भी पूछा कि, ‘इस निदेशालय के माध्यम साल 2017-18 में कोई सामाजिक अंकेक्षण किया गया है?’ इसके जवाब में निदेशालय का कहना है —‘साल 2017-18 में कोई सामाजिक अंकेक्षण नहीं किया गया है.’
ग़ौरतलब रहे कि सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी का गठन 2015 में हुआ था. सरकार इस सोसाइटी द्वारा किसी भी विभाग से जुड़ी किसी भी योजना का सामाजिक अंकेक्षण करा सकती है. फिलहाल यह ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण कर रही है. इस सोसाइटी की एग्जीक्यूटिव कमिटी में 15 विभागों के प्रधान सचिव हैं.
ध्यान देने योग्य बात ये है कि समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव भी इस निदेशालय के एक सदस्य हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिहार सरकार ने अल्पावास गृह के सामाजिक अंकेक्षण जैसा बेहद ज़रूरी काम निदेशालय के मार्फ़त 2015 के बाद अब तक क्यूं नहीं कराया?
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) से जुड़े उज्जव कुमार का कहना है कि, नीतीश सरकार ने पिछले तीन सालों से सोशल ऑडिट निदेशालय को निष्क्रिय बना रखा है. आख़िर अल्पावास गृह का ऑडिट इससे क्यों नहीं कराया गया.
उनका ये भी कहना है कि, समय-समय पर ऑडिट न होने की स्थिति में ही ऐसे दरिंदे पनपते हैं. यदि समय से सोशल ऑडिट होता तो सैकड़ों लड़कियांशारीरिक और मानसिक यातना का शिकार न होतीं.
इस आरटीआई से यह बात भी सामने आई है कि बिहार सरकार ने इस निदेशालय को अब तक एक रुपया भी नहीं दिया है और न ही पूर्णकालिक निदेशक का विधिवत चयन किया गया है.
इस उज्जवल कुमार का कहना है कि, मतलब साफ़ है कि बिहार सरकार इस निदेशलय को निष्क्रिय ही रखना चाहती है और तमाम सरकारी योजनाओं में जारी भ्रष्टाचार पर पर्दा डाले रहना चाहती है.
