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जदयू छात्र नेताओं की पिटाई पर क्यों ख़ामोश हैं नीतीश कुमार?

By Khurram Malick

पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेन्टस यूनियन इलेक्शन को लेकर भाजपा व जदयू नेता आमने-सामने नज़र आ रहे हैं. भाजपा नेताओं ने जदयू के प्रशांत किशोर के ख़िलाफ़ अपना मोर्चा खोल दिया है.

बता दें कि तीन दिन पहले एबीवीपी व छात्र जदयू के कार्यकर्ताओं में भिड़ंत हुई थी जिसमें एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेन्टस यूनियन के पूर्व अध्यक्ष दिव्यांशु भारद्वाज का सिर फोड़ डाला. इस मारपीट में छात्र जदयू के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार आशीष पुष्कर और संयुक्त सचिव पद के उम्मीदवार ओसामा खुर्शीद को भी चोट आई. 

लेकिन दिलचस्प है कि अपने छात्र नेताओं की पिटाई पर राज्य के मुखिया नीतिश कुमार कान में रूई डालकर सोए हुए हैं. समझ नहीं आ रहा है कि कहां गया आत्मसम्मान? क्यों मर गई अंतरात्मा?

आपका नारा है कि हम ज़ीरो टॉलरेंस की नीति पर प्रतिबद्ध हैं. आप हमेशा मीडिया में यह बयान देते नज़र आते हैं कि भ्रष्टाचार से हम समझौता नहीं कर सकते. इसके लिए मेरी जान भी चली जाए तो परवाह नहीं है.

आप हर रोज़ चिल्ला-चिल्ला कर यह कहते नज़र आते हैं कि हम भाजपा के सहयोगी ज़रूर हैं, लेकिन हम अपने राज्य में उनकी नीति नहीं चलने देंगे. लेकिन हो इसका उल्टा रहा है. आप के नायब छोटे मोदी हमेशा अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं. लेकिन आप चुप हैं.

आए दिन आपके राज्य में लोगों को मारा जा रहा है. हर दिन कोई नया भ्रष्टाचार सामने आ रहा है. मासूम बच्चियों को आपकी नाक के नीचे हवस का शिकार बनाया जाता है. मुजरिम आपकी पार्टी की विधायक होती हैं. उसका पति हाथों में हथकड़ी पहने ठहाका लगाता है. मानो क़ानून उसके बाप की जागीर है.

सीतामढ़ी में एक 82 साल के बुजुर्ग को मार कर जला दिया जाता है, लेकिन आपका प्रशासन आंखें मूंदे पड़ा बेहिसी का नमूना पेश करता है.

सबसे शर्म की बात तो यह हो गई कि वो युवा जिसके राजनीतिक उत्थान के लिए आपके द्वारा मनोनीत किए गए आपकी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने बड़े ज़ोर शोर से एक टीम गठित की थी. जिसके द्वारा वह युवाओं में राजनीतिक चेतना का अलख जगाना चाहते हैं, लेकिन उसकी चिंगारी से आपकी पार्टी के ही युवा नेता जलने लगे हैं. जो कि अनैतिक है. इसलिए आपके राज्य का ही एक अदना सा लड़का आपसे बड़ी विनम्रता से यह अनुरोध कर रहा है कि अपनी सोई हुई आत्मा को हल्की सी चपत लगाईए. और हो सके तो उस पर एक लोटा गंगा का ठंडा जल डालकर देखिए, शायद जाग जाए.

और आख़िर में मैं उन छात्रों से कहना चाहूंगा कि अब आप भी अपने मुखिया से सवाल कीजिए. ख़ुद के सम्मान की रक्षा कीजिए. पार्टी में बने रहने से ज़्यादा बेहतर है कि अपना सम्मान बना रहे…

(लेखक पटना में एक बिजनेसमैन हैं. ये उनके अपने विचार हैं.)

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