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पिछले चार सालों से सो रहे ‘दादा’ अब ऐन इलेक्शन के मौक़े पर जागे हैं…

By Abhishek Upadhyay

ये दीदी और दादा की जंग है. दादा जो पिछले चार सालों से सो रहे थे और ऐन इलेक्शन के मौक़े पर जागे हैं. उन्हें कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करवानी है. ऐन चुनाव के मौक़े पर. 

वे इतने अधिक अधीर हैं (अंग्रेज़ी में कहते हैं कि डेसपरेट हैं) कि चुनाव के मौक़े पर सब कुछ कर लेना चाहते हैं. इसी समय विजय माल्या भी वापस खींच लिया जाए. क्रिश्चियन मिशेल एकदम टाइमिंग पर लाया ही जा चुका है. चार सालों से भरपूर बहुमत होने के बावजूद जिसके बारे में सोच तक नहीं सके, वो सवर्ण आरक्षण भी इसी समय दे दिया जाए. राम मंदिर की वो ज़मीन जिसे लौटाने की बात सुप्रीम कोर्ट पिछले एक दशक में तीन बार ख़ारिज कर चुका है, वो भी इसी समय लौटा दी जाए. यानी बहुत कुछ अगले एक महीने में करना है. चुनाव आचार संहिता मार्च के पहले हफ्ते में लग सकती है. सो वो सब कर लेना हैं जो देश-विदेश में आयोजित “सम्मान समारोहों” में व्यस्त होने के चलते पिछले साढ़े चार सालों में नहीं किया जा सका. सो घोटालों के आरोपी राजीव सक्सेना और दीपक तलवार भी टांग लिए गए हैं. 

अख़बारों में ये भी छपवा दिया गया है कि एक हवाई जहाज़ कैरेबियाई देश भेजा जा चुका है, मेहुल चौकसी की अगवानी करने के लिए. मीडिया के घोषित जेम्स बॉंड डोवल साहब इन फुटकर कामों में जुटे हुए हैं. वे साढ़े चार सालों में न दाउद का कुछ न कर पाए, न हाफ़िज़ को छू पाए जो पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है. सुबह शाम उनसे प्लांटेड ख़बरों के “छर्रे” बटोरने वाला मीडिया पिछले साढ़े चार सालों से बताता आ रहा है कि वे पाकिस्तान में न जाने कितने सालों तक भेष बदल कर रहे हैं. 

पाकिस्तान उनके नाम से वैसे ही थर थर कांपता है जैसे निज़ामुद्दीन के फुटपाथ पर ज़िन्दगी बसर कर रहे गरीब सर्दियों की रात में बगैर कंबल के कांपते हैं. इस सबके बावजूद डोवल साहब पाकिस्तान के खेतों से मूली तक न उखाड़ सके. बाक़ी उनके बारे में बातें बहुत बड़ी-बड़ी कही जाती हैं. सो अब ऐन चुनाव के मौक़े पर बंगाल में धावा बोला गया है. 

बताया जा रहा है कि इसके पीछे भी डोवल साहब की बेहद अहम सलाह शामिल है. चूंकि यूपी में सीटें बुरी तरह घटने का अनुमान है. गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में ग्राफ़ गिरना ही गिरना है सो भरपाई के लिए बंगाल टारगेट है. अब ऐन चुनाव के मौक़े पर वहां के पुलिस कमिश्नर की याद आ रही है. 

सीवीसी के मुताबिक़ उनके ख़िलाफ़ शिकायत साल 2017 की है. मगर पूछताछ और कार्यवाही के लिए ऐन 2019 का फ़रवरी महीना ही मिला था, क्योंकि बंगाल जीतने के लिए माहौल बनाना बहुत ज़रूरी है. और माहौल बनाने के लिए उस सीबीआई को चुना गया है जिसके अधिकारी आपस में ही सिर फोड़कर निष्पक्ष जांच की आत्मा को ही लहूलुहान कर चुके हैं. अदम गोंडवी मेरे प्रिय शायर हैं. सो उनको याद करते हुए अपनी बात को विराम देता हूं—

“जो ‘डलहौजी’ न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे

कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे

ये वन्दे मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर

मगर बाज़ार में चीज़ों के दुगने दाम कर देंगे

सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे

ये अगली योजना में घूस खोरी आम कर देंगे”

जय हो।

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