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‘प्रस्तावित खुर्जा सुपर पावर प्लांट लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक रुप से भी ज़ोखिम भरा’

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 13, 2018 1 View
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5 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर से सटे उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर में प्रस्तावित खुर्जा सुपर पावर प्लांट लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक रुप से भी ज़ोखिम भरा है. 

ये सच्चाई ग्रीनपीस इंडिया के द्वारा जारी विश्लेषण में सामने आया है. ग्रीनपीस इंडिया की माने तो अक्षय ऊर्जा अपनाकर इससे ज़्यादा सस्ती बिजली हासिल की जा सकती है.

बता दें कि प्रस्तावित खुर्जा सुपर थर्मल पावर प्लांट 1,320 मेगावाट का है जो उत्तर प्रदेश सरकार और टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का सयुंक्त उपक्रम है.

ग्रीनपीस के इस विश्लेषण में बताया गया है कि नया कोयला थर्मल पावर प्लांट लगाने से ज़्यादा सस्ता और स्वच्छ सोलर, वायु जैसे अक्षय ऊर्जा के विकल्प मौजूद हैं, जो पहले से ज्यादा आसानी से और सस्ते में उपलब्ध हैं. अक्षय ऊर्जा निवेशकों के लिए भी निवेश के लिहाज़ से ज़्यादा सुरक्षित हैं.

ग्रीनपीस इंडिया की कैंपेनर पुजारिनी सेन कहती हैं, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि क्षेत्र में ख़तरनाक स्तर पर पहुंच चुके वायु प्रदूषण और अक्षय ऊर्जा की अर्थव्यवस्था में बदलाव के बावजूद वित्त मंत्रालय ने सिद्धांतः खुर्जा कोयला पावर प्रोजेक्ट में निवेश के लिए हरी झंडी दे दी है. यह साफ़ है कि नया कोयला पावर परियोजना निवेश या फिर पर्यावरण के लिहाज़ से कोई अर्थ नहीं बना रहा है.”

एक उदाहरण के रूप में खुर्जा सुपर थर्मल पावर प्लांट के भूमि पदचिह्न का उपयोग करते हुए, विश्लेषण में यह बताने की कोशिश की गई है कि खुर्जा एसटीपी के आकार और पैमाने का एक सौर संयंत्र आवश्यक निवेश जैसे नौकरी के विकास, नौकरी की वृद्धि, इक्विटी पर वापसी, बिजली उत्पादन आदि में थर्मल पावर प्लांट से ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होगा और इससे प्रदूषण से भी बचा जा सकता है.

इस थर्मल पावर प्लांट के लिए आवंटित 1200 एकड़ में ही 240 मेगावाट सोलर बिजली पैदा किया जा सकता है. इतना ही नहीं, खुर्जा पावर प्लांट को 3,378 एकड़ वन भूमि की भी खनन के लिए आवश्यकता पड़ेगी, जो सिंगरौली में स्थित है. (इसमें 9 लाख पेड़ों का काटा जाना भी शामिल है.) इतनी ही ज़मीन (खनन के लिए 3378 एकड़) में बिना किसी जंगल को काटे 675 मेगावाट उत्पादन करने वाला सोलर परियोजना लगाया जा सकता है. मतलब खुर्जा जितनी बड़ी परियोजना से 915 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है.

इस तरह के सोलर परियोजना से 8,341 नौकरियां बनाई जा सकती हैं और इस परियोजना की कुल लागत अनुमानतः 3,204 करोड़ (3.5 करोड़ प्रति मेगावाट) होगा, जबकि थर्मल पावर प्लांट के लिए 12,676 करोड़ निवेश की ज़रुरत होगी. यह सालाना 1.2 मिलियन टन कार्बन डॉक्साइड को ऑफ़सेट भी करेगी.

उत्तर प्रदेश में स्वच्छ वायु और ऊर्जा के मुद्दे पर काम कर रहे क्लाइमेट एजेंडा के रवि शेखर कहते हैं, “उत्तर प्रदेश के लोगों को सस्ती बिजली और स्वच्छ हवा चाहिए, खुर्जा थर्मल पावर प्लांट से उनको दोनों में से कुछ भी नहीं मिलेगा. हम वित्त मंत्रालय और टीएचडीसी से मांग करते हैं कि इस परियोजना पर पुनर्विचार करे और क्षेत्र की आवश्यकता सस्ती बिजली और स्वच्छ हवा की ज़रुरत को ध्यान में रखते हुए कार्य करे.”

बता दें कि थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला उत्सर्जन वायु प्रदूषण की प्रमुख वजहों में से एक है. इसकी वजह से हर साल भारत में एक लाख मौत होती है. हाल के ही एक अध्ययन में सामने आया है कि भारत में दुनिया के तीन सबसे प्रमुख नाइट्रोजन डॉयक्साइड के हॉटस्पॉट हैं, इनमें से दिल्ली-एनसीआर और सिंगरौली-सोनभद्र (मध्य प्रदेश-उत्तर प्रदेश) भी हैं जो इस प्रस्तावित खुर्जा पावर प्लांट और उसके लिए प्रस्तावित खनन क्षेत्र से सटे हुए हैं.

खुर्जा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में स्थित है जो भारत के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है. अध्ययन बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2017 में वायु प्रदूषण की वजह से 2.6 लाख लोगों की मौत हुई हैं वहीं भारत भर में यह संख्या 12.4 लाख है. इससे साफ़ है कि यह प्रस्तावित खुर्जा थर्मल पावर प्लांट बुलंदशहर और आस-पास के क्षेत्रों में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है.

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