India

शराबबंदी के बाद बिहार में अब बढ़ रही है नशे की लत

Khurram Malick for BeyondHeadlines 

बिहार में शराबंबदी को लेकर नीतीश सरकार के अनगिनत दावे हैं. लेकिन इन दावों से परे सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस शराबबंदी पर पूरी तरह से अमल हो रहा है? क्या बिहार में लोगों ने शराब का सेवन बंद कर दिया है? क्या राज्य में शराब की ख़रीद-बिक्री बंद हो गई है? या फिर लोगों ने इसकी जगह कोई और जुगाड़ ढूंढ़ लिया है? 

तो इसका जवाब है नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हां! शराब की दुकानें ज़रूर बंद हो गई हैं, लेकिन उन दुकानों की जगह तस्करों ने ले ली है और राज्य में शराब की तस्करी धड़ल्ले से जारी है.

वहीं इसका दूसरा साईड इफेक्ट ये है कि यहां के लोगों ने शराब की जगह कई और दूसरी चीज़ों का सहारा लेना शुरू कर दिया है. आज लोग अपने इस नशे की लत को बरक़रार रखने के लिए शराब की जगह गांजा, अफ़ीम, चरस, हेरोइन, बोनफिक्स, नशीली दवाएं, बीड़ी और गुटका का ख़ूब इस्तेमाल कर रहे हैं. 

ख़ास कर गांजा ने शराब की बहुत हद तक भरपाई की है. चूंकि गांजा कम पैसों में मिल जाता है तो इसे गरीब से गरीब आदमी भी आसानी से ख़रीद सकता है. 

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के ज़ोनल डायरेक्टर टी.एन. सिंह के मुताबिक़, “गांजे की आवक और खपत दोनों बढ़ी है. गांजे के कारोबार से जुड़े लोग अब ज़्यादा एक्टिव हो गए हैं, जिसकी पुष्टि हमारे ज़ब्ती के आंकड़े करते हैं.”

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में 496.3 किलो गांजा ज़ब्त हुआ था, जबकि साल 2017 (सिर्फ़ फ़रवरी तक) में 6884.47 किलो गांजा जब्त हो चुका है.

शराबबंदी के बाद बिहार के विभिन्न हिस्सों में 2015-16 में 2492 किलो गांजा, 17 किलो चरस, 19 किलो अफ़ीम, 205 ग्राम हेरोइन के अलावे नशीली दवाइयों के 462 टैबलेट बरामद किए गए. 

वहीं साल 2016-17 में 13884 किलो गांजा, 63 किलो चरस, 95 किलो अफ़ीम और 71 किलो हेरोइन के साथ नशीली दवाओं के 20308 टैबलेट ज़ब्त किए गए. 

हालांकि ये आंकड़े सरकारी हैं. विभागीय सूत्रों की मानें तो बरामदगी इससे कहीं ज्यादा है. 

वहीं बिहार पुलिस के आंकड़े भी बताते हैं कि शराबबंदी लागू होने से पहले गांजा, चरस और अफ़ीम की खपत बिहार में नहीं के बराबर थी. लेकिन साल 2016 के अप्रैल में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद गांजा, चरस और अफीम के साथ-साथ हेरोइन की बरामदगी बिहार के हर ज़िले में हो रही है. यहां नशीले पदार्थों की उपज, तस्करी और ख़रीद-बिक्री के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाली राज्य और केन्द्र सरकार की एजेंसियों की चुनौतियां बढ़ चुकी हैं. प्रतिदिन राज्य के किसी न किसी स्थान से गांजे की किसी बड़ी खेप की बरामदगी ज़रूर होती है.

बता दें कि इंटर स्टेट सिंडिकेट ड्रग्स के कारोबार में सक्रिय हैं और बिहार में धड़ल्ले से ब्राउन सुगर, सांप का ज़हर और चरस आसाम, त्रिपुरा, ओड़िशा और अन्य राज्यों से लाया जा रहा है.

इसके अलावा अगर बात की जाए तो लोग अब अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए दवाओं का भी इस्तेमाल करने लगे हैं. जैसे कि सबसे अधिक लोकप्रिय खांसी की दवाएं यानी सिरप हैं, नशेड़ी लोग इसका सेवन ऐसे ही करते हैं कि मानो वह दवा नहीं शराब पी रहे हों.

वहीं बिहार के बच्चों में बोनफिक्स की लत काफ़ी तेज़ी से बढ़ रही है. यह नशा शराब, गांजा व हेरोइन से भी ज़्यादा ख़तरनाक है. बच्चे हर जगह आसानी से मिलने वाले बोनफिक्स को प्लास्टिक के माध्यम से सूंघ रहे हैं. इस नशे की चपेट में 10 से 15 वर्ष के बच्चे अधिक हैं. यह नशा शरीर को सुन्न कर देता है. 

अगर सच में नीतीश सरकार को अपने राज्य के आम जनमानस की इतनी ही फ़िक्र है तो वह हर ऐसी चीज़ों पर सख़्ती से रोक लगाए, जिससे नशा होने का अनुमान हो. लोगों के बीच जाकर उनसे बातें करें. रिहैब सेन्टर की स्थापना करें. लोगों में जागरुकता अभियान चलाएं, जिसमें यह ऐलान हो कि जो भी शराब का सेवन नहीं करेगा, उसे सरकार सम्मानित करेगी. प्रोत्साहित करेगी. तभी इस विनाशकारी  वस्तु से राज्य सुरक्षित होगा, अन्यथा इसे भी जुमला ही समझा जाएगा.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]