By Tanvi Mishra
“दीदी, आपके पास पैड होगा क्या?”
“मेरे पास तो नहीं है, तुम्हें लेकर चलना चाहिए ना!”
“लेकर चलती हूँ पर…”
“ट्रेन में पैड कहाँ मिलेगा तुम्हें! ये टिशू पेपर रख लो.”
मुझे आज भी वो छोटा सा संवाद और वो ट्रेन की यात्रा याद है. एक यात्रा, जिसमें मैं एक बोरी की तरह ट्रेन सीट के कोने में जाकर दुबक गई थी. अपने पूरे जीवन में मैं कभी इतनी असहाय और मजबूर नहीं हुई, जितनी उस ट्रेन में हुई थी.
14 घंटे लंबी उस ट्रेन यात्रा में अचानक मेरी पीरियड (माहवारी) शुरू हो गई. मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, मेरे पास पैड भी नहीं था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे कपड़ों पर दाग़ लगे.
उस ट्रेन में सैनेटरी पैड वेंडिंग मशीन भी नहीं थी, जिससे मैं उस स्थिति से निपट सकती. मैंने किसी तरह रुमाल और उन कुछ टिशू पेपरों की मदद से खून रोका, और चुपचाप जाकर सीट के कोने में बैठ गई.
ट्रेन किसी स्टेशन पर रूकती तो मेरी साँस रुक जाती. मैं बस यही दुआ कर रही थी कि कितनी जल्दी ये सफ़र ख़त्म हो, सब लोग ट्रेन से निकलें और मैं अपनी सीट से उठ सकूँ.
मैं जानती हूँ कि अनगिनत महिलाएं मेरी स्थिति को समझ रही होंगी, वो मेरा दर्द समझ रही होंगी. महिलाएं अपनी पीरियड का समय नहीं तय कर सकतीं, काश हम कर सकते पर ये संभव नहीं. लेकिन हम पीरियड के लिए तैयार तो रह सकते हैं.
पीरियड के लिए तैयार रहना संभव है, ख़ासकर ट्रेन यात्राओं के दौरान, अगर भारतीय रेलवे हमारी थोड़ी सी मदद कर दे. रेलवे को कुछ बड़ा नहीं करना, बस महिलाओं के हितों के लिए कुछ फ़ैसले लेने हैं. रेलवे के एक क़दम से लाखों-करोड़ों महिला यात्री राहत की साँस लेंगी.
आप खुद को मेरी जगह पर रखिए, सोचिए कि बिना हिले-डुले, डर से सहमकर एक जगह बैठना कैसा होता है. एक यात्री के रूप में महिलाओं से जुड़ी ये समस्या हज़ार गुना बड़ी हो जाती है.
हम स्टेशन पर उतरकर पैड तो खरीद नहीं सकते. अगर किसी भी महिला को ट्रेन में पीरियड आती है और ट्रेन में पैड की सुविधा हो तो देश की कितनी महिलाओं को इससे लाभ होगा.
ट्रेन के शौचालय भी महिलाओं के लिए कम समस्या नहीं हैं. कई बार तो शौचालय इतने गंदे होते हैं कि महिलाएं उसमें जाने से कतराती हैं. और मैंने कितनी महिलाओं को देखा है कि वो शौच को रोककर रखती हैं क्योंकि शौचालयों के पास पुरुषों की भीड़ होती है.
महिलाओं के लिए अलग शौचालय की सुविधा हमें एक सुरक्षा और प्रइवेसी का एहसास देगी, ये हमारे लिए बहुत बड़ी राहत होगी.
मैं जानती हूँ कि बहुत सारी महिलाएं अपना सिर हिला रही होंगी कि मैंने जो लिखा है वो बिल्कुल होना चाहिए. पर अब सिर हिलाने से नहीं, व्यवस्था को हिलाने से काम होगा.
2019 के चुनाव सामने हैं और महिला सशक्तिकरण का नारा गली-गली में लगेगा. हम और आप मिलकर सुनिश्चित करें कि ये नारा, हक़ीक़त में बदले. आइये, साथ मिलकर कोशिश करें कि इस सरकार या आने वाली सरकार के लिए महिलाओं से जुड़ा ये मुद्दा प्राथमिकता बने.
समस्या ये भी है कि चुनावों के समय महिला सशक्तिकरण का खूब नारा लगता है और बाद में सारे वादे और इरादे हवा हो जाते हैं. इस बार ऐसा ना हो इसलिए हम सबको मिलकर, महिला हो या पुरुष, सबको साथ आना होगा.
मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती कि जो मेरे साथ हुआ वो मेरी किसी बहन के साथ हो.
मैंने उन लाखों-करोड़ों महिलाओं को राहत की सांस दिलाने के लिए www.change.org पर ये पेटीशन शुरू किया है. इस पर हस्ताक्षर ज़रूर करें.
आईए मौजूदा रेल मंत्रालय या चुनावों के बाद बनने वाले रेल मंत्रालय से कहें कि महिला यात्रियों के लिए:
—सभी ट्रेनों में सैनेटरी पैड वेंडिंग मशीन हो.
—ट्रेनों में अलग से शौचालयों की व्यवस्था की जाए.
—शौचालयों में पैड बदलने और फेंकने की साफ़-सुथरी व्यवस्था हो.
—और इन सारी सुविधाओं के बारे में विज्ञापन जारी किए जाएं ताकि पीरियड (माहवारी) के प्रति जागरुगता फैले.
दोस्तों, मेरा साथ दें ताकि भारतीय रेल और सभी दलों के नेता हमारी मांगों के प्रति संवेदना दिखाएं और इस मुद्दे पर ठोस क़दम उठाएं. और नीचे दिए इस लिंक पर क्लिक करके इस पेटिशन पर अपना हस्ताक्षर ज़रूर करें.
इस अभियान में जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें…
#PadWaliTrain ताकि ट्रेन से यात्रा करने वाली हर महिला सशक्त हो. वो बिना किसी दाग़ के डर के, खुशी से और चैन और सुकून से अपना सफ़र पूरा करे.
