Faisal Farooque for BeyondHeadlines
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में अपनी पारंपरिक सीट अमेठी के साथ केरल के वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. यह तो तय है कि कांग्रेस ने काफ़ी विचार-विमर्श के बाद सोच समझकर उन्हें दक्षिण भारत के मैदान में उतारने का फ़ैसला किया है.
देखा जाए तो इस फ़ैसले के पीछे कांग्रेस की सोच राहुल की राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता बढ़ाने की है. लेकिन राहुल की उम्मीदवारी ने दक्षिण में कांग्रेस बनाम वामदलों की लड़