BeyondHeadlines News Desk
दरभंगा : मेला तो आपने बहुत देखा होगा, लेकिन ये मेला दूसरे मेलों से बिल्कुल अलग है. दलित मुसलमानों का ये अनोखा मेला आगामी 25 नवम्बर को दरभंगा शहर के हेड पोस्ट ऑफिस के ठीक सामने लक्ष्मेश्वर सिंह पब्लिक लाइब्रेरी में आयोजित किया जा रहा है. इस मेले के आयोजक डॉ. अयुब राईन और संयोजक ओसामा हसन हैं.
इस मेले के संयोजक ओसामा हसन बताते हैं कि, भारतीय बहुसंख्यक समाज की पेशागत जातियों की तरह मुसलमानों में भी कई पेशागत जातियां हैं, जिसे पिछड़ा या पसमान्दा मुसलमान के तौर पर जाना जाता है. पसमान्दा मुसलमानों में कईयों के काम-धंधे दलित वर्ग के जैसे ही हैं, बावजूद इसके इनको पेशागत दलितों की तरह दलित का दर्जा हासिल नहीं है. ये मेला इन्हीं पसमांदा मुसलमानों के असल स्थिति से रूबरू कराने के लिए आयोजित किया जा रहा है. इस मेले में दलित मुसलमानों के विभिन्न पेशागत जातियों से संबंधित स्टॉल लगाए जाएंगे, जिसमें उस जाति के कामों को दिखाने का प्रयास किया जाएगा.
वो बताते हैं कि इस मेले में मुसलमानों की 30 से अधिक दलित जातियों के कामकाज, रहन-सहन, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति के बारे में जानकारी दी जाएगी. साथ ही इसी मौक़े से डॉ. अयुब राईन की तीसरी शोध पुस्तक ‘भारत के दलित मुसलमान, खंड—2’ का विमोचन भी किया जाएगा. इस पुस्तक का विमोचन निडर पत्रकारिता के लिए विख्यात पत्रकार अनिल चमड़िया के हाथों होगा.
बता दें कि दलित मुस्लिम विचारक व लेखक डॉ. अयुब राईन की इससे पहले दलित मुसलमानों पर दो किताब आ चुकी है. उनकी पहली किताब ‘भारत के दलित मुसलमान, खंड —1’ और दूसरी ‘पमारिया’ है.
भारत के दलित मुसलमान, खंड —1 में मुसलमानों की 9 दलित जातियों —राइन, मीरशिकार, शिकालगर, पमारिया, फ़क़ीर, मीरासी, चुड़िहारा, डफाली और धोबी पर शोध लेख है. वहीं पमारिया एक एडिटेड किताब है, जिसमें अलग-अलग विद्वानों द्वारा पमारिया जाति पर लिखित शोध लेख शामिल हैं.
डॉ. राईन 2009 से जर्नल ऑफ़ सोशल रियलिटी नाम से जर्नल भी निकालते हैं. इस जर्नल में दलित मुस्लिम जातियों पर शोध लेख लिखते रहे हैं. बाद में इन्हीं शोध लेखों को विस्तृत रूप देकर पुस्तक का रूप दिया गया है. भारत के दलित मुसलमान, खंड —2 में दर्जी, इराक़ी, नालबंद, मुकेरी, भटियारा, गदहेड़ी, हलालख़ोर, ग्वाला (गद्दी), बक्खो और जट दलित मुस्लिम जातियों पर शोध लेख है.
डॉ. राईन बताते हैं कि ‘भारत के दलित मुसलमान, खंड —2’ को लिखने में क़रीब 5 साल लगे हैं. इन पाँच सालों में मैंने भारत और ख़सकर बिहार के विभिन्न इलाक़ों, जहाँ पर इन जातियों की आबादी है, का दौरा किया.
डॉ. राईन पेशे से शिक्षक हैं और नौकरी करते हुए समय निकाल कर अपनी पुस्तक पर काम करते हैं. अब तक कुल 22 दलित मुस्लिम जातियों पर काम कर चुके हैं.
डॉ. राईन का कहना है कि, भारत में जितनी भी दलित मुस्लिम जातियाँ हैं, उस पर शोध कर किताबी शक्ल देने का इरादा है. पुस्तक का मक़सद दलित मुसलमानों की दयनीय स्थिति को दिखाना और इन्हें एससी का दर्जा दिलाना है.
वो बताते हैं कि, आज़ादी से पहले मुसलमानों में दलितों को ये सुविधा मिल रही थी, लेकिन आज़ादी के बाद अध्यादेश लाकर दलित मुसलमानों को मिलने वाले एससी स्टेटस को ख़त्म कर दिया गया. हिन्दू धर्म की एक जाति को एससी का आरक्षण मिलता है, जबकि मुसलमान की उसी जाति को ओबीसी में रखा जाता है. संविधान का ये प्रावधान मुसलमानों की दलित जातियों के लिए अन्याय है और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है.