BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकाउंटर की दसवीं बरसी पर ‘मानवाधिकार, लोकतांत्रिक अधिकार, सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वालों पर बढ़ते हमलों के ख़िलाफ़’ आज यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच द्वारा आयोजित सम्मेलन में ‘सदमा, साजिश और सियासत: बटला हाउस के दस साल’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की गई.
इस रिपोर्ट में बटला हाउस फ़र्ज़ी मुठभेड़ के बाद विभिन्न राज्यों और जनपदों से गिरफ्तार नौजवानों के मुक़दमों की ताज़ा स्थिति, घरेलू हालात, उन्हें अदालती दांव-पेंच में उलझा कर क़ैदी बनाए रखने की साज़िशों पर विस्तार से चर्चा की गई है. गिरफ्तार और लापता नौजवानों से सम्बंधित व्यक्तिगत जानकारी भी रिपोर्ट का हिस्सा है.
‘सदमा, साजिश और सियासत : बाटला हाउस के दस साल’ रिपोर्ट बताती है कि जहां तक मुक़दमों की स्थिति का सवाल है तो दिल्ली में अभी लगभग आधे ही गवाह गुज़रे हैं. जयपुर में तेज़ी से मुक़दमें की कार्रवाई आगे बढ़ी है और एक साल में फ़ैसला आने की उम्मीद की जा सकती है. अहमदाबाद में जहां सबसे अधिक 3500 के क़रीब गवाह हैं. अभी 7 अगस्त को एक आरोपी अतीकुर्रहमान की ज़मानत अर्ज़ी पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की खण्डपीठ से अर्जीगुज़ार ने कहा था कि उस पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत हैं और मुक़दमों की सुनवाई में क़रीब 1100-1200 गवाह ही गुज़रे हैं. इस हिसाब से मुक़दमा वर्षों तक चलता रहेगा, इस तरह उसे क़ैद में रखना अन्यायपूर्ण होगा इसलिए उसे ज़मानत दी जाए. सरकार की तरफ़ से पेश असिस्टेंट साॅलिसिस्टर जनरल ने जवाब में माननीय न्यायालय को बताया कि अहमदाबाद धमाका केस का फ़ैसला चार महीने में आ सकता है. उसके बाद अभियोजन ने गैर-ज़रूरी गवाहों को पेश न करने का फैसला किया.
रिपोर्ट में आज की परिस्थितियों में अदालती मामलों में सत्ता संरक्षण प्राप्त तत्वों की कारस्तानी और इंसाफ ही राह में रुकावटों के उल्लेख के साथ उत्तर प्रदेश कचहरी धमाकों में हूजी के साथ इंडियन मुजाहिदीन को जोड़कर उसे दोनों संगठनों की संयुक्त कार्रवाई बताए जाने पर उठे सवालों पर भी चर्चा की गई है.