By Md Umar Ashraf
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बिहार राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कन्हैया कुमार बेगुसराय लोकसभा सीट से ही चुनाव लड़ेंगे.
उनका यह भी कहना है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कन्हैया की उम्मीदवारी का समर्थन किया है. हालांकि कांग्रेस के किसी नेता की ओर से इस पर कोई बयान नहीं आया है. वहीं राजद के नेताओं का कहना है कि महागठबंधन में अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है. मुमकिन है कि राजद बेगुसराय से अपना उम्मीदवार भी खड़ा करे.
सोशल मीडिया पर इसे लेकर तरह-तरह की बातें लिखी जा रही हैं. ये भी कहा जा रहा है कि कन्हैया के चुनाव लड़ने की इस घोषणा से जो समर्थक बहुत खुश हैं, शायद उन्हें बेगुसराय के राजनैतिक परिदृश्य का अंदाज़ा नहीं है और न ही पिछले चुनाव का उन्होंने आंकलन किया है.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के भोला सिंह ने यहां से अपनी जीत दर्ज की. उन्होंने 4,28,227 वोट हासिल किए. वहीं राजद की ओर से तनवीर हसन 3,69,892 वोट हासिल करके दूसरे स्थान पर रहें. तीसरे स्थान पर भाकपा के राजेन्द्र प्रसाद सिंह थे. इन्होंने 1,92,639 वोट हासिल किए थे. इन्हें जदयू का समर्थन भी हासिल था.
बेगुसराय के स्थानीय लोग बताते हैं कि हार के बाद भी तनवीर हसन क्षेत्र में बने हुए हैं और उम्मीद थी कि इस बार भाजपा चाहे जिस प्रत्याशी को भी मैदान में उतार दे, ये आसानी से पटखनी दे देंगे. लेकिन अचानक कन्हैया कुमार के नाम के ऐलान के बाद लोग अचंभे में हैं. अगर कन्हैया कुमार को महागठबंधन समर्थन करती है तो यक़ीनन कन्हैया कुमार की राजनीति का आग़ाज़ एक मुस्लिम प्रतिनिधित्व को ख़त्म करके होने जा रहा है.
अब ऐसे में सवाल है कि क्या हर बार मुस्लिम नेतृत्व ही क़ुर्बानी देगा? समानता की बात करने वाली वामपंथी पार्टियां क्या ये बात समझने की कोशिश करेंगी कि एक वो सीट जहां से इस बार लगभग तय है कि एक मुस्लिम चेहरा संसद पहुंचेगा, वहीं से अपने भावी नेता की राजनीति की शुरुआत करवाएगी? आगे बेगुसराय की राजनीति में अभी क्या-क्या होगा, वहां कौन अपना उम्मीदवार उतारेगा और कौन नहीं? ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तो तय है कि अगर कन्हैया कुमार को महागठबंधन समर्थन करती है तो वाम राजनीति के ‘उभरते सितारे’ का राजनीति में आगमन मुस्लिम नुमाइंदगी के बलिदान पर हो रहा है. यानी ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कन्हैया कुमार के राजनैतिक सफ़र का आगाज़ एक मुस्लिम उम्मीदवार की क़ुर्बानी से शुरू होगा.
यहां ये भी बता दें कि जिन लोगों को ये लग रहा है कि कन्हैया कुमार ही मोदी के ख़िलाफ़ अकेले योद्धा हैं, तो वो ये भी जान लें कि जिस समय राजीव गांधी की ऐतिहासिक बहुमत वाली सरकार आई थी, उसको हिलाने व गिराने और विपक्ष की सरकार बनवाने में तनवीर हसन की बड़ी भूमिका थी. यहां ये बात भी ग़ौरतलब रहे कि बेगुसराय के वर्तमान भाजपा सांसद कभी भाकपा के सक्रिय नेता थे. 1972 में भाकपा के टिकट पर विधायक रहे, लेकिन 2014 में अपने विचारधारा को लात मारते हुए भाजपा में शामिल हुए और स्थानीय लोगों के आरोप के मुताबिक़ भाकपा प्रत्याशी के बदौलत ही ये जीत दर्ज की.
(ये लेखक के अपने विचार हैं.)