साधारणतः मैं किसी मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने के पश्चात खुद पर लगे आरोपों के उत्तर नहीं देता. मेरा मानना है कि जिस प्रकार मेरा एक दृष्टिकोण है, उसी प्रकार मुझ पर लगाए गए आरोप भी किसी के अपने दृष्टिकोण हैं. लेकिन कमलनाथ के मुद्दे पर आलोचना के बहाने बीजेपी/आरएसएस को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाने के आरोपों का उत्तर देना इसलिए आवश्यक समझता हूं, क्योंकि ये विचारधारा की लड़ाई है. फासीवाद के विरूद्ध आम हिन्दुस्तानी की मोर्चाबंदी है. इसलिए इसे समझना होगा.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास अनुभवी और युवा दोनों प्रकार के नेता उपलब्ध हैं, जो इस हिंदी हृदय नगर को कुशल नेतृत्व देने की क्षमता रखते हैं. लेकिन उन सबको दरकिनार कर पार्टी ने जिस प्रकार कमलनाथ को राज्य का मुखिया बनाया है, वो ना केवल निंदनीय है, वरन् असहनीय भी है. आईए! हम आपको बताएं कि कमलनाथ को लेकर हमारी आपत्तियां क्या हैं.
हमारा मानना है कि फासीवाद हर रूप में घिनौना है. कोई अगर यह समझता है कि मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा का फासीवाद ख़तरनाक है और अन्य लोगों/पार्टियों का फासीवाद चल जाएगा तो यह नीतीश कुमार सरीखे लोग होते हैं, जिन्हें 2014 में मोदी की साम्प्रदायिकता से बैर होता है किन्तु आडवाणी की साम्प्रदायिकता से उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं.
अब आप बताएं क्या मोदी के ज़्यादा साम्प्रदायिक होने से आडवाणी के पिछले सारे पाप धुल गए? अगर नहीं, तो फिर शिवराज या भाजपा के सामने कमलनाथ के गुनाह कैसे धुल गए?
अगर आप यह मानते हैं कि कमलनाथ का फासीवाद सिक्खों के विरूद्ध सक्रिय था और मुसलमानों का उससे कोई लेना-देना नहीं तो फिर याद रखिए जो कमलनाथ 4000 उग्र लोगों की भीड़ लेकर एक गुरुद्वारे पर हमला बोल सकता है और बाप-बेटे को ज़िंदा जला सकता है, वो कल आपकी किसी मस्जिद पर भी धावा बोल सकता है.
किसी हाशिमपुरा में मुसलमान जवानों और बूढ़ों को क़तार में खड़े कर गोलियों से भून डालने के लिए राज्य के साधनों और संस्थाओं का पूरा दुरुपयोग करना उसके लिए बिल्कुल सहज है. यह भी याद रखिए कि फासीवाद एक मानसिकता है. और उससे ग्रस्त व्यक्ति/प्रणाली किसी समुदाय विशेष को ही निशाना बनाए, ऐसा ज़रूरी नहीं.
राजनीति से जुड़े लोगों को यह भली-भांति ज्ञात है कि आप और हम जिस आरएसएस को भारतीय फासीवाद का स्रोत मानते हैं, उस आरएसएस से कमलनाथ को कोई आपत्ति नहीं है! कांग्रेस के अंदर संघ के प्रभाव का जीता-जागता उदाहरण है. जैसे किसी ज़माने में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव कांग्रेस के अंदर संघ के सरसंघचालक हुआ करते थे.
आप अगर मानते हैं कि कांग्रेस का संघी एजेंडा से वास्ता नहीं तो आप शुतुरमुर्ग की प्रजाति से प्रभावित हैं. कुलदीप नैयर की आत्मकथा Beyond the Lines में उल्लेखित है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान जिस नरसिंह राव को प्रधानमंत्री कार्यालय में उस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने को लिए मोर्चा संभालना था, वो नरसिंह राव अपने आवास पर एक कमरे में पूजा में बैठ गए और जब मस्जिद ढा दी गई, बाहर निकल कर अफ़सरों के साथ हंसी-ठिठोली करने लगे.
इसके अतिरक्त भी पूरा बाबरी मस्जिद कांड कांग्रेस के कर्म-कांडों की गाथाओं से अटा पड़ा है. खुशवंत सिंह ने एक मौक़े पर अपने एक मुसलमान दोस्त के घर दावत खाने के बाद मज़ाक में कहा था कि मुसलमान का गोश्त बहुत लज़ीज़ होता है.
कांग्रेस ने हमेशा ही इस वाक्य के दूसरे अर्थ को चरितार्थ किया है. लेकिन मेरे इस लेख की मंशा कांग्रेस के मुस्लिम विरोध का उल्लेख करना नहीं, बल्कि उस फ़ैसले का विरोध करना है जिससे नरसंहार के एक अभियुक्त को भारत के एक प्रमुख राज्य की बागडोर मिल जाती है.
यह ना भूलिए कि मध्य प्रदेश आरएसएस की प्रयोगशाला है. ऐसे में संघियों के एक हितैषी को मुख्यमंत्री बना देना पूरे देश के लिए ख़तरनाक संकेत है.
अंत में यह बता दें कि अगर आप कमलनाथ को केवल इसलिए स्वीकार कर लेते हैं कि वो शिवराज की तुलना में कम फासीवादी है या कम सांप्रदायिक पार्टी से आते हैं तो कल आप मोदी को भी स्वीकार लेंगे क्योंकि वो योगी आदित्यनाथ की तुलना में मॉडरेट नज़र आएंगे. जिस तरह से आज मोदी की तुलना में आडवाणी नज़र आते हैं. और यह सिलसिला चलता रहेगा. फासीवाद बढ़ता रहेगा और उसके संवाहक कुछ दिनों तक हमारे लिए घृणित रहेंगे फिर धीरे-धीरे हम उन्हें स्वीकार लेंगे.
(ये लेखक के अपने विचार हैं.)
