उनके साथ हिन्दू भी जुड़ा हुआ है और राम भी. फिर भी वे बीजेपी के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं. पर वाक़ई द हिंदू के एन. राम अद्भुत काम कर रहे हैं. उन्होंने राफेल “डील” की परत दर परत निचोड़कर रख दी है.
एन. राम ने राफेल के मामले में वे सारे तथ्य उठा लिए हैं जो किसी भी डील को घोटाले के एकदम क़रीब ला देते हैं. ये शत-प्रतिशत तय है कि एन. राम को रक्षा मंत्रालय की फ़ाइल नोटिंग से लेकर राफेल की प्राइसिंग के ब्यौरे तक सारे ही तथ्य वे ब्यूरोक्रेट्स ही दे रहे हैं जो मोदी सरकार के पिछले लगभग 5 सालों में पीएमओ के अजीबो-गरीब फ़रमानों से त्रस्त रहे हैं. जिन्हें चाबुक की नोक पर चलाया जाता रहा है, कठपुतलियों की तरह नचाया जाता रहा है.
शायद उन्हें भी हवा का अंदाज़ा है सो जो कुछ पिछले 5 सालों में दबाकर रखा, अब उधेड़वा रहे हैं. पर सवाल ये भी है कि आख़िर एन. राम ही क्यों? एन. राम तक ही ये सारे ‘दस्तावेज़’ क्यों पहुंचाए जा रहे हैं?
यही राम की विश्वसनीयता है जो पत्रकारिता के पिछले 40 सालों में उन्होंने कमाई है. एन. राम फ्रंटलाइन के भी एडिटर रहे हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दिनों में मैंने इस मैगज़ीन की विश्वसनीयता का वो आलम भी देखा है जब ये आईएएस की तैयारी करने वाले हर हाथों में बाइबल की तरह पाई जाती थी.
एन. राम ने कोई पहली बार लीक नहीं तोड़ी है. बोफोर्स घोटाला जिसने राजीव गांधी की नींद उड़ा दी थी, चित्रा सुब्रमण्यम और एन. राम की क़लम से आकार लेता हुआ खोजी पत्रकारिता की दुनिया में मील का पत्थर बन गया. उसके लगभग तीन दशक बाद एन. राम ने अपनी पत्रकारिता और खोजी दृष्टि से कमोबेश वही स्थिति प्रधानमंत्री मोदी के लिए पैदा कर दी है.
एन. राम जिन सवालों को सामने रख रहे हैं, उनका जवाब देने से पीएमओ उसी तरह भाग रहा है, जैसे 100 मीटर में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले जैमेका के धावक उसेन बोल्ट ट्रैक पर भागते हैं. फ़र्क़ इतना है कि उसेन बोल्ट ट्रैक पर भागते हैं. पीएमओ ट्रैक छोड़कर भाग रहा है.
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की बातचीत से लगता है कि उनके पास रक्षा मामलों की उतनी ही जानकारी है जितनी सचिन तेंदुलकर और रेखा को राजनीति की है. बावजूद वे राफेल का बचाव कर रही हैं. अनुभव और ज्ञान की नितांत कमी के बावजूद अचानक से रक्षा मंत्री बना दिए जाने की बड़ी क़ीमत चुका रही हैं वे. मनोहर पर्रिकर समझदार निकले. सही समय पर गोवा निकल लिए.
राफेल का बचाव करने वाले एक ब्लॉगिंग मिनिस्टर अरुण जेटली भी हैं, जिनके बारे में तरह तरह की चर्चाएं आम हैं. कुछ लोग ये भी चर्चा कर रहे हैं कि राफेल के जो कागज़ ऐन चुनाव के मौक़े पर मीडिया के पास पहुंच रहे हैं, ये वही कागज़ हैं जो जेटली जी के रक्षा मंत्री रहते हुए अलग सहेज लिए गए थे और ‘सही समय’ पर ‘सही जगह’ पहुंचाए जा रहे हैं.
उनकी थ्योरी के मुताबिक़ मोदी सरकार में खुद जेटली जी को ‘अपने मुताबिक़’ काम करने का मौक़ा नहीं मिला सो वे अपनी आदत के मुताबिक़ काम लगाने में लग गए हैं. जेटली जी काम बहुत करीने से लगाते हैं. उनकी एक मीडिया आर्मी भी है जो उनके इशारे पर कभी खुद कभी सही जगहों पर चीजें प्लांट करती है. हालांकि ये लोग कांग्रेसी भी हो सकते हैं जो ऐसा कह रहे हैं. पर कह रहे हैं, ये सत्य है और कहने वालों को कौन रोक सका है?
अब कुछ सवाल जो एन. राम ने अपनी रिपोर्ट्स में उठाए हैं और जिनका जवाब आर्यभट्ट जैसे उपग्रहों की खोजी आंखें भी नही ढूंढ पा रही हैं —
सवाल 1 —36 राफेल खरीदने से प्रति जेट विमान कीमत में 41 फीसदी का इज़ाफ़ा क्यों हुआ?
सवाल 2 —राफेल डील से भ्रष्टाचार निरोधी प्रावधान क्यों गायब किए गए?
सवाल 3 —पीएमओ इस डील में इस क़दर क्यों टांग अड़ा रहा था कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को फ़ाइल नोटिंग में ये बात लिखनी पड़ी?
सवाल 4 —राफेल का सौदा करने वाली टीम के उन एक्सपर्ट्स की राय क्यों डस्टबिन में डाल दी गई जो इसे यूपीए सरकार की तुलना में एक ख़राब डील बता रहे थे?
और सबसे बड़ा सवाल कि आख़िर एक भयंकर क़र्जे़ में डूबे दीवालियापन की कगार पर खड़े ‘महामानव’ को मोदी सरकार ने इस डील का प्रसाद क्यों दिलवाया? ये बात हम नहीं कह रहे. खुद फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति इसकी पुष्टि कर चुके हैं. बाक़ी अनिल अंबानी को ‘महामानव’ लिखना मेरी ‘वित्तीय’ मजबूरी है क्योंकि वे मानहानि का दावा जब ठोंकते हैं तो शुरुआत ही दस हज़ार करोड़ से करते हैं. मैं उन्हें दस हज़ार न दे पाऊंगा. दस हज़ार करोड़ कहां से लाऊंगा?
ये भी एक घोषित तथ्य है कि एन. राम वामपंथी रुझान वाले पत्रकार हैं, मगर जब तक आपकी क़लम सत्य उगल रही हो, सत्ता और पूंजीवाद के अपवित्र गठजोड़ का पर्दाफाश कर रही हो, ये रुझान-वुझान कोई मायने नहीं रखता. सच सामने आना ही चाहिए. इस सरकार में एन. राम ला रहे हैं. अगली सरकार में कोई और लाएगा. यही पत्रकारिता का धर्म है…
