By Khurram Malick
आज भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, ख़िलाफ़त तहरीक और असहयोग आंदोलन के सिपाही मौलाना मज़हरूल हक़ साहब की यौम-ए-पैदाईश है.
मौलाना हक़ ही वो शख़्स थे, जिन्होंने बिहार में कांग्रेस पार्टी को जीवन दिया. इसे पाला-पोसा. आगे बढ़ाने में अपना सबकुछ निछावर कर दिया. आज ही उन्हीं की ज़मीन पर सदाकत आश्रम खड़ा है, जहां से बिहार कांग्रेस अपना दफ़्तर चला रही है.
होना तो ये चाहिए था कि आज उनके यौम-ए-पैदाईश पर कांग्रेस के रहनुमा उनके कामों को याद करते और उनकी बातों को इस देश की युवा पीढ़ी तक पहुंचाते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
दिलचस्प तो ये है कि जिस पार्टी को मौलाना मज़हरूल हक़ से कोई लेना-देना नहीं है, उस पार्टी के नेता उन्हें याद करते नज़र आए.
आज सबसे पहले भाजपा के मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने उन्हें ट्वीट करके याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. इसके साथ ही एक और मंत्री सुरेश प्रभू ने भी ट्वीट के द्वारा उन्हें नमन किया. बाद में तारिक़ अनवर ने उन्हें ट्वीट के ज़रिए याद किया. तारिक़ अनवर कुछ ही दिन पहले कांग्रेस में शामिल हुए हैं.
मैं आज पूरे दिन ट्विटर पर कांग्रेस पार्टी का हैंडल कंघालता रहा. लेकिन मायूसी हाथ लगी. मौलाना मज़हरूल हक़ को लेकर एक भी ट्वीट कांग्रेस पार्टी के आलाकमान की ओर से नहीं आया. कहीं किसी कांग्रेसी नेता ने आज की युवा पीढ़ी के सामने मौलाना हक़ की बातों को नहीं रखा, जबकि आज सबसे अधिक मौलाना मज़हरूल हक़ की बातों को ही रखे जाने की ज़रूरत है. मौलाना ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर जितना काम किया है, शायद ही इस देश के इतिहास में किसी ने किया हो.
ज़रा सोचिए, आज जब भी महात्मा गांधी जी की जन्मतिथि या पुण्यतिथि का दिन आता है तो सरकार बड़े ही धूम-धड़ाके के साथ उन्हें याद करती है. पूरा देश गांधीमय हो जाता है, जो कि सराहनीय है. लेकिन उस शख्स को भूल जाना क्या उचित होगा जिसने बिहार में गांधी का सबसे अधिक साथ दिया, वो भी सिर्फ़ तन से नहीं, बल्कि मन और धन से भी.
याद कीजिए, जब गांधी राजेन्द्र प्रसाद के नौकर के सलूक की वजह से जाने की हद तक सोचने लगे तब मौलाना मज़हरूल हक़ ने ही उन्हें अपने घर का मेहमान बनाया. चम्पारण के समस्या से न सिर्फ़ रूबरू कराया, बल्कि उसकी रणनीति भी बनाकर दी. और फिर लगातार हर मोड़ पर उनके साथ रहें. हद तो ये है कि देश की आज़ादी के लिए अपना सबकुछ क़ुर्बान कर दिया और फ़क़ीर की ज़िन्दगी गुज़ारने लगें. मुझे ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगर मौलाना हक़ न होते तो शायद आज गांधी ‘महात्मा’ न होते.
ये कितना अजीब है कि जिस शख़्स ने इस कांग्रेस पार्टी के लिए, इस देश के लिए अपना सबकुछ क़ुर्बान कर दिया, आज उसी शख़्स के वारिस एक गुमनाम जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है. आज हालात यह हैं कि शायद ही लोग मौलाना को सही ढंग से जानते होंगे. बिहार के पटना से ही कई लोगों को तो यह तक पता नहीं होगा कि मौलाना का घर कहां पर है? शायद बिहार के कुछ नेताओं से पूछ लिया जाए तो वह भी आंखें चुराने लग जाएंगे.
देश की आज़ादी में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की कुर्बानी को हम भूले नहीं है, तो क्या ऐसे वक़्त में देश के इस महान व्यक्ति को याद करने के लिए एक ट्वीट तक नहीं किया जा सकता है?
मैं उन सभी भारत वासियों से अपील करना चाहता हूं कि तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दलों के नेताओं को बेनक़ाब कीजिए और उन्हें याद दिलाईए कि सिर्फ़ वोटों के लिए ही मुसलमानों को याद ना करके उनके द्वारा देश के लिए दिए गए बलिदानों को भी याद किया जाए. तभी आपकी कथनी और करनी में बैलेंस बना रहेगा. अन्यथा आपकी बातों को भी जुमला ही समझा जाएगा.
मैं बिहार सरकार और ख़ास तौर से कांग्रेस पार्टी के आलाकमान से यह आग्रह करना चाहूंगा कि देश के इस महान सपूत को भी वही मान-सम्मान मिलना चाहिए जिसके वह असली हक़दार हैं.
(लेखक पटना में एक बिजनेसमैन हैं. ये उनके अपने विचार हैं.)