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‘भोजपुरिया समाज को अपनी लाठी फिर से मज़बूत करनी पड़ेगी…’

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : ‘भोजपुरी की अपनी समाजिक, सांस्कृतिक और अध्यात्मिक विरासत है. भोजपुरी अनेक दौर से गुज़रते हुए अपनी समृद्ध विरासत को इस वैश्विक परिवेश में और समृद्ध कर रही है. भोजपुरिया समाज ने स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी और संघर्ष में ख़ुद को भूल बैठे.’

ये बातें आज नई दिल्ली के हिन्दी भवन में भोजपुरी असोसिएशन आॅफ इंडिया के साथ-साथ मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार और मंगलायतन यूनिवर्सिटी के संयुक्त प्रयास से आयोजित भोजपुरी लिटरेचर फेस्टिवल में भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ब्रजभूषण मिश्र ने रखीं.

भोजपुरी को आठवीं अनुसूची से दूर होने के सम्बंध में उन्होंने कहा कि भोजपुरिया को अपनी लाठी फिर से मज़बूत करनी पड़ेगी.

भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुशील तिवारी भोजपुरिया समाज की पहचान अर्थात प्रतिरोध की संस्कृति की ओर ध्यान दिलाते हुए इस समाज को राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका निभाने वाला बताया और यही कारण रहा कि भोजपुरी अन्य भाषाओं की अपेक्षा स्थापित न हो पाई.

वहीं रोहित ने भारतेंदु मंडल और द्विवेदी जी के चिंतन दुष्परिणाम की ओर इशारा किया कि किस तरह बोलियों को उसकी समृद्ध परंपरा से काटकर हिंदी के क़ब्र में दबा दिया गया.

इस मौक़े पर डॉ. जयकांत सिंह ने कहा कि भोजपुरी का अपना स्वतंत्रत भाषिक स्वरूप है. जिसके पास अपना समृद्ध साहित्य और व्यकारण है. जो लोग ऐसे सवाल उठा रहे हैं उन्हें या तो भाजपुरी साहित्य के इतिहास की जानकारी नहीं है या वे छद्म हिन्दी प्रेम में मायोपिया के शिकार हैं. भोजपुरी कभी भी हिन्दी अथवा किसी अन्य भारतीय भाषा के ख़िलाफ़ खड़ी नहीं रही. अलबता उसका इतिहास तो राष्ट्र निर्माण में अपना सर्वस्व देने को है.

डॉ. मुन्ना के पाण्डेय ने कहा भाषा के साथ शत्रुता रखने वाली शक्तियां किसी भी भाषा की प्रेमी नहीं हो सकती है. भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में आने से किसी भाषा को कोई ख़तरा नहीं है.

डा. प्रमोद कुमार तिवारी ने कहा कि, लोक संस्कृति और लोक भाषा स्त्रियों के कंधों पर टिकी हुई है. वे हज़ारों प्रकार के गीतों की रचनाकार, गायिका एवं रिश्तों की संरक्षिका का भारी दायित्व सदियों से निभा रही हैं. ये केवल भोजपुरी परंपरा और संस्कृति की ही नहीं पर्यावरण और रिश्तों के लिए भी सुरक्षा कवच का काम करती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि, धरमन बाई, विंध्यवासिनी देवी जैसी अनेक लोकनायिकाओं को महत्व देने का समय आ गया है. वे भोजपुरी की अनाम नींव की ईंट रही हैं उन्हें नाम देने की ज़रूरत है.

मार्कंडेय शारदेय ने कहा कि भोजपुरी लोकगीतों में नारी सशक्त है और अपने अधिकार के लिए लड़ती है. श्री शारदे ने स्त्रियों की संस्कृत से लेकर वर्तमान परंपरा तक की चर्चा की.

फेस्टिवल में भोजपुरी सिनेमा के भविष्य पर बोलते हुए अभिनेता सत्यकाम आनंद ने कहा कि अच्छी सिनेमा बनाने के लिए अच्छे लोगों को साथ आना होगा. भोजपुरी सिनेमा अपने पुनर्निर्माण के दौर से गुज़र रही है. इसका भविष्य सुनहरा होगा ऐसा मुझे विश्वास है.

भोजपुरी एसोसिएशन आॅफ इंडिया के समन्वयक जलज कुमार अनुपम‌ ने कहा कि भोजपुरी लिटरेचर फेस्टिवल‌ का मुख्य उदेश्य है भोजपुरी भाषा के गौरवशाली इतिहास से नई पीढ़ी को रुबरु कराना और भोजपुरी को लेकर लोगों के फैलाए गए भ्रम को तोड़ना है.

इस मौक़े पर आख़िरी सत्र के रुप में कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें मुख्य रुप से दयाशंकर पाण्डेय, गुलरेज़ शहज़ाद, रश्मि प्रियदर्शिनी, हातिम जावेद, शशिरंजन मिश्र, सरोज सिंह, राजेश मांझी, गुरुविन्दर सिंह, अंशुमन मिश्र आदी मौजूद रहे.

इसके अलावा उद्घाटन सत्र में अतिथि के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पाण्डेय और विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अध्यक्ष अजीत दुबे के साथ-साथ भारी संख्या में भोजपुरी भाषा और गैर भोजपुरिया लोग शामिल हुए.

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