भारत की सड़कें पाकिस्तान के साथ जंग से भी ख़तरनाक

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अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

भारत के लोगों के लिए पड़ोसी मुल्कों के साथ जंग से ज़्यादा ख़तरनाक उनकी अपनी सड़कें हैं, जो हर दस मिनट में तीन लोगों की जान ले रही हैं. और ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. 

हम आए दिन सड़क हादसों में होने वाली मौतों के बारे में सुनते हैं, हमारे आस-पास के लोग ऐसे हादसों के शिकार होते हैं. बावजूद इसके हमें इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. ख़ास तौर पर हमारे नौजवान सड़कों पर बग़ैर हेलमेट पहने पूरी स्पीड में अपनी बाईक उड़ाते हुए मिल जाएंगे. हालांकि सड़क हादसों में होने वाली मौत के आंकड़ों पर नज़र डालें तो आपकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ जंग में जितने लोग नहीं मारे गए, उससे कई गुणा अधिक लोग भारत की सड़कों पर हर दिन हादसों में मारे जा रहे हैं.

बता दें कि 1965 में होने वाले भारत-पाक युद्ध में तक़रीबन 3 हज़ार सैनिक हताहत हुए. 1971 में ये संख्या 3 हज़ार 843 रही, जबकि कारगिल युद्ध में 527 जवान शहीद हुए. लेकिन सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2016 में हमारी सड़कों ने 4 लाख 80 हज़ार 652 सड़क हादसों में 1 लाख 50 हज़ार 785 जानें लीं और 4 लाख 94 हज़ार 624 लोगों को ज़ख्मी किया.

साल 2017 में कुल 4 लाख 64 हज़ार 910 सड़क हादसों के मामले सामने आए हैं और इनमें 1 लाख 47 हज़ार 913 लोगों की मौत हुई है.

इस साल के आंकड़ें और भी चौंका देने वाले हैं. 2018 में जनवरी से मार्च तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि इन तीन महीनों में सड़क हादसों के 1 लाख 18 हज़ार 357 मामले सामने आ चुके हैं. इन हादसों में 37 हज़ार 608 लोगों की जान जा चुकी है. 1 लाख 19 हज़ार 413 लोग ज़ख्मी हुए हैं.

2017 के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि सड़क हादसों में सबसे अधिक मौत उत्तर प्रदेश में हुई है. यहां 20 हज़ार 124 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. वहीं दूसरे नंबर पर तमिलनाडू है. यहां 16 हज़ार 157 लोगों की जान गई है. तीसरा स्थान महाराष्ट्र का है. यहां सड़कों पर 12 हज़ार 264 लोगों की जान गई है.

स्पष्ट रहे कि ये आंकड़ें उन सड़क हादसों के हैं, जिनकी शिकायत पुलिस थानों में दर्ज हुई और फिर ये नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो तक पहुंचे हैं. अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितने सड़क हादसे ऐसे भी होते हैं जिनमें कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं होती. इस तरह से ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि सड़क हादसे और उनमें होने वाली मौतों की असल संख्या यहां पेश किए गए आंकड़ों से कई गुणा ज़्यादा हो सकती है.

हालांकि इनमें बड़ी संख्या ऐसे हादसों की भी है जो थोड़ी सी बेदारी और जल्दबाज़ी न करने से टाले जा सकते हैं. इसलिए हमें समाज में इसके प्रति जागरूकता पैदा करने की ज़रूरत है.

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