Md Umar Ashraf for BeyondHeadlines
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती के मौक़े पर 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के लाल क़िले में बने सुभाष चंद्र बोस म्यूज़ियम का उद्घाटन कर इसे राष्ट्र को समर्पित किया. साथ ही ट्विटर के माध्यम से आज़ाद हिंद फ़ौज के तीन बड़े अफ़सर कर्नल गुरुबख़्श सिंह ढिल्लो, कर्नल प्रेम सहगल और मेजर जनरल शाहनवाज़ ख़ान को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया.
चूंकी 24 जनवरी को जनरल शाहनवाज़ ख़ान की 136वीं जयंती थी. इसलिए मैं बहुत उत्साहित था कि उनके मज़ार पर जाकर हाज़िरी दूं. मैं लोगों से पता पूछते-पूछते जामा मस्जिद स्थित मीना बाज़ार के दाईं जानिब मौजूद उनके मज़ार पर पहुंचा.
मीना बाज़ार में लगे स्टॉल के बीच दूर से ही उस साईन बोर्ड को देखा जा सकता है, जिस पर लिखा है ‘मज़ार जनरल शाहनवाज़ ख़ान’.
बग़ल में ही एक लोहे का दरवाज़ा है, जो अंदर से बंद था. मैं ख़ुद से खोलकर अंदर गया; तब अंदर मौजूद कुछ लोगों ने मुझसे पूछा क्या काम है? मैंने इस सवाल का जवाब देने से पहले ही उनसे सवाल पूछ लिया कि आज जनरल शाहनवाज़ ख़ान की जयंती है, कोई उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करने नहीं आया?
मुझे जवाब मिला —आप पहले आदमी हैं, जो आए हैं! फिर वो आगे बताते हैं कि यहां पर लोग पुण्यतिथी पर आते हैं, और उसी दौरान साफ़-सफ़ाई होती है.
असल में मैं इस जगह इस उम्मीद से आया था कि आज भारत अपने इस बेटे को भी याद कर रहा होगा, जिसने भारत की आज़ादी में अहम रोल अदा किया; पर मेरे हाथ मायूसी लगी.
हद तो ये है कि ये पूरी जगह बहुत गंदी थी, कोई साफ़-सफ़ाई नहीं थी. लोगों ने अपने कपड़े पसार रखे थे. और जब मैंने वीडियो बनाना शुरु किया तो वहां मौजूद लोगों ने ख़ामोशी से सारे कपड़े उठा लिए.
इस जगह दो क़ब्र हैं. एक जनरल शाहनवाज़ ख़ान की, तो दूसरी उनकी पत्नी बेगम करीम जान की. रख-रखाव की कमी के कारण बेगम करीम जान की क़ब्र काफ़ी जरजर हालत में पहुंच चुकी है. उनकी क़ब्र पर लगे संगमरमर को या तो किसी ने उख़ाड़ दिया है या फिर वो ख़ुद ही गिर गया है. पर उसका गिरा हिस्सा मुझे कहीं दिखा नहीं.
जब मैंने वहां मौजूद लोगों से इस बारे मे पूछा तो उन्होंने कहा कि इस बारे में जानकारी उन लोगों ने आगे भेज दी है.
वहीं मौजूद शहाबुद्दीन ख़ान कहते हैं, जिस तरह से नेताजी को अपनी आख़िरी ज़िन्दगी गुमनामी में गुज़ारनी पड़ी. उसी तरह लोग जनरल शाहनवाज़ ख़ान को भी भुलाने की कोशिश कर रहे हैं.
वहीं मौजूद एक साहब बग़ल में मौजूद मौलाना आज़ाद के क़ब्र की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं, आज तक वहां एक लाईट भी नहीं लगी. उनके अनुसार इसके लिए कई लोगों ने कोशिश की थी.
जब मैंने उनसे पूछा कि मौलाना आज़ाद की क़ब्र पर हाज़िरी देने तो बहुत बड़े-बड़े लीडर आते हैं. तो वो तपाक से कहते हैं कि सिर्फ़ आते हैं, करते कुछ नहीं!
फिर वो वापस जनरल शाहनवाज़ ख़ान की क़ब्र की तरफ़ इशारा कर कहते हैं कि अंदर एक वाटर पंप लगा है, जो ज़माने से ख़राब है. पर आज तक उसे ठीक नहीं किया गया. जबकि इसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी एमसीडी के पास है.
जब मैंने वहां की मौजूदा विधायक अलका लांबा के मुताल्लिक़ सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि पिछले बार तो क़ौम के हमदर्द शोएब इक़बाल विधायक थे, क्या कर लिया उन्होंने? फिर उन्होंने दीवार पर लिखे कुछ नम्बर की तरफ़ इशारा कर बताया कि इसमें से किसी भी नम्बर पर कॉल रिसीव नहीं होती है.
कुल मिलाकर ये मेरे लिए बहुत ही अजीब स्थिती थी. क्योंकि मैं बहुत ही उत्साहित हो कर यहां गया था और इस उम्मीद में था कि भारत के इस लाल को लोग उसकी जयंती पर याद कर रहे होंगे, पर उसकी क़ब्र के इस बुरे हाल ने मुझे उस समय बहुत ही मायूस किया, जब पता चला कि जनरल शाहनवाज़ ख़ान के वारिस उनके नाम पर “जनरल शाहनवाज़ ख़ान मेमोरियल फ़ाऊंडेशन” नामक ट्रस्ट चला रहे हैं. परिवार के लोग अक्सर ये इलज़ाम लगाते हैं कि उनके बुज़ुर्गों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, पर सवाल उनसे भी किया जाना चाहिए कि उन्होंने कितनी ईमानदारी से अपने बुज़ुर्गों को याद किया?
याद रहे, कोई भी नायक ख़ुद से नायक नहीं बनता; उसके चाहने वाले उसे याद रखकर आने वाली नसलों के लिए नायक बनाते हैं.
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