BeyondHeadlines News Desk
नई दिल्ली: ‘अगर वक़्त रहते मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे को सुलझा लेता तो आज ये हालात पैदा नहीं होते.’
ये बातें आज जामिया मिल्लिया इस्लामिया के लॉ डिपार्मेन्ट द्वारा संविधान, क़ानून और वैधता की रोशनी में ‘‘ट्रिपल तलाक़” मुद्दे पर आयोजित परिचर्चा में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लॉ डिपार्मेन्ट के पूर्व चेयरमैन मुहम्मद शब्बीर ने कही.
मुहम्मद शब्बीर देश के जाने माने क़ानून विशेषज्ञ हैं और इस परिचर्चा के मुख्य वक्ता थे.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड से ट्रिपल तलाक़ के बारे में बदलाव करने को कहना चाहिए था, न कि संसद से.
आगे उन्होंने कहा कि भारत के मुस्लिम समुदाय में एक ही बार में ‘तलाक़, तलाक़, तलाक़’ यानी ट्रिपल तलाक़ कहकर तलाक़ देने के मुद्दे पर शाह बानो केस के बाद से कई दल राजनीति करते रहे हैं, जो इन दिनों कुछ ज्यादा ही हो गई है.
मुहम्मद शब्बीर ने कहा कि यह सही है कि इस ट्रिपल तलाक़ का कुछ लोगों ने ग़लत फ़ायदा उठाया और ख़त तथा व्हाट्स एप तक से तलाक़ देने के कुछ मामले सामने आते रहे हैं. लेकिन मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड अगर वक़्त रहते ट्रिपल तलाक़ के चलन को रोकने के लिए खुद ही क़ानूनी ड्राफ्ट बनाकर इसमें बदलाव के लिए सरकार से पहल करने को कहता तो आज इस मुद्दे पर राजनीतिक दल सियासी रोटियां नहीं सेक रहे होते. बोर्ड शरिया का सहारा लेकर आधुनिक समाज के हिसाब से इसमें तब्दीली ला सकता था.
उन्होंने कहा कि आम लोगों में यह धारणा है कि भारत में पूरे मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक़ का चलन है, जबकि यह इस्लाम की चार मसलकों में से सिर्फ़ हनफ़ी मसलक में प्रचलित था.
उन्होंने ये भी बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, अल्जीरिया, क़ुवैत, इंडोनेशिया, ईरान, सोमालिया और तुर्की सहित 84 देशों में ट्रिपल तलाक़ ही नहीं, बल्कि ज़ुबानी तलाक़ देने तक पर बहुत पहले ही पाबंदी लगाई जा चुकी है. इन देशों में शरिया अदालतों में तलाक़ की अर्ज़ी देनी होती है और तीन महीने तक भी कोई सुलह नहीं होने पर तलाक़ को मंज़ूरी दी जाती है.
उन्होंने कहा कि भारत में सुधार के लिए मुस्लिम समुदाय के खुद पहल नहीं करने के चलते राजनीतिक दलों को इसका सियासी फ़ायदा लेने का मौक़ा मिल गया. जिसकी मिसाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुसलमानों में तलाक़ के बारे में सरकार एक ऐसा विवादास्पद अध्यादेश लाई है, जिसमें एक बार में ट्रिपल तलाक़ देने वाले को तीन साल की जेल का प्रावधान किया गया है. ऐसा अजीब प्रावधान केवल भारत में ही देखने को मिला है.
सवाल जवाब सत्र में एक लड़की द्वारा यह पूछे जाने पर कि भारत के मुस्लिम पर्सनल लाॅ में महिलाओं को खेती की ज़मीन में हिस्सेदारी क्यों नहीं दी गई? इसके उत्तर में उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना को ज़िम्मेदार बताया.
उन्होंने कहा कि जिन्ना ज़मींदारों की वकालत करने वाले व्यक्ति थे और ज़मींदारों के दबाव में उन्होंने 1937 में बने मुस्लिम पर्सनल लाॅ ड्राफ्ट में मुस्लिम महिलाओं को खेती की ज़मीन में हिस्सेदारी से वंचित कर दिया.
जामिया के विधि विभाग की डीन नुज़हत परवीन ख़ान ने कहा कि ट्रिपल तलाक़ मुस्लिम समाज में सुधार करने के बजाए राजनीति करने का मुद्दा बन चुका है. शाह बानो केस के वक़्त से ही इस बारे में सियासत की जा रही है, जो इन दिनों कहीं ज़्यादा बढ़ गई है.
जामिया मिल्लिया के रजिस्ट्रार ए. पी. सिद्दीक़ी (आईपीएस) ने बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई करते समय वह और नुज़हत परवीन दोनों ही मुहम्मद शब्बीर के छात्र रह चुके हैं.
उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक़ जैसे ज्वलंत सियासी और धार्मिक मुद्दे को शब्बीर साहब से अच्छी तरह कोई नहीं समझा सकता था.
इस परिचर्चा में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों ने हिस्सा लिया.
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