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Reading: परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है —बाबर अली चगट्टा
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BeyondHeadlines > India > परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है —बाबर अली चगट्टा
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परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है —बाबर अली चगट्टा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 20, 2019 7 Views
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9 Min Read
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines 

जिन हालात व पिछड़ेपन का रोना आप पूरी ज़िन्दगी रोते रह जाते हैं, अगर उन्हीं हालात व पिछड़ेपन को बदलने की कोई ठान ले तो यक़ीनन उसका नाम बाबर अली चगट्टा होगा. 

बाबर चगट्टा ने इस साल यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में शानदार कामयाबी हासिल की है. इनकी रैंक 364वीं है. बाबर के मुताबिक़ इनको इस रैंक पर शायद आईपीएस मिल जाएगा, लेकिन बनना तो आईएएस ही है. इसलिए आईएएस बनने की तैयारी एक बार फिर से शुरू कर दी है.

24 साल के बाबर जम्मू-कश्मीर राज्य में जम्मू क्षेत्र के ज़िला रियासी के तहसील माहोर व गांव बद्दर (गुलाबगढ़) से हैं. ये इलाक़ा जम्मू का सबसे पिछड़ा इलाक़ा माना जाता है, जो आज तक कई बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. 

बाबर बताते हैं कि मेरे गांव में अभी तक पक्की सड़क नहीं पहुंच सकी है. डेढ़-दो साल पहले तक मेरा गांव अंधेरे में ही रहता था, क्योंकि बिजली नहीं पहुंच सकी थी. अब जाकर बिजली की रोशनी से मेरा गांव रोशन हुआ है.

बाबर ने 5वीं तक की पढ़ाई गांव में रहकर ही की. छठी क्लास में वो जवाहर नवोदय विद्यालय गए, जहां बारहवीं तक की तालीम हासिल की. दसवीं में इन्होंने 90 फ़ीसद वहीं बारहवीं में 86 फ़ीसद नंबर हासिल किए. फिर आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ का रूख़ किया और एएमयू से साल 2014 में पॉलिटिकल साईंस में बीए ऑनर्स की डिग्री हासिल की. इसके बाद बाबर ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पॉलिटिकल साईंस डिपार्टमेंट में एमए की डिग्री हासिल करने के लिए दाख़िला ले लिया. हालांकि सिविल सर्विस में जाने की चाहत में वो इस कोर्स को मुकम्मल नहीं कर सके.

सिविल सर्विस में आने का ख़्याल कब और क्यों आया? तो इसके जवाब में बाबर कहते हैं, जब मैं छठी क्लास में जाने वाला था, तब ही मेरे वालिद ने मुझे सिविल सर्विस से रूबरू करा दिया था. जब मैं नवोदय गया तो वहां स्कूल के वार्षिक प्रोग्राम में पहली बार किसी आईएएस अधिकारी को देखा. उनकी बातों से भी मुझे काफ़ी प्रेरणा मिली. साथ ही इलाक़े की बैकवार्डनेस ने भी ख़ास तौर पर मुझे इंस्पायर किया कि मैं आईएएस बनकर अपने गांव की बदहाली व पिछड़ेपन को दूर करूं. इस तरह से मेरे ज़ेहन में ये हमेशा था कि मैं आईएएस बनकर इस गांव के हालात को बदल सकता हूं.

बता दें कि बाबर के पिता ग़ुलाम क़ादिर जम्मू में ही वन विभाग में अधिकारी थे. जब बाबर 9वीं क्लास में थे तभी ये इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए. अम्मी ग़ुलाम फ़ातिमा होममेकर हैं. पांच भाईयों में बाबर सबसे छोटे हैं. वहीं इनकी एक छोटी बहन भी है. इनके सारे भाई सरकारी नौकरी में हैं. 

बाबर मे अपनी तैयारी 2015 में शुरू की. जब उन्हें लगा कि इस तैयारी में एमए की क्लास रूकावट बन रही है तो उन्होंने एमए की पढ़ाई ही छोड़ दी. उन्होंने ये कामयाबी तीसरी कोशिश में हासिल की है. पहले अटैम्प्ट में उन्होंने मेन्स लिखा था. लेकिन दूसरे अटैम्ट में प्रिलिम्स में ही असफल रह गए. बाबर कहते हैं कि थोड़ी सी मायूसी ज़रूर हुई लेकिन इस बार मैंने सोच लिया था कि बचपन के सपने और वालिद साहब की ख़्वाहिश को पूरा ज़रूर करना है. वालिद साहब की जितनी बातें याद थीं, वो सब मुझे प्रेरित करती रहीं. 

इस परीक्षा के लिए कौन सा विषय लिया था और क्यों? इसके जवाब में बाबर कहते हैं, मैंने पॉलिटिकल साईंस लिया था. वजह सिर्फ़ ये है कि मैंने इसी सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन किया है और मुझे इंटरनेशनल रिलेशन में भी काफ़ी दिलचस्पी है. 

