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आज देश के चौकीदार नरेन्द्र मोदी के ‘वादा-फ़रामोशी’ की खुलेगी पोल, केजरीवाल बनेंगे गवाह

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : आज नई दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में दोपहर 2 बजे केन्द्र सरकार के 25 प्रमुख योजनाओं का परिणाम क्या रहा, इसकी पोल खुलेगी. 

दरअसल, संजॉय बसु, नीरज कुमार और शशि शेखर यानी तीन लोगों ने मिलकर एक किताब लिखी है —‘वादा-फ़रामोशी’. ये किताब पूरी तरह से आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों के आधार पर लिखी गई है. आज इसी पुस्तक का लोकार्पण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह के हाथों होगी. 

इस पुस्तक के एक लेखक शशि शेखर BeyondHeadlines से ख़ास बातचीत में बताते हैं कि “वादा-फ़रामोशी” आरटीआई के तहत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार के कामकाज का एक दस्तावेज़ है. 

उन्होंने बताया कि हम लेखकों ने सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में सैकड़ों आरटीआई लगाए. प्राप्त जवाब काफ़ी चौंकाने वाले निकले. वैसे मौजूदा सरकार में पूर्ण एवं सटीक सूचना पाना भी कम कठिन कार्य नहीं था. लेकिन हमने धैर्य से इस काम के लिए डेढ़ साल का समय दिया. 

लेखकों का मानना है कि किसी भी मीडिया, एनजीओ, व्यक्ति या किसी अन्य संस्थान ने समग्रता से ऐसा काम नहीं किया है. इस तरह की ठोस जानकारी या साक्ष्य को आधार बना कर सरकारी योजनाओं का विश्लेषण इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है.

बता दें कि इस पुस्तक की यात्रा मां गंगा से शुरू होती है. यह पवित्र नदी किस तरह एक दयनीय स्थिति में पहुंच गई है और प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने पिछले पांच वर्षों के दौरान जो दृष्टिकोण अपनाया है वह और अधिक चौंकाने वाला है. इसी तरह गाय या गौ माता ने भी इस अवधि में खूब सुर्खियां बटोरीं, जबकि सरकार ने पवित्र गाय के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च तो किए लेकिन धरातल पर ठोस काम होता नहीं दिखा. 

सरकार का मंत्र है “सब का साथ, सबका विकास”. इस पुस्तक में आदिवासी समुदाय के लिए समर्पित ट्राइबल सब प्लान की व्यापक जांच की गई है. इस पुस्तक में मौजूद आंकड़ें बताते हैं कि आदिवासियों को वर्षों से सरकार ने सिर्फ़ और सिर्फ़ धोखा देने का ही काम किया है. वह भी बहुत ही शातिराना तरीक़े से. कम से कम आरटीआई के जवाब तो यही बताते है. मसलन, आदिवासी विकास का पैसा उनके विनाश के लिए खर्च किया जा रहा है. 

‘बहुत हुआ नारी पर वार’ का नारा देने वाली सरकार ने ‘निर्भया फंड’ का उपयोग या ‘किशोर लड़कियों के लिए योजना’ या ‘पीएम मातृत वन्दन योजना” के साथ क्या किया, इसकी भी पड़ताल आरटीआई के ज़रिए इस पुस्तक में की गई है. दिन-ब-दिन पेयजल क़ीमती होता जा रहा है. इसलिए, ‘जल क्रांति अभियान’ का अध्ययन किया गया और यह जानने की कोशिश की गई कि यह सिर्फ़ एक प्रोपेगैंडा था या एक महत्वपूर्ण मुद्दे का समाधान देने वाला अभियान. 

नोटबन्दी और उससे जुड़ी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का सच भी सामने लाने की कोशिश की गई है. आरटीआई से जो रहस्योद्घाटन होता है, वह इस योजना को काफ़ी दिलचस्प बना देता है. क्या सचमुच गरीब कल्याण योजना के पैसे को गरीबों के लिए खर्च किया गया? चाहे रेलवे विकास की बात हो या यातायात की, सरकारी दावों का सच क्या है, उसे पाठकों तक सामने लाने की ईमानदार कोशिश की गई है.

 बता दें कि इस पुस्तक के तीन लेखकों में शामिल शशि शेखर पेशे से पत्रकार हैं. 15 वर्ष से अधिक पत्रकारिता का अनुभव रखते हैं. फिलहाल दिल्ली से प्रकाशित एक पाक्षिक पत्रिका से जुड़े हैं. दूसरे लेखक नीरज कुमार का आरटीआई की दुनिया के एक पुराने नाम हैं. इन्होंने द मंजूनाथ ट्रस्ट की सहायता से राष्ट्रीय आरटीआई हेल्पलाईन की स्थापना की थी. वहीं ऑल इंडिया रेडियो के लिए ‘जानने का हक़’ कार्यक्रम के निर्माता थे. वहीं तीसरे लेखक संजॉय बासु पिछले दो सालों से आरटीआई के माध्यम से नीति अनुसंधान पर काम कर रहे हैं.

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