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टांडा में आधी रात को दरवाजे तोड़कर बुजुर्गों तक को उठा ले गई पुलिस

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 18, 2018 5 Views
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर ज़िला के क़स्बा टांडा में कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे की आवाज़ को लेकर हुए तनाव के बाद पुलिस का एक तरफ़ा ज़ुल्म खुलकर सामने आया है. यहां आधी रात को पुलिस लोगों के घरों के दरवाज़े तोड़कर बुजुर्गों तक को उठा ले जाने की कहानी सामने आ रही है.

ये कहानी लखनऊ के सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच के टांडा दौरे के बाद आई है.

रिहाई मंच ने 13 अगस्त के विवाद के बाद टांडा के हयातगंज का दौरा करते हुए गिरफ्तार लोगों के परिजनों से मुलाक़ात की. इस मामले में अब तक 14 गिरफ्तारियां हुई हैं.

चौराहे पर स्थित आज़ाद टेलर की दुकान में जहां ताला बंद था तो वहीं इस विवाद के दौरान फ़ैयाज़ की लूटी गई पान की दुकान पर कोई नहीं मिला. हालांकि फ़ैयाज़ की दुकान की पीछे ही उनके भतीजे के किराने की दुकान पर मुलाक़ात की गई.

अकबर अली बताते हैं कि उस रात उनकी दुकान के पास ही वाक़्या जब हो रहा था तो उनके भाई अबरार वहां से तुरंत चले गए थे. बाद में जब मालूम चला कि दुकानें लूटी जा रही हैं तो वे दुकान देखने के लिए आए तो पुलिस ने उन्हें उठा लिया.

वे कहते हैं कि इस मोड़ पर उनकी किराना की दुकान है, वो मार-झगड़ा क्यों करेंगे. उनके चाचा फ़ैयाज़ की पान की दुकान लूटने की ख़बर के बाद अबरार को लगा कि कहीं उनकी दुकान भी तो नहीं लूट ली गई, तभी वो आएं.

घर के दो-दो दरवाज़े तोड़कर उस दिन पुलिस शकील और जमील को उठा ले गई. यह पूछने पर कि कैसे उठाया? ‘हम दरवाज़ा बनवा लेंगे आप लोग जाइए’ ये कहते हुए 75 वर्षीय तसरीफुन निसा अपने घर से जाने को कहती हैं.

प्रतिनिधिमंडल जब कहता है कि वो पुलिस नहीं है तो उन्हें थोड़ा राहत मिलती है. उन्हें लगता है कि कहीं फिर कुछ न हो जाए. यही डर मोहल्ले के लोगों को भी है.

शाहिदा बताती हैं कि उनके भाई शकील और जमील को उस दिन पुलिस घर का दरवाज़ा तोड़कर उठा ले गई. घर का पहले दरवाज़े की मरम्मत करवा ली है पर अन्दर का दरवाज़ा अब भी उसी हालत में पड़ा है.

ताजिमुन निसा बताती हैं कि उस रात डीजे की तेज़ आवाज़ से वे लोग परेशान थे और घबराहट के मारे चक्कर आकर वो लेट गईं. उन्हें नहीं मालूम था कि देर रात उनका दरवाज़ा तोड़ने पुलिस आ जाएगी.

ताजिमुन बताती हैं कि रात दो बजे के क़रीब पुलिस वाले दरवाज़ा पीटने लगे और कुंडे से मारकर तोड़ने लगे. वे शीबू का नाम ले रहे थे. डरते हुए दरवाज़ा खोला तो पुलिस-पीएसी वाले घर में घुस गए. हम लोग कह रहे थे कि घर में महिलाएं है पर उन्होंने एक न सुनी. मेरे पति मुन्नू मास्टर और बेटे अरशद को पूछताछ के नाम पर उठा ले गई. छापेमारी के दौरान महिला पुलिस नहीं थी. इस बीच लड़की की तबीयत ख़राब हो गई थी. हम लोग डर के मारे कांप रहे थे.

पूर्व सभासद डा. उमालिया बताती हैं कि उस रात दो बजे के क़रीब पुलिस दरवाज़ा पीटने लगी और मेरे शौहर जमाल कामिल का नाम लेकर चिल्ला रही थी. हमारे घर में चार परिवार हैं और बहुत सी महिलाएं हैं. हमने कहा कि वो नहीं हैं.

जमाल कामिल मौजूदा सभासद भी हैं. पुलिस घर में घुसकर दोनों देवरों जमाल अख्तर और जमाल अजमल को उठा ले गई.

वे बताती हैं कि चार तल्ले के मकान में घुसकर तलाशी की और उनके देवर जमाल अजमल को बंडी-लुंगी में ही उठा ले गई. कहा कि बस पूछताछ के बाद छोड़ देंगे पर उनको जेल भेज दिया. मैंने वारंट के बारे में पूछा तो वे कुछ नहीं बताए. उन्होंने बताया कि हमने जेल में मुलाक़ात की है.

