जब गांधी ने प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी से पूछा —क्या अभी तक ज़िन्दा हैं?

Beyond Headlines
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

5 मार्च, 1947 की सुबह गांधी कलकत्ता से पटना के फ़तुहा स्टेशन पहुंचे. यहां बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी, मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह और अन्य ने प्लेटफॉर्म पर गांधी का स्वागत किया. गांधी जी ने जब अब्दुल बारी को देखा तो वो हंसे और पूछा —“क्या अभी तक ज़िन्दा हैं?”

ये बातें निर्मल कुमार बोस (22 जनवरी 1901 – 15 अक्टूबर 1972) ने अपनी पुस्तक ‘My Days with Gandhi’ में लिखी हैं. उनकी ये किताब 1953 में कलकत्ता से प्रकाशित हुई थी. निर्मल कुमार बोस उस वक़्त गांधी के साथ ही थे.

आज ही के दिन ठीक 72 साल पहले यानी 28 मार्च, 1947 को गरीब बेघर मज़दूरों की उम्मीदों के सितारे व हिन्दुस्तान की आज़ादी के दीवाने प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी की गोली मार कर हत्या की गई थी. इस हत्या की ख़बर सुनते ही गांधी अल्लागंज से रात 9.30 में पटना पहुंचे और 29 मार्च की सुबह अब्दुल बारी की शव-यात्रा में शामिल हुए. इन्हें पटना के पीर मोहानी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया.

ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि शायद आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में प्रोफ़ेसर बारी पहले ऐसे शख़्स होंगे, जिन्हें बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष होते हुए भी बिहार की कांग्रेस सरकार में ही मार दिया गया. हिन्दुस्तान की तारीख़ में शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा कि किसी का क़त्ल इतनी बड़ी अहमियत का हामिल होने के बावजूद पूरी तरह से फ़रामोश किया जा चुका है.

Mahatma Gandhi at the funeral of Professor Maulana Abdul Bari in Patna, Bihar, India, 29 March 1947.

गांधी जी ने स्पष्ट तौर पर कहा था उनकी इस मौत के पीछे किसी तरह की राजनीति नहीं है, लेकिन बिहार के पहले प्राईम मिनिस्टर (प्रीमियम) बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस ने महात्मा गांधी के बयान को जल्दबाज़ी में दिया गया बयान बताया था.

बैरिस्टर यूनुस ने यह भी कहा कि प्रोफ़ेसर बारी ने मृत्यु से तीन दिन पहले बताया था कि वो ऑल इंडिया कांग्रेस के कुछ प्रमुख लोगों का नाम उजागर करने वाले हैं, जिन्होंने बिहार नरसंहार को कराया था.

बता दें कि बैरिस्टर यूनुस उस वक़्त कराची में थे. वो वहां 1946 के दंगे के पीड़ित बिहारी मुस्लिम शरणार्थियों जो हज़ारों की तादाद में कराची के कैम्पों में शरण लिए हुए थे,  के कैम्पों का निरीक्षण करने गए थे. वहीं उन्होंने ओरिएंट प्रेस ऑफ़ इंडिया को एक इंटरव्यू दिया, जो कराची के ‘डॉन’ अख़बार में 05 अप्रैल, 1947 को प्रकाशित हुआ था…

(लेखक ने प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी पर शोध किया है. इनकी पुस्तक ‘प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी –आज़ादी की लड़ाई का एक क्रांतिकारी योद्धा’ आगामी 31 मार्च को पटना में लांच होने वाली है.)

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