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मुजीब रिज़वी की पुस्तक ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ का लोकार्पण

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों में पद्मावत और पद्मावती आम लोगों के मानस पर एक बार फिर लौट आया है. लौटने की वजहें ऐतिहासिक न होकर, कमर्शियल और राजनीतिक थी. लेकिन, इतिहास और किंवदंती में झूलती जायसी की पद्मावती की कहानी हर दौर के लिए ख़ास है.

प्रोफ़ेसर मुजीब रिज़वी की किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ पर बात करते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा “हर किताब का अपना एक समय होता है. मुजीब रिज़वी की किताब आज के इस दौर में प्रकाशित हुई है जब अवधेश और भारत देश को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा किया जा रहा है. हिन्दी साहित्य और आलोचना दोनों को समृद्ध करने वाली यह किताब आज बहुत प्रासंगिक है.”

कार्यक्रम में असगर वजाहत, पुरुषोत्तम अग्रवाल, शाहिद मेहदी, अशोक चक्रधर, मुकुल केशवन, शाहिद अमीन, रविकांत, रवीश कुमार, अनुषा रिज़वी, सुमन केशरी, वंदना राग एवं कई अन्य साहित्यकार, इतिहासकार, विशेषज्ञ एवं पाठक मौजूद थे.

मुजीब रिज़वी को याद करते हुए शाहिद मेहदी ने कहा, “वे एक ट्रांसपेरेंट शख्स थे. अगर किसी आदमी को आप सेक्युलर कह सकते हैं जो अपने ख़्यालात में, अपनी आदतों में सेक्युलर हो तो वो मुजीब थे. उनकी शख्सियत कभी नहीं बदली.”

असग़र वजाहत ने कहा कि उनकी सूफ़ी साहित्य को फ़ारसी के रास्ते समझने की कोशिश क़ाबिले तारीफ़ है. उन्होंने कहा, “मुजीब रिज़वी ने सिर्फ़ पद्मावत पर ही नहीं बल्कि तुलसी दास पर भी काम किया है. उनकी सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने रामचरित्र मानस को फ़ारसी सूत्रों से समझने की कोशिश की थी.”

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण मशहुर दास्तानगो महमूद फारूख़ी एवं दारेन शाहिदी द्वारा पद्मावत का पाठ रहा. दोनों ही दास्तानगो ने शानदार जुगलबंदी का नज़ारा पेश करते हुए पद्मावत की कहानी को जीवंत कर दिया.

प्रो. रिज़वी, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के संस्थापक सदस्यों में से थे. उन्होंने जीवन के 40 साल जामिया में बिताए. इससे पहले वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी अध्यापन कर चुके थे. कई वर्षों की मेहनत के बाद तैयार की गई यह किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ एक शोध ग्रंथ है. 

यह किताब प्रो. रिज़वी ने शोध ग्रंथ के रूप में लिखी थी जिस पर 1979 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी. यह शोध ग्रंथ न सिर्फ़ मलिक मुहम्मद जायसी की तमाम रचनाओं का एक मौलिक विश्लेषण पेश करता है अपितु सूफ़ी साहित्य की बहुत सी मान्यताओं और अभिव्यक्तियों से जायसी के माध्यम से पहली बार परिचित कराता है. मुजीब रिज़वी यह साबित कर देते हैं कि फ़ारसी और सूफ़ी साहित्य के ज्ञान के बिना जायसी को पढ़ना दुष्कर ही नहीं नामुमकिन भी है.

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