एक मकान की संकरी सी गली में पिछले हिस्से में अपनी छोटी सी बेटी के साथ बैठी अफ़साना बताती हैं कि, उस रात भाभी और अब्बू ही घर पर थे. वसीम का नाम लेकर पुलिस दरवाज़ा पीटने लगी. ऐसा लगा कि दरवाज़ा तोड़ न दें तो दरवाज़ा खोल दिया गया. पुलिस मेरे बूढ़े अब्बू को उठाकर ले गई. उनको तरस भी नहीं आया कि इतना बुजुर्ग आदमी क्या कोई बवाल करेगा? घर के हालात का ज़िक्र करते हुए कहती हैं कि अब बहुत मुश्किल हो गई है. लगातार डर बना रहता है और उस रात का मंज़र आंखों के सामने छाया रहता है.

मोहल्ले के 74 वर्षीय बुजुर्ग मोहम्मद इसराइल कहते हैं कि, कांवड़ियों का रास्ता पश्चिम से पूरब की तरफ़ था पर उन लोगों ने उत्तर और दक्षिण की दिशा में डीजे लगाकर कंपटीशन शुरु कर दिया जो विवाद की वजह बना.

वे पूछते हैं कि आख़िर पुलिस कहां थी. पुलिस का काम बेगुनाहों को उठाने का है या फिर तनाव न पैदा होने देने का है. मैं यह बात एसपी-डीएम सभी के सामने कहने को तैयार हूं.

प्रतिनिधिमंडल को स्थानीय लोगों ने बताया कि टांडा पिछले कई सालों से लगातार सांप्रदायिक तत्वों के निशाने पर बना हुआ है. ख़ासतौर पर 2013 में राम बाबू हत्याकांड के बाद लगातार हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठनों की गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है.

यहां के लोगों का कहना  है कि, रामबाबू की पत्नी मौजूदा भाजपा विधायक संजू देवी ऐसी घटनाओं में सक्रिय रहती हैं. इस मामले में उठाए गए दानिश इरफ़ान को पहले भी भाजपा विधायक संजू देवी के पति की हत्या के बाद हुई एक हत्या के मामले में उठाकर जेल भेजा गया था. यह पूरा मामूला राजनीतिक है, वरना जो कांवड़ यात्रा यहां से निकली उस पर कोई विवाद नहीं हुआ तो आख़िर में उसकी समाप्ति पर हुआ विवाद साफ़ तौर पर साज़िश की ओर इशारा करता है. दरअसल डीजे का कंपटीशन पूर्वनियोजित सांप्रदायिक साजिश का हिस्सा थी और यही तनाव की मुख्य वजह बना. इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए जिससे भविष्य में सांप्रदायिक तत्व इस तरह की घटनाएं अंजाम न दे पाएं.

गौरतलब है कि इस मामले में धर्मेंन्द्र त्रिपाठी द्वारा कांवड़ियां पक्ष से एक एफ़आईआर में 21 लोगों को नामज़द और 50-60 अज्ञात के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज कराई गई है. वहीं दूसरी तरफ़ डीजे की तेज़ आवाज़ या उसके बाद हुई लूटपाट के संदर्भ में कोई एफ़आईआर नहीं दर्ज किया गया है.

रिहाई मंच का सवाल है कि जब पुलिस अपने बयानों में यह साफ़ कर चुकी है कि एक लड़की की तबीयत ख़राब थी, जहां पर तेज़ आवाज़ के चलते यह तनाव हुआ है और डीआईजी का भी यही बयान है, तो फिर पुलिस ने खुद इसकी एफ़आईआर क्यों नहीं दर्ज की. जब दो पक्षों में तनाव हुआ है तो एक पर ही एफ़आईआर क्यों?

रिहाई मंच का कहना है कि, अगर दूसरा पक्ष एफ़आईआर नहीं करता है तो यह ज़िम्मेदारी पुलिस की बनती है, क्योंकि उसे शांतिपूर्वक कांवड़ यात्रा निकलवाने का निर्देश है. पिछले दिनों कावड़ियों द्वाराशांति व्यवस्था बाधित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. अगर ऐसे में कोई नया आदेश है कि कावड़ियों पर एफ़आईआर नहीं होगा तो पुलिस को उसे सार्वजनिक करना चाहिए.

मंच का कहना है कि, पीड़ितों की ओर से एफ़आईआर न होने की मुख्य वजह डर व दहशत है. लोगों का प्रशासन पर यक़ीन नहीं है. उनका कहना है कि जूलूस के साथ पुलिस का होना ज़रुरी है और अगर कोई तनाव बन रहा है तो पुलिस उसके लिए ज़िम्मेदार है. पुलिस ने तनाव रोकने का प्रयास नहीं किया, उल्टे आधी रात घरों में घुसकर बूढ़े-बुजुर्गों तक को उठा ले गई. उससे इंसाफ़ की क्या उम्मीद की जाए.

रिहाई मंच के इस प्रतिनिधिमंडल में मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, एडवोकेट यावर अब्बास, अबू अशरफ़, फ़ारुक़, आफ़ाक, नूर आलम, यू.एस. मोहम्मद और राजीव यादव शामिल थे.

इससे संबंधित एक और कहानी — ‘अमर थोड़ा जयकारा लगवाओ बोलबम…’ 

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