नामवर सिंह के लिए रखा गया मौन, भारत सरकार से ‘भारतीय भाषा नीति’ के निर्माण की मांग

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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: मातृभाषा दिवस के पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण की मुहिम ‘हिन्दी हैं हम’ के तहत ‘मातृभाषा में विकास के अवसर’ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर में  किया गया. 

इस कार्यक्रम की शुरुआत हिन्दी जगत के प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह के याद में 2 मिनट के मौन से हुआ.

इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक राहुल देव ने कहा कि “आजकल आर्थिक विकास को एकमात्र विकास मान लिया जाता है और अगर कोई भाषा आर्थिक विकास ना कर पाए तो उस भाषा का कोई महत्व नहीं समझा जाता है. भारतीय भाषाओं के विकास और अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इनका डिजिटलकरण होना ज़रूरी है.” 

अतुल कोठरी ने कहा कि “शिक्षा का अपनी भाषा में होना बहुत ज़रूरी है. अपनी भाषा का एक भावात्मक माध्यम होता है. क्रिएटिव और रिसर्च जैसे चीज़ें अपनी भाषा में ही अच्छे तरह से हो सकते हैं. अंग्रेज़ी के बिना विकास होने का भ्रम लोगों के मन से निकलना चहिए.”

गिरीश झा ने कहा कि “भारत की कई भाषाओं की स्थिति बहुत गम्भीर है और ये भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं. इन भाषाओं की यह दशा सरकार के द्वारा पर्याप्त फंड ना देने से हुआ है तथा भाषाओं में टेक्नॉलॉजी के अभाव के कारण भी लोग अपनी भाषा से दूर होते जा रहे हैं.”

विजय नाईक ने कहा कि “घर में अपनी मातृभाषा में बात हो और बच्चों का शिक्षण अपनी भाषा में हो, मैं इसका समर्थक हूं. अंग्रेज़ी का अतिक्रमण देश के सभी भाषाओं में हुआ है और इसका प्रभाव गांवों क़स्बों तक़ भी फैला हुआ है. भारतीय भाषाओं को मान्यता ज्यादा से ज्यादा मिले, इसके लिए नए तरह से सम्मेलन होने चहिए. भाषाओं के विकास के लिए केन्द्र सरकार से ज़्यादा राज्य सरकार के ज़िम्मेवारी अधिक है.”

रवि प्रकाश टेकचंदाणी ने कहा कि “भारतीय भाषाओं के विकास के लिए भारत सरकार को भारतीय भाषा नीति का निर्माण करना चहिए.”

बांग्ला भाषा पर बोलते हुए जयंत घोषाल ने कहा “किसी एक भाषा का दूसरे भाषा के साथ कोई आक्रोश नहीं है. मुझे एहसास होता है कि बांग्ला भाषा भी संकट में है. बांग्ला भाषा एक ही तरह से  बच सकती है अगर बांग्ला भाषा हिंदी के साथ रहे.”

मैथिली भाषा पर अपने विचार रखते हुए श्याम किशोर सहाय ने कहा “मैथिली भाषा आज के समय में केवल 1-2 ज़िलों तक ही सिमित रह गयी है. मैथिली कोई बोली नहीं, एक भाषा है. उसकी अपनी एक लिपि है. मगर आज वह लिपि लुप्त हो गई है और किसी भाषा की लिपि का लुप्त होना एक बड़ा संकट होता है.”

इस कार्यक्रम में मराठी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती, संस्कृत, मैथिली, सिंधी जैसे भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ वक्ता एक मंच पर एकजुट हुए और अपने अपने विचार रखे.

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