वो बताते हैं कि पिछले 4-5 सालों में पॉलिटिकल साईंस का रिजल्ट बहुत अच्छा आ रहा है. अब ये सब्जेक्ट बहुत स्कोरिंग हो गया है. 

परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां की? इस पर बाबर बताते हैं, मैंने कोई कोचिंग नहीं की. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के रेजिडेंशियल कोचिंग में रहा. हालांकि वहां भी क्लासेज़ ज़्यादा नहीं की. सेल्फ़ स्टडी पर ज़्यादा फ़ोकस किया. ये पूछने पर कि आपका नाम ज़कात फ़ाउंडेशन की लिस्ट में भी है, तो इस पर बाबर बताते हैं कि मेन्स निकलने के बाद मैं वहां मॉक इंटरव्यू के लिए गया था. 

सिविल सर्विस की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे?  इस सवाल पर बाबर बताते हैं कि, सबसे पहले तो आपको इस बात के लिए हमेशा तैयार रहना होगा कि रिजल्ट चाहे जो भी हो, उम्मीद कभी नहीं खोना है. अगर आप इसके लिए तैयार हैं तो सबसे पहले इसके सिलेबस को देखें और उसे बेहतर तरीक़े से समझने की कोशिश करें. फिर पिछले कुछ सालों का पेपर ज़रूर देखें. वहां से समझ आएगा कि यूपीएससी आपसे चाहती क्या है. हालांकि यूपीएससी का कोई फिक्स पैटर्न नहीं है, हर साल कुछ न कुछ बदल ज़रूर जाता है.

दूसरी अहम बात ये है कि इसके लिए आपका ईमानदार होना ज़रूरी है. किसी के दबाव में आकर इसकी तैयारी नहीं की जा सकती है. सबसे ज़रूरी है कि आपकी खुद इसमें दिलचस्पी हो. यानी सेल्फ़ मोटिवेशन का होना बहुत ज़रूरी है. आप सिविल सर्विस में क्यों जाना चाह रहे हैं, ये अगर क्लियर है तो फिर आपको कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है.  

वो आगे कहते हैं कि शुरू में एनसीईआरटी को अच्छी तरह से पढ़ लें. साथ में न्यूज़ पेपर आपको हर दिन पढ़ना है. खुद को हमेशा अपडेट रखना है. टेस्ट सीरिज़ ज़्यादा से ज़्यादा करें. ज़्यादातर स्टडी मैटेरियल ऑनलाईन मौजूद है. यहां बहुत ज़्यादा मैटेरियल है, लेकिन आपको कंफ़्यूज़ नहीं होना है, बल्कि सेलेक्टिव होकर स्मार्टली पढ़ना है. 

अपने परिवार के साथ बाबर अली चगट्टा

बाबर को क्रिकेट खेलना और मुद्दा आधारित फ़िल्में देखना पसंद है. वो कहते हैं कि जामिया में रहते हुए भी हर शनिवार-रविवार को क्रिकेट खेलना नहीं भूलते थे. साथ ही फ़िल्में देखना भी पसंद है. आख़िर फ़िल्म कौन सी देखी है, इस पर वो कहते हैं कि ‘स्त्री’ मेरी आख़िरी फ़िल्म है. ये फ़िल्म लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ ये संदेश भी देता है कि एक औरत समाज से क्या चाहती है. बाबर को शाहरूख़ खान बहुत पसंद हैं. वहीं पसंदीदा एक्ट्रेस के सवाल पर थोड़े शरमा जाते हैं. फिर कहते हैं कि प्रियंका चोपड़ा की एक्टिंग थोड़ी-बहुत ज़रूर पसंद है.

बाबर कहते हैं कि मेरे लिए मेरे वालिद ही आईडियल हैं. काश, वो होते तो मेरी इस कामयाबी पर मेरी पीठ थपथपाते. बाबर इस कामयाबी के लिए अपने पूरे परिवार को क्रेडिट देना चाहते हैं. ख़ास तौर पर अपनी अम्मी का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा बाबर को हौसलों व जज़्बों से भरने का काम किया. 

देश के युवाओं, खास़ तौर से अपने क़ौम के नौजवानों को अपना पैग़ाम देते हुए बाबर कहते हैं कि अगर आप सच में मेनस्ट्रीम में आना चाहते हो, तो सिविल सर्विस में आने के बारे में ज़रूर सोचिए. ज़रूरत इस बात की है कि सिस्टम को कोसने के बजाए सिस्टम में आकर उसे समझे और उसके मुताबिक़ काम करें या खुद को बदलें. ज़रूरत इस बात की भी है कि जो लोग कामयाब हो चुके हैं, उन्हें समाज के साथ जोड़ा जाए. 

इसके अलावा बाबर अपनी क़ौम के नौजवानों को अपना पैग़ाम शकील आज़मी के इस शेर के ज़रिए देना चाहते हैं —

परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है 

ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है 

मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर 

संभल के चल तुझे सारा जहान देखता है… 

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