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पर्दाफ़ाश : नियम की अनदेखी से भारत के कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों में हुई 76 हज़ार समयपूर्व मौतें

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 8, 2018 2 Views
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4 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: कोयले आधारित बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन मानकों को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना की तीसरी सालगिरह और समय सीमा समाप्त होने के एक साल बाद ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में सामने आया है कि अगर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में थर्मल पावर प्लांट के लिए जारी उत्सर्जन मानकों की अधिसूचना को लागू किया जाता तो देश में 76 हज़ार मौतों से बचा जा सकता था.

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिली आरटीआई के जवाब के आधार पर ग्रीनपीस इंडिया ने थर्मल पावर प्लांट में उत्सर्जन मानक लागू करने के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इस विश्लेषण में यह सामने आया कि अगर मानको को लागू किया जाता तो सल्फर डॉयक्साइड में 48%, नाइट्रोडन डॉयक्साइड में 48% और पीएम के उत्सर्जन में 40% तक कि कमी की जा सकती थी.

इन 76 हज़ार असमय मौतों में से 34000 मौत को सल्फर डॉयक्साइड उत्सर्जन कम करके बचाया जा सकता था, वहीं नाइट्रोजन डॉयक्साइड कम करके 28 हज़ार मौतों से बचा जा सकता था, जबकि पार्टिकूलेट मैटर (पीएम) को कम करके 34 हज़ार मौत से बचा जा सकता था.

इन मानकों को लागू करने की समय सीमा 7 दिसम्बर  2017 को रखा गया था. एक साल बीतने के बाद भी पावर प्लाट के उत्सर्जन में बेहद कम नियंत्रण पाया जा सका है. इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि “उर्जा मंत्रालय का कोयला आधारित पावर प्लांटो से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने का कोई इरादा नहीं दिखता”, इतना ही नहीं कोर्ट ने 2022 तक इन मानकों को लागू करने का आदेश भी दिया.

ग्रीनपीस के विश्लेषण के अनुसार, अगर इन मानकों के अनुपालन में पांच साल की देरी की जाती है तो उससे 3.8 लाख मौत हो सकती है जिससे बचा जा सकता है और सिर्फ़ नाइट्रोडन डॉयक्साइड के उत्सर्जन में कमी से 1.4 लाख मौतों से बचा जा सकता है. इस अनुमान में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के नए उपक्रम को शामिल नहीं किया गया है.

ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, थर्मल पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों को लागू करना पिछले कुछ दशक से लटका हुआ है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उर्जा मंत्रालय और कोयला पावर कंपनी इन मानकों को लागू करने से बच रही है और ग़लत तकनीकी आधार का सहारा ले रही है. उन्हें समझना चाहिए कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों का स्वास्थ्य संकट में है और थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला उत्सर्जन इसकी बड़ी वजहों में से एक है. भारत को तत्काल उत्सर्जन मानकों को पूरा करने और नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को रोक कर अक्षय ऊर्जा की तरफ़ बढ़ने की ज़रुरत है जो कि पर्यावरण के लिए सिर्फ़ अच्छा नहीं है बल्कि सतत विकास के लिए भी प्रदूषित कोयले से बेहतर है.

ग्रीनपीस इंडिया मांग करती है कि पर्यावरण मंत्रालय जल्द से जल्द थर्मल पॉवर प्लांट को प्रदूषण के लिए उत्तरदायी बनाए. वहीं सारे थर्मल पावर प्लांट को तत्काल उत्सर्जन मानकों को हासिल करना चाहिए और अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नए थर्मल पावर प्लांट बनाने से रोकना चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए इससे जुड़े एक्शन को सार्वजनिक मंच पर लोगों के लिए उपलब्ध भी करवाना चाहिए.

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