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सवर्ण आरक्षण के ख़िलाफ़ लखनऊ में धरना, बताया संविधान व सामाजिक न्याय पर बड़ा हमला

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : सवर्ण आरक्षण के ज़रिए सामाजिक न्याय और संविधान पर हमले के ख़िलाफ़ अम्बेडकर प्रतिमा जीपीओ हज़रतगंज, लखनऊ में सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया.

सभी ने एक स्वर में कहा कि सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का फ़ैसला जुमला नहीं, संविधान, सामाजिक न्याय पर बड़ा हमला है. यह आरक्षण के ख़ात्मे की मनुवादी साज़िश है. इसे बर्दाशत नहीं किया जाएगा. नरेन्द्र मोदी की बधाई ने सामाजिक न्याय के पक्षधर राजनीतिक दलों के विश्वासघात को साफ़ कर दिया जिसे अवाम माफ़ नहीं करेगी. सरकार 2 अप्रैल के भारत बंद को भूले नहीं. अगर फ़ैसला वापस नहीं लेती तो अवाम सड़कों पर उतरेगी.

वक्ताओं ने कहा कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है. आरक्षण की अवधारणा भागीदारी, राष्ट्र निर्माण और लोकतंत्र को मज़बूत करती है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक रुप से पिछड़े बहुजनों को प्रतिनिधित्व देती है. सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केन्द्र सरकार का फैसला संविधान विरोधी है. भाजपा ने सत्ता में आने के बाद बाबा साहेब भीमराम अम्बेडकर के सपनों के भारत के संविधान को बदलने की हर संभव कोशिश की है. आरक्षण का यह बदलाव उसके ख़ात्मे की तैयारी है. सत्ता व शासन की संस्थाओं में पहले से ही सवर्णों की भागीदारी आबादी के अनुपात से कई गुणा ज्यादा है. इसलिए सवर्णों को आरक्षण देना सत्ता-शासन की संस्थाओं में उसके वर्चस्व को बनाए रखने की गारंटी की कोशिश है. इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. क्योंकि यह शासन-सत्ता व शैक्षणिक संस्थाओं में भागीदारी व प्रतिनिधित्व के अवसरों की संवैधानिक व्यवस्था के ख़ात्मे की तैयारी है.

वक्ताओं ने मांग की कि बहुजनों को सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए यह दायरा उनकी संख्या के आधार पर होना चाहिए पर जातिगत जनगणना पर सरकार चुप्पी साधे हुए है. न्यायपालिका से लेकर निजी क्षेत्र में यह विषमता जगज़ाहिर है. सवर्ण आरक्षण के पक्ष में खड़े होने वाले सामाजिक न्याय के नेताओं को बहुजन समाज माफ़ नहीं करेगा. यह किसी जाति का विरोध नहीं, बल्कि उस वर्चस्ववादी मनुवादी माॅडल का विरोध है जो भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रुप में नहीं स्वीकारता. सदन में सामाजिक न्याय का पक्षधर होने का दावा करने वाले विपक्ष की भूमिका ऐसी थी जैसे कि आरक्षण पाने वाला समाज एक तबक़े का शोषण कर रहा हो और उसे भी आरक्षण देकर वह जैसे पाप से मुक्ति की कामना कर रहा हो. शोषितों-वंचितों के हक़-हूक़ूक की लड़ाई राजनीतिक दलों की मोहताज कभी नहीं रही. उसने जो भी अधिकार पाए हैं कुर्बानियां के बूते. मुस्लिम आरक्षण को धर्म आधारित आरक्षण और आरक्षण 50 फ़ीसद से ज्यादा नहीं हो सकता है, की बात करने वाली भाजपा बताए कि किस आधार पर वह 10 प्रतिशत आरक्षण की बात कह रही है. आर्थिक अस्थिरता और विकराल होते रोज़गार के संकट के दौर में सार्वजनिक उपक्रमों की मज़बूती पर बात होनी चाहिए.

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