Saba for BeyondHeadlines
आज मैं भोपाल से पूरे एक हफ़्ते बाद ऑफ़िस की ट्रेनिंग ख़त्म कर देवरिया वापस आ रही थी. गोरखपुर में ट्रेन के बाद बस लेनी थी. लेकिन बस अड्डे जाकर मालूम हुआ कि आज भारत बन्द है.
घंटों इंतज़ार के बाद बड़ी मुश्किल से एक बस मिली. बस चली तो आदत के मुताबिक़ बग़ल में बैठी औरत से मैं बातें करने लगी.
अभी हमारी बस थोड़ी देर ही चली थी कि बस के सामने भारत बन्द का जुलूस आ गया. पाकिस्तान का एक झंडा शायद काला हार पहनाया हुआ, आतंकवादी की तस्वीर जूते-चप्पल के हार से लदी हुई… ढ़ेर सारे तिरंगे और बुलन्द नारे —“पाकिस्तान मुर्दाबाद… भारत माता की जय…”
बस का माहौल भी गर्मा गया था. अंदर भी लोग जोश में थे. लोग तरह-तरह की बातें ख़ास तौर पर मुसलमानों को लेकर कर रहे थे. अब ऐसे में बग़ल वाली आंटी के साथ हमारी बातचीत का मुद्दा भी पाकिस्तान, कश्मीर और मुसलमान हो चुका था. मैं उनसे बात तो पूरे दिल से ज़रूर कर रही थी, लेकिन ये सोच-सोच कर सिहर रही थी कि कहीं ये मेरा नाम पूछेंगी तो मैं क्या बोलूंगी —“सबा या सीता या कोई और नाम”…
थोड़ी दूर और बस चली तो एक और जुलूस से सामना हो गया. ये जुलूस स्कूल के बच्चों ने निकाला था. हमारी बस रूकी और दो बच्चे चढ़े. बाहर वाले बच्चे अन्दर वालों से नारे लगाने को कहने लगे. अब अन्दर बाहर दोनों जगह लोग पूरे जोश में थे और इस बीच बस एक ही शोर था —“भारत माता की जय…”
मेरी सांस अब हलक में अटकने लगी थी. वहां का गर्मा-गर्म माहौल ऐसा था कि मुसलमानों को लेकर अजीबो-गरीब बातें चल रही थीं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होने वाला है. कहीं किसी ने मेरा नाम पूछ लिया और उन्हें ये मालूम हो गया कि मैं भी मुसलमान हूं तो क्या होगा? इसके अलावा अनगिनत सवाल मेरे दिमाग़ में बार-बार उपज रहे थे.
ख़ैर बस फिर चली और बग़ल वाली मोहतरमा मेरे मज़हब और मेरे दिल व दिमाग़ में पनप रहे ख़ौफ़ से बेख़बर मुझसे बातें करती रहीं. और मैं अपनी मोबाईल को बार-बार ताकते हुए सर झुका कर महज़ हूं… हां… करती रही.
बता दूं कि मैं अपनी ज़िन्दगी में आज पहली बार अकेले सफ़र कर रही थी. ऐसे में घर वालों की फ़िक्र लाज़िम थी. लेकिन मेरे दिल व दिमाग़ में एक अनजाना सा डर इस क़दर हावी था कि मैंने घर वालों की फ़िक्र को नज़र अन्दाज़ कर मोबाइल को साइलेंट मोड में डाल दिया.
अब जब मैं अपने घर पहुंच चुकी हूं. डर व ख़ौफ़ तक़रीबन दिल व दिमाग़ से बहुत दूर जा चुका है, लेकिन मन में अनगिनत सवाल अभी भी परेशान कर रहे हैं कि क्या ये मुल्क मेरा नहीं है? और अगर है तो मुझे यहाँ ख़ौफ़ क्यूं लगता है. क्या महज़ ‘भारत माता की जय’ कहने से आप सच्चे देशभक्त हो जाते हो? क्यों हर बार हम मुसलमानों को अपनी देशभक्ति साबित करनी पड़ती है? क्यों हर आतंकी हमले के बाद हमे ज़बरदस्ती शक के दायरे में रखा जाता है? जब कोई नक्सलवादी हमला करता है तब तो हम दूसरे मज़हब को कटघरे में खड़ा नहीं करते और न ही उन पर शक करते हैं.
ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन मैं सवालों से दूर देश के भविष्य के बारे में सोच रही हूं कि पता नहीं चुनाव तक हमारे मुल्क में अभी क्या-क्या होना बाक़ी है. मैं अपने देशवासियों से बस इतना ही कहना चाहूंगी कि देश की एकता-अखंडता हर हाल में बरक़रार रखने की ज़िम्मेदारी हम सबकी ही है. अपने ही मुल्क के लोगों को निशाना बनाने या उन पर शक करने के बजाए ये सोचें कि जो जवान पुलवामा में शहीद हुए हैं, उन्हें तो ये सरकार शहीद का दर्जा भी नहीं देने को तैयार है. आईए, कम से कम हम ही इन शहीदों के परिवार के लिए कुछ ऐसा कर दें कि उन्हें पूरी ज़िन्दगी अपने बेटे की शहादत पर गर्व रहे. शहीदों के बच्चों के दिल में किसी के ख़िलाफ़ नफ़रत के बजाए अपने देश के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा पैदा हो सके…
Note: Image used in this article is only for representational purpose.