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दिल्ली सरकार का वादा ‘स्मार्ट’ सड़कों का, लेकिन यहां गड्ढे ले रहे हैं लोगों की जान

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 23, 2018 3 Views
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5 Min Read
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

आज से तीन साल पहले दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की अवाम से ‘स्मार्ट’ सड़कें देने का वादा किया था, लेकिन इन स्मार्ट सड़कों की कौन कहे आम सड़कें भी बदहाल हैं. वादा ये किया गया था कि दिल्ली की सड़कें ‘स्मार्ट’ बनेंगी, लेकिन अब तक ये काम दूर-दूर तक नज़र नहीं आता.

बता दें कि 2015 में दिल्ली सरकार की योजना पीडब्ल्यूडी की सड़कों को रि-डिज़ाईन करने की थी. इसके तहत कहा गया था कि पीडब्ल्यूडी की सड़कों पर ख़ास सुविधाएं जैसे लैंडस्केपिंग, ग्रीनरी, साईकिल ट्रैक, स्ट्रीट फर्नीचर और पेलिकन क्रॉसिंग यानी पैदल-यात्रियों के लिए क्रॉसिंग आदि होंगी.

पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर सबसे पहले विकास मार्ग, पटेल चौक से मोती नगर चौक, नेताजी सुभाष प्लेस से रिठाला मेट्रो स्टेशन, ब्रिटानिया चौक से आउटर रिंग रोड वाया रानी बाग फाउंटेन का चयन किया गया था. इन सड़कों को रि-डिज़ाईन करके तैयार कर देने की डेडलाईन 2016 थी. लेकिन इस काम की अभी तक शुरूआत भी नहीं हुई है. 

दिल्ली सरकार के मुताबिक़ पाइलट प्रोजेक्ट के बाद 1200 किलोमीटर सड़क को जुलाई, 2018 तक रि-डिज़ाईन हो जाना था, इसके लिए सरकार ने 6,000 करोड़ फंड खर्च करने की बात कही थी.

देरी की वजह मालूम करने पर पीडब्ल्यूडी अधिकारी ये कहते हुए नज़र आते हैं कि अभी इन ‘स्मार्ट’ सड़कों का डिज़ाईन फ़ाईनल नहीं हुआ है.

सीएजी के मुताबिक़ दिल्ली के 33,868 किलोमीटर लंबे रोड नेटवर्क में से एमसीडी के पास 23,931 किमी लंबी सड़कें हैं, जबकि पीडब्ल्यूडी के पास 6,308 किमी, एनएचएआई के पास 430 किमी, एनडीएमसी के पास 1,290 किमी, डीएसआईआईडीसी के पास 1,434 किमी, आई एंड एफ़सी के पास 40 किमी और डीडीए के पास 435 किमी लंबी सड़कें हैं.

इस तरह देखा जाए तो दिल्ली में सड़कों के रख-रखाव के लिए कई एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं, लेकिन दिल्ली सरकार का अर्बन डेवलपमेन्ट डिपार्टमेंट अभी तक ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं बना पाया, जिससे ये सभी एजेंसियां मिलकर दिल्ली में रोड नेटवर्क का विकास और विस्तार कर पातीं.

आंकड़ों की मानें तो राजधानी दिल्ली की 83 फ़ीसद सड़कें मौजूदा ट्रैफिक दवाब को झेल पाने में सक्षम नहीं हैं. इन सड़कों में लुटियन ज़ोन सहित रिंग रोड का आऊटर सर्किल भी शामिल है. आलम ये है कि यहां की सड़कें पिछले 4 सालों में न चौड़ी हुई हैं, और न ही ऐलीवेटड सड़कों का निर्माण ही शुरू हुआ है.

दिल्ली के गड्ढे ले रहे हैं लोगों की जान

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ें बताते हैं कि साल 2017 में सड़कों पर बने गड्ढों की वजह से देश की राजधानी दिल्ली में 39 सड़क हादसे हुए हैं, जिनमें 8 की मौत और 38 गंभीर रूप से घायल हुए हैं. साल 2016 में ये आंकड़ा ज़ीरो रहा, लेकिन साल 2015 में 14 सड़क हादसों में 2 की मौत और 12 गंभीर रूप से ज़ख्मी हुए. यहां ये बात भी ग़ौरतलब रहे कि गड्ढों की वजह से होने वाले सड़क हादसे या मौत के आंकड़ें सही रूप से कभी भी सामने नहीं आ पाते हैं. 

बता दें कि देश भर में सड़कों पर बने गड्ढे में गिरने से होने वाली मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराज़गी जताई है. कोर्ट ने कहा कि यह आंकड़ा बॉर्डर पर और आतंकी हमले में मरने वालों से भी ज्यादा है. यही नहीं, अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह तमाम राज्यों से इस मामले में संपर्क करे और फिर रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करे. सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला 6 दिसम्बर, 2018 को आया है. आगे मामले की सुनवाई जनवरी 2019 में होगी.

गड्ढों की मरम्मत को लेकर नगर निगम भी है सुस्त

दिल्ली की सड़कों पर बने गड्ढ़ों के लिए दिल्ली सरकार के साथ-साथ यहां की नगर निगम भी ज़िम्मेदार है. तथ्यों की माने तो नगर निगम के ख़ज़ाने में 175 करोड़ रूपये पड़े हैं, बावजूद इसके वो दिल्ली के गड्ढों की मरम्मत को लेकर गंभीर नहीं है. ऐसे में गली-मोहल्लों की बात तो छोड़ ही दीजिए, मुख्य मार्गों पर भी दिल्ली के लोग हिचकोले खा रहे हैं.

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