BeyondHeadlines News Desk
रांची : झारखंड राज्य हज कमिटी को झारखंड हाईकोर्ट ने भंग करते हुए नई कमिटी के गठन का आदेश दिया है.
बता दें कि झारखंड राज्य हज कमिटी के गठन में हज कमिटी अधिनियम 2002 का अनुपालन नहीं करने को लेकर हाई कोर्ट में ये याचिका यहां के सामाजिक कार्यकर्ता शमीम अली उर्फ एस.अली ने दायर किया था.
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजेश शंकर ने आज आदेश दिया है कि हज कमिटी को भंग करते हुए नई कमिटी का गठन जल्द किया जाए.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मोख़्तार खान ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुऐ कहा कि हज कमिटी अधिनियम —2002 के धारा-18 के अनुसार स्थानीय निकाय कोटे से तीन मुस्लिम सदस्य लेना है, लेकिन इसमें दो फर्जी वार्ड पार्षदों को सदस्य बना दिया गया. वहीं मुस्लिम विद्वान कोटे से 3 सदस्यों को लेना है, लेकिन 2 को ही सदस्य बनाया गया. परंतु दोनों सदस्य मुस्लिम विद्वान हैं कि नहीं उसका उल्लेख अधिसूचना में नहीं है.
पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, फाइनेंस, एजुकेशन, कल्चर अथवा सोशल वर्क के कोटे से 5 लोगों को सदस्य बनाना था, लेकिन 7 लोगों को सदस्य बना दिया गया और अधिसूचना में यह उल्लेख भी नहीं किया गया कि कौन सदस्य किस कोटे से है.
संसद, विधानसभा, विधान परिषद से तीन सदस्यों को लिया जाना है. राज्यसभा और विधानसभा से दो सदस्य को लिया गया. जबकि विधान परिषद के कोटे को विधानसभा से भरना था जैसे सरकार द्वारा पूर्व में किया गया है. वो कोटा खाली छोड़ दिया गया.
सरकार की ओर से पक्ष रख रहे महाधिवक्ता अजित कुमार ने कोर्ट में खुद यह बात स्वीकार की कि याचिकाकर्ता की ओर से हज कमिटी को लेकर जो सवाल उठाए गए हैं, वो सही हैं.
महाधिवक्ता अजित कुमार ने कहा कि सरकार की ओर से हज कमिटी के गठन में चूक हुई है. अधिनियमों का सही से पालन नहीं हुआ है.
शमीम अली बताते हैं कि 20 जुलाई 2018 को हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश शंकर ने सभी बातों को सुनने के बाद सरकार को जवाब दाखिला करने को कहा था. 30 अक्टूबर, 2018 को सुनवाई में सरकार ने जैसे-तैसे जवाब दाखिला कर दिया, जिससे कोर्ट ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कोटिवार सदस्यों की नियुक्ति सम्बंधी शपथ-पत्र दाखिल करने को कहा. और आज भी कोर्ट के आदेश का पालन तो नहीं किया गया लेकिन सरकार की ओर से माना गया कि उसकी तरफ़ से चूक हुई है.
उनका कहना है कि ये कहानी सिर्फ़ झारखंड की ही नहीं है. बल्कि अन्य कई राज्यों में भी कमिटी का गठन करते समय हज अधिनियम 2002 का पालन नहीं किया गया है. वहां क़ौम के रहनुमाओं और वहां के पढ़े-लिखे रहनुमाओं को आगे आकर इसे दुरस्त करने की ज़रूरत है. नहीं तो ये हज कमिटियां ग़लत लोगों के हाथ में रहेंगी और हर साल हज को जाने वाले भारतीय मुसलमान परेशान होते रहेंगे.
बता दें कि केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी भी इस हज कमेटी के सदस्य थे. आरोप था कि इन्होंने अपने जान-पहचान के लोगों को हज कमिटी का सदस्य बना दिया था.