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भारत के 77 फ़ीसद यानी 313 शहर में 241 शहर की हवा राष्ट्रीय मानक से अधिक प्रदूषित

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 29, 2019 1 View
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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: ग्रीनपीस इंडिया ने आज अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘एयरपोक्लिपस’  का तीसरा संस्करण जारी किया. इस रिपोर्ट में यह सामने आया कि 139 शहर जहां की वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से अधिक है, को हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) में शामिल नहीं किया गया है.

रिपोर्ट में यह इशारा किया गया कि अगर हम एनसीएपी के 2024 तक 30 प्रतिशत प्रदूषण कम करने के लक्ष्य पर भरोसा कर भी लें तो भी 153 शहर ऐसे छूट जाएंगे जिनका प्रदूषण स्तर राष्ट्रीय मानक से 2024 में भी अधिक होगा.

313 शहर में 241 (77%) शहर की हवा राष्ट्रीय मानक से अधिक प्रदूषित

 इस रिपोर्ट में 313 शहरों के साल 2017 में पीएम10 के औसत स्तर का विश्लेषण किया गया है. इसमें सामने आया कि 313 शहरों में से 241 (77%) शहरों का पीएम10 का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक से कहीं अधिक है. इस तरह ये सारे 241 शहर अयोग्य शहरों की सूची में आते हैं, जहां एनसीएपी के तहत कार्ययोजना बनाने की ज़रुरत है.

एनसीएपी में 2015 के डाटा के आधार पर किया गया शहरों को शामिल

ग़ौर करने वाली बात यह है कि एनसीएपी में सिर्फ़ 102 शहरों को शामिल किया गया था, जिसका आंकड़ा 2011-15 से लिया गया था. अब इन शहरों में 139 नए शहर बढ़ गए हैं, जहां का आंकड़ा उपलब्ध है और जिसकी वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से अधिक है.

रिपोर्ट तैयार करने वाले ग्रीनपीस के अभियानकर्ता सुनील दहिया कहते हैं, “एनसीएपी में 2015 के डाटा के आधार पर शहरों को शामिल किया गया है, जिसकी वजह से बहुत बड़ी संख्या में दूसरे प्रदूषित शहर छूट गए हैं. हम पर्यावरण मंत्रालय से मांग करते हैं कि वह 2017 के डाटा के आधार पर अयोग्य शहरों की सूची में बाक़ी बचे शहरों को भी शामिल करे, तभी एनसीएपी को राष्ट्रीय कार्यक्रम कहा जा सकता है और इससे पूरे देश की हवा को स्वच्छ किया जा सकता है.”

रिपोर्ट में 2024 तक पीएम10 के स्तर को सभी शहरों में 30 प्रतिशत तक कम करने के एनसीएपी के लक्ष्यों को मानते हुए यह कहा गया है कि पूरे देश में 153 शहर ऐसे होंगे, जो राष्ट्रीय मानक को पूरा नहीं करेंगे. वहीं 12 शहर ही ऐसे होंगे जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को पूरा कर पाएंगे. यदि 2024 तक दिल्ली में प्रदूषण स्तर को 30 प्रतिशत कम भी कर दिया जायेगा तो दिल्ली की पीएम10 का स्तर फिर भी 168 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होगा जो राष्ट्रीय मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर) से तीन गुणा अधिक होगा.

स्मार्ट सिटी भी प्रदूषित शहरों की सूची में

एनसीएपी में शामिल शहरों में 43 प्रस्तावित स्मार्ट सिटी भी शामिल हैं. हालांकि दिलचस्प बात यह है कि साल 2017 के पीएम10 स्तर के डाटा को देखा जाए तो पता चलता है कि प्रस्तावित 100 स्मार्ट सिटी में से 65 ऐसे हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर अधिक है और सिर्फ़ 12 शहर की वायु गुणवत्ता ही राष्ट्रीय मानक के अनुरूप है. इससे साफ़-साफ़ एनसीएपी के व्यापक होने पर सवाल उठता है.

सुनील कहते हैं, “यह चिंताजनक है कि हमारे ज्यादातर चिन्हित स्मार्ट सिटी भी ख़राब वायु प्रदूषण की चपेट में हैं और उनमें कई जगह तो वायु निगरानी डाटा भी उपलब्ध भी नहीं है.”

सुनील जोड़ते हैं, “यह समझते हुए भी कि 2024 तक 30 प्रतिशत प्रदूषण घटाने का लक्ष्य भारत की साफ़ हवा की तरफ़ पहला क़दम है, यह एक सच्चाई है कि अभी भी क़रीब 50 प्रतिशत शहर ऐसे छूट रहे हैं जिनकी वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से कहीं अधिक प्रदूषित है. करोड़ो भारतीय आने वाले सालों में ख़राब हवा में सांस लेने को मजबूर होंगे. इसलिए ज़रुरी हो जाता है कि पर्यावरण मंत्रालय और अधिक महत्वाकांक्षी कार्य-योजना बनाए, जिसमें अलग-अलग प्रदूषक कारकों से निपटने की रणनीति हो. एक व्यापक कार्य-योजना बनाकर और जवाबदेही तय करके ही हम देश के लिए स्वच्छ वायु के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.”

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