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‘करूणा—2019’ के लिए राहिला ने गंवाई अपनी जान, लेकिन गुजरात सरकार ने परिवार को पूछा तक नहीं…

Khanji Muhammed Harith for BeyondHeadlines

अहमदाबाद: एक मां को अब भी अपनी उस बेटी का इंतज़ार है, जो 14 जनवरी की सुबह अपने घर से निकली थी. ये मां जब भी किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ सुनती हैं, दरवाज़े की तरफ़ दौड़ पड़ती हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि उनकी बेटी इस दुनिया से इतनी दूर जा चुकी है, जो कभी लौट कर नहीं आ सकती.   

ये कहानी 22 साल की राहिला उस्मान की है. जो गांधीनगर के एक मैनेजमेंट कॉलेज में एमबीए फर्स्ट सेमेस्टर की स्टूडेन्ट थी. 14 जनवरी की सुबह वो अपने घर से लोगों की पतंगबाज़ी की वजह से ज़ख्मी होने वाले पक्षियों को बचाने के लिए निकली थी. लेकिन पक्षियों की जान बचाने के लिए निकली इस राहिला ने अपनी जान ही गंवा दी. जो राहिला परिंदो के जिस्म पर ज़ख्म बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, वो अपने जिस्म पर ज़ख्म खा गई…

राहिला बीबीए के बाद एमबीए करने के साथ-साथ इस्लामिक फाईनेंस की पढ़ाई भी कर रही थीं. उन्हें कविता लिखना बहुत पसंद था. वो अपनी कविताओं और लेखों के ज़रिए समाज में कुछ नया करना चाहती थीं.

राहिला उस्मान की लिखी अंग्रेज़ी की एक कविता…

राहिला के पिता मो. उस्मान बताते हैं कि उसे पक्षियों व जानवरों से काफ़ी लगाव था. इसलिए वो गुजरात सरकार के वन विभाग द्वारा मकर संक्रांति के मौक़े पर चलाए जा रहे ‘करूणा —2019’ अभियान में बतौर वॉलिन्टिर शामिल हुई थीं. मो. उस्मान इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं. कई सालों तक विदेशों में काम करने के बाद अब भारत लौट चुके हैं.

बता दें कि राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने 11 जनवरी को अहमदाबाद में ‘करुणा —2019’ अभियान की शुरूआत की, जो 10 से 20 जनवरी तक चला. एक दावे के मुताबिक़ क़रीब 20 हज़ार पक्षियों की जान इस अभियान में बचाया गया. हालांकि मुख्यमंत्री ने खुद भी 14 जनवरी को अहमदाबाद की खाडिया के पोल में पतंगें उड़ाई.

राहिला के घर वालों को इस बात का भी ग़ुस्सा है कि क़रीब एक सप्ताह गुज़र जाने के बाद भी सरकार का कोई नुमाइंदा उनसे मिलने या किसी भी तरह का आश्वासन देने नहीं आया, जबकि वो सरकार के साथ जुड़कर उनके लिए बतौर वॉलिन्टियर काम कर रही थी.

घर वालों का कहना है कि वो चाहते हैं कि गुजरात के सीएम उनसे मिलने का वक़्त दें ताकि वो उन्हें बता सकें कि चाईना के धागे प्रतिबंधित होने के बावजूद गुजरात के बाज़ारों में धड़ल्ले से बिक रहे हैं. उनसे ये अपील भी कर सकें कि जिस तरह से सरकार पक्षियों की जान बचाना चाहती है, ठीक वैसे ही वो इंसानों के बारे में भी सोचे. इनके हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी भी सरकार की ही है.

घर वाले ये भी कहते हैं कि, बात-बात में चीन का विरोध करने वालों और ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने वालों में ये संदेश तो जाना ही चाहिए कि कम से कम हम चीन के धागे का इस्तेमाल हमेशा के लिए बंद कर दें.

खून में भीगा हुआ गुजरात सरकार के वन विभाग द्वारा जारी राहिला का आईडी कार्ड…

राहिला का परिवार मूल रूप से मोडासा का रहने वाला है, लेकिन राहिला और इनकी छोटी बहन की पढ़ाई के लिए पूरा परिवार अहमदाबाद शिफ्ट हो गया था. छोटी बहन फिलहाल नीट की तैयारी कर रही हैं.

पिता मो. उस्मान बताते हैं कि वो घर से क़रीब 9.30 बजे अपनी स्कूटी से निकली थी. ढ़ाई बजे उसने अपनी मां को कॉल करके बताया कि वो कई पक्षियों की जान बचाकर बहुत ख़ुश है और अब घर लौट रही है. लेकिन जब एक-डेढ़ घंटे गुज़र गए तो मां को फ़िक्र हुई और उन्होंने दुबारा कॉल किया. मगर इस बार फोन किसी और ने रिसीव किया और उसने बताया कि राहिला का एक्सिडेन्ट हुआ है, आप लोग के.डी. हॉस्पीटल आ जाईए. जब हम अस्पताल पहुंचे तो वो इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी.

मो. उस्मान ये भी कहते हैं, “जब वो गांधीनगर से लौट रही थी तो रास्ते में अचानक चाईना वाला मांझा गले को रेतते हुए निकल गया और वो गिर पड़ी… तब वहां मौजूद लोग उसे खून से लथपथ हालत में अस्पताल ले गए, लेकिन वहां उसने दम तोड़ दिया. लेकिन मैं तुरंत मदद करने वाले लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. यक़ीनन उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव की अच्छी मिसाल पेश की है.”

अपने दोस्तों के साथ राहिला उस्मान…

बता दें कि 14 जनवरी को मकर संक्रांति वाले दिन चाईना की ख़तरनाक डोर ने सिर्फ़ राहिला की ही जान नहीं ली, बल्कि इसने गुजरात के 15 से ज़्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया. 84 लोगों के गले कट गए और 201 लोग घायल हुए. जबकि गुजरात में चीन के धागों व मांझों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है.    

हालांकि समाजसेवी तारिक़ का कहना है कि असल समस्या तो ये है कि हम सिर्फ़ चाईना डोर का विरोध करते हैं, जबकि भारत में बनने वाले दूसरे मांझे भी उतने ही घातक हैं.

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