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प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल को जबरिया एम्स ऋषिकेश क्यों ले जाया गया?

By Abhishek Upadhyay

मैंने जल पुरुष राजिंदर सिंह को बुरी तरह बिलखते हुए देखा. उन्हें गंगा पुत्र प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल की पार्थिव देह के अंतिम दर्शन तक नहीं करने दिए जा रहे थे.

मैग्ससे पुरुस्कार विजेता राजिंदर सिंह जो देश-विदेश में पानी वाले बाबा के नाम से विख्यात हैं, एम्स ऋषिकेश के बाहर तैनात उत्तराखंड पुलिस के अफ़सरों से गुहार कर रहे थे. रो रहे थे कि उन्हें अपने संघर्षों के साथी रहे जी.डी. अग्रवाल के अंतिम दर्शन तो कर लेने दो. पर पुलिस अड़ी हुई थी.

मैंने वहां तैनात सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी से बड़ी विनम्रता से कहा कि सरकार आप कर क्या रहे हो. ये पानी वाले बाबा हैं. देश की कई सूख चुकी नदियों को फिर से ज़िन्दा कर चुके हैं. प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल और इन्होंने गंगा की ख़ातिर एक लम्बी उम्र साथ-साथ संघर्ष में बिताई है. इन्हें क्यों रुला रहे हो? दर्शन करने दो इन्हें…

पर वे नहीं माने. मजबूरन मैंने अपने कैमरामैन रोहित को इशारा किया. उसने कैमरा ऑन किया और हमने थोड़ी ही देर में जल-पुरुष राजिंदर सिंह और सीओ साहब को आमने-सामने कर दिया. माइक जैसे ही जल-पुरुष से होता हुआ सीओ साहब तक पहुंचा वे हड़बड़ा गए.

“कैमरा हटाइये. मैं क्या कर सकता हूँ. एम्स ने मना किया है?” वे बड़बड़ा रहे थे. गंगा पुत्र प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल के दूसरे साथी भी रोने लगे थे. अचानक से हंगामा बढ़ गया. इस बीच शोर बढ़ता देखकर एम्स के कुछ अधिकारी भागते हुए बाहर आए और पुलिस अधिकारी के कान में कुछ कहा. आनन-फ़ानन में तय हो गया कि जल-पुरुष राजिंदर सिंह और उनके साथ मौजूद सभी लोगों को गंगा पुत्र प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल की पार्थिव देह के दर्शन करने दिए जाएंगे.

इधर वे लोग दर्शनों के लिए भीतर गए उधर सीओ साहब ने मुझे पकड़ लिया. बोले —“आपको मुझ पर कैमरा नहीं लगाना था पर आपने मुझसे सच कहलवा लिया. हम क्या करते जब एम्स ऋषिकेश, जिसे प्रो. अग्रवाल ने अपनी बॉडी डोनेट की है, वही दर्शन की इजाज़त नहीं दे रहा था. पानी वाले बाबा को मैं भी जानता हूँ. भला मैं उन्हें क्यों रोकूंगा.”

वे बड़े प्रेम से गले मिले. नम्बर एक्सचेंज किया और फिर चले गए. इस बीच पानी वाले बाबा दर्शन कर बाहर आ चुके थे. उनकी आंखों में स्नेह भरा आशीर्वाद था. बड़े प्रेम से सर पर हाथ रखा. नम आंखों से बोले कि कल शाम से ही दर्शन के लिए लड़ रहा हूँ. भीतर जाने नहीं दे रहे थे ये लोग. मैंने हाथ जोड़कर प्रणाम किया. फिर वे चले गए.

मैं हतप्रभ था. गंगा की अविरलता के लिए लगातार 111 दिन का अनशन कर अपने प्राण त्याग देने वाले गंगा पुत्र प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल की मौत के बाद भी प्रशासन इस क़दर निर्मम था!

प्रो. अग्रवाल आईआईटी कानपुर में सिविल और एंवायरमेंटल इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर रहे थे. जीवन भर गंगा की ख़ातिर काम किया. रिटायरमेंट के बाद गंगा सेवा के लिए सन्यास ले लिया. प्रो. जी.डी. अग्रवाल से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द हो गए.

