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अपने शहर की पुलिस को बताईए कि धारा —66ए निरस्त हो चुकी है

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: देश के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 15 फ़रवरी 2019 को सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे अपने पुलिस-कर्मियों को सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून की धारा —66ए को निरस्त किए जाने की जानकारी दें. इस धारा को 24 मार्च, 2015 को निरस्त कर दिया गया है. अब इसके तहत अनावश्यक रूप से किसी को गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता.

इससे 07 जनवरी, 2019 को भी सुप्रीम कोर्ट ये चेतावनी दे चुका है कि अगर ख़त्म हो चुकी सूचना प्रौधोगिकी की धाराओं के तहत गिरफ़्तारी होती है, तो यह आदेश देने वाले अधिकारियों को ही जेल में डाल दिया जाएगा. 

बता दें कि सोशल मीडिया पर विवादास्पद पोस्ट, कमेंट या कार्टून पर आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कार्रवाई होती थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को निरस्त कर दिया है. 

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि कमेंट करने पर आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इस धारा के तहत अब मामला नहीं चलाया जा सकेगा. इस धारा को निरस्त किए जाने से अब कमेंट करने पर तुंरत होने वाली गिरफ्तारियों पर रोक लगेगी. हालांकि अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.

धारा 66ए का सरकार द्वारा दुरुपयोग करने के मामले में ये फ़ैसला जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने सुनाया था. कोर्ट ने उस समय कहा था कि आईटी एक्ट साफ़ तौर पर लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा था कि ये क़ानून काफ़ी अस्पष्ट है. ये भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है. अब इस क़ानून के तहत किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता. 

क्या है आईटी एक्ट की धारा 66-ए

आईटी एक्ट सन् 2000 में बना. लेकिन इसमें 2008 में बदलाव हुए. इसके बाद धारा 66-ए विवादों में आ गई. इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी पर बेस्ड किसी भी कम्युनिकेशन मीडियम से भेजा जाना वाला मैसेज़ अगर आपत्तिजनक, अश्लील या अपमानजनक है तो इस धारा के तहत गिरफ्तारी हो सकती है. यह धारा इन मामलों में लग सकती है-

* कोई भी इन्फॉर्मेशन जो अपमानजनक या धमकी भरी हो.

* ऐसी जानकारी जो कम्प्यूटर रिसोर्स या उससे जुड़े संचार माध्यमों का इस्तेमाल कर भेजी गई हो और जिसका मक़सद किसी को आहत करना, असहज करना, अपमानित करना, नुक़सान पहुंचाना, धमकाना या नफ़रत फैलाना हो.

* कोई ई-मेल या मैसेज़ जो गुमराह करता हो, असहज करता हो या आहत करता हो.

* इस धारा के तहत दोष साबित होने पर तीन साल की सज़ा और जुर्माने का भी प्रावधान है.

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