अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines
नवम्बर 2015 में पटना के आशियाना दीघा रोड स्थित मजिस्ट्रेट कॉलोनी में फ़ैयाज़ भागलपुरी साहब से इस वादे के साथ विदा हुआ था कि अगली मुलाक़ात जल्द ही होगी.
मुझे याद है कि उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि अगली बार पूरा वक़्त लेकर आईए और मेरे साथ दो-तीन दिन गुज़ारिए. आपको मैं खुद ही खाना बनाकर खिलाउंगा. आप अपने सारे सवालों के साथ तैयार रहिएगा. मेरे पास बिहार की सियासत को लेकर बहुत मसाला है…
लेकिन ये किसे पता था कि ये मुलाक़ात हमारी आख़िरी मुलाक़ात थी. हम अब दुबारा कभी नहीं मिल सकेंगे. क्योंकि फ़ैयाज़ भागलपुरी साहब हम सबके बीच नहीं रहे. भागलपुर के चमेलीचक क़ब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया है.
सियासत से ताल्लुक़ रखने वाले आप पहले शख़्स थे, जो सियासत की तमाम बातों को बड़ी साफ़गोई और ईमानदारी के साथ रखते थे. तमाम बड़े नेताओं की अंदर की बातों को बिला झिझक साझा कर लेते थे. आप ऑल इंडिया मुस्लिम यूथ मजलिस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
फ़ैयाज़ भागलपुरी साहब की कई सारी कहानियां हैं. आप 1990 में जनता दल के टिकट पर बिहार के गोड्डा ज़िले के महागामा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के अवध बिहारी सिंह को हराकर चुनाव जीते जो अब झारखंड में है. बिहार सरकार के संसदीय कार्य, वित्त वाणिज्य कर एवं राष्ट्रीय बचत विभाग के राज्यमंत्री बने.
आप देश के पहले ऐसे विधायक थे, जिन्होंने विधानसभा में विपक्ष के नेता जगन्नाथ मिश्र को साड़ी पहनाई थी. वहीं हिदायतुल्लाह खान को चूड़ियां दी थी. ऐसा उन्होंने बाबरी मस्जिद की शहादत के ख़िलाफ़ विरोध में किया था. साथ ही उन्होंने ये भी धमकी दी थी कि अगर पार्टी ने उनकी धार्मिक भावनाओं की अनदेखी जारी रखी तो राज्य में सार्वजनिक कार्यक्रम कर मस्जिद की वीडियो दिखाकर पार्टी की पोल खोलेंगे. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर मुसलमानों के धार्मिक स्थलों से क़ब्ज़ा नहीं हटाया गया तो वो सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी करेंगे.
1988 में तौहीन-ए-रसालत के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के मामले में जेल भी गए. 1984 में आपने भागलपुर से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव भी लड़ा, 110,824 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहें. 1985 में भी भागलपुर से विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरें और मामूली वोटों के अंतर से चुनाव हार गए. लेकिन 1995 में कांग्रेस के अवध बिहारी सिंह से विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ 495 वोटों से हारे. तब से उन्होंने ये फ़ैसला किया कि अब चुनाव नहीं लड़ेंगे. इस बारे में फ़ैयाज़ भागलपुरी साहब ने बताया था कि उन्हें ये चुनाव पार्टी के इशारे पर ही हरवाया गया था, क्योंकि आप अपनी ही पार्टी के लिए सिर दर्द बन चुके थे.
किसी ज़माने में आप लालू यादव के सबसे क़रीबी माने जाते रहे, लेकिन आख़िरी वक़्त में आपने लालू यादव से भी दूरियां बनाकर रखीं. बल्कि ये तल्ख़ी 1995 विधानसभा चुनाव के बाद से ही आ गई थी. 2013 में नाराज़गी इतनी बढ़ी कि आपने नीतिश कुमार के साथ जाना पसंद किया और जदयू में बतौर उपाध्यक्ष शामिल हुए.
आप सियासत में हमेशा अपने ज़िन्दादिली के लिए जाने जाते रहे. शायद यही वजह रही कि अधिकतर सियासतदां आपसे दूरी ही बनाकर रखते थे और आप अपने ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हों को गुमनामी में जी रहे थे.
ये महज़ इत्तेफ़ाक ही है कि आपकी पैदाईश 1946 में 10 अक्टूबर को हुई थी और 10 अक्टूबर को ही आप इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए. आपके कैंसर का इलाज दिल्ली के जीटीबी हॉस्पीटल में चल रहा था. यहीं आपने दिन के तीन बजे अपनी आख़िरी सांस ली. आप अपने पीछे एक बेटा और तीन बेटियां छोड़ गए हैं.
बता दें कि आपके पार्थिव शरीर को गुरूवार की सुबह पटना मजिस्ट्रेट कॉलोनी लाया गया. फिर विधानसभा व गवर्नर हाउस में राजकीय सम्मान के साथ ऋद्धांजलि दी गई. उसके बाद भागलपुर ले जाया गया, जहां आपको सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
आज बहुत ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है ये सोचकर कि काश आज से पहले मैं आपसे मिलने आ गया होता… काश! बिहार की सियासत के दिलचस्प क़िस्से आपकी ज़बानी सुनता… ये अफ़सोस और तकलीफ़ शायद वक़्त के साथ कम हो भी जाए, लेकिन इस बात का मलाल मुझे पूरी ज़िन्दगी रहेगा कि मैं बिहार की सियासत के कई अहम राज़ से महरूम रह गया…