साल 2008 से साल 2018 तक गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए अनशन कर शरीर गला डाला था. नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उनकी गंगा साधना के समर्थन में ट्वीट करते थे और उस समय की केन्द्र सरकार से तत्काल उनकी बात सुनने की गुहार करते थे. मगर उनके प्रधानमंत्री होते हुए ये गंगा पुत्र भूखा प्यासा मर गया, किसी ने भी न सुनी. मोदी जी का इस बार भी ट्वीट आया. पर उनकी मौत के बाद. उनकी सेवा साधना को याद करते हुए…

वही जानी-पहचानी लाइने जो किसी भी विभूति की मौत के बाद थोड़ा अदल बदलकर ट्विटर पर चिपका दी जाएं. मानो एक गंगा पुत्र की मौत नहीं, प्रधानमंत्री कार्यालय का कोई रूटीन कामकाज हो.

मैं अब हरिद्वार के कनखल में स्थित मातृ सदन पहुंच चुका था. ये वही आश्रम था जहां रहते हुए गंगा पुत्र प्रो. जी.डी. अग्रवाल पिछले 111 दिन से गंगा की ख़ातिर अनशन पर थे. आश्रम के एक कोने में उनकी आसनी ज्यों की त्यों रखी हुई थी. अब उस पर वे नहीं थे. उनकी मालाओं से ढ़की तस्वीर रखी थी. बग़ल की रैक में गंगा और पर्यावरण से जुड़ी सैकड़ों किताबें सोई पड़ी थीं. उन किताबों के साथ सुबह शाम जागने वाला अब चिर निंद्रा में सो चुका था.

वहीं मुझे बह्मचारी आत्मबोधानन्द मिले. वे स्वयं आईआईटी कानपुर से पढ़कर निकले थे. अपने गुरु प्रो. अग्रवाल की तरह उन्होंने भी अपना जीवन गंगा की साधना में समर्पित कर दिया था. प्रो अग्रवाल के तप और उनकी दिनचर्या को याद करते हुए गंगा उनकी आंखों से बह रही थी.

इस आश्रम के प्रमुख स्वामी संत शिवानन्द कभी कोलकाता में रसायन शास्त्र यानि केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर हुआ करते थे. गंगा की ख़ातिर ये भी सब कुछ छोड़कर साधु हो गए थे. ये पढ़े-लिखे, इंजीनियरिंग, मेडिकल में निष्णात साधुओं की दुनिया थी जिनकी ज़िन्दगी का इकलौता मक़सद गंगा की निर्मलता और अविरलता की लड़ाई थी.

उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके सन्त शिवानंद प्रो. जी.डी. अग्रवाल के स्वास्थ्य के तमाम बायोलॉजिकल पैरामीटर और उनके मेडिकल साइंस में तय स्टैंडर्ड को मुंहजुबानी बताते हुए उनकी मौत को साज़िश क़रार दे रहे थे. वे सवाल पूछ रहे थे कि जो व्यक्ति दो दिन पहले तक पूर्ण स्वस्थ था, मीडिया से बातें कर रहा था, उसे जबरिया एम्स ऋषिकेश क्यों ले जाया गया? दो दिन में अचानक हार्ट अटैक से मौत कैसे हो गई?

इसी मातृ सदन आश्रम में आज से 7 साल पहले भी गंगा की साधना में एक मौत हुई थी. उस समय साल 2011 में एक लंबे अनशन के बाद स्वामी निगमानन्द ने दम तोड़ दिया था.

मेरे सामने इसी आश्रम में स्वामी गोपालदास नाक में ड्रिप लगाए बैठे हुए थे. उन्हें भी गंगा की ख़ातिर अनशन करते हुए 111 दिन बीत चुके हैं. शरीर सूख चला है.

मैं अब दिल्ली की ओर वापिस लौट रहा था. रास्ते में गंगा मां फिर दिखीं. मुझे एक बूढ़ी परछाई सी नज़र आई. हाथ में किसी नाव की पतवार लेकर वो गंगा के किनारे अवैध खनन रोकने की गुहार कर रही थी. गंगा का सीना चीरकर खड़े किए गए हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्टस हटाने के लिए गिड़गिड़ा रही थी. क्या ये गंगा पुत्र प्रो. जी.डी. अग्रवाल थे?

गंगा पीछे छूट चुकी थी. गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी. प्रोफ़ेसर अग्रवाल अब मेरी आँखों के सामने थे. वे इस वक़्त भी मेरी आँखों के सामने हैं!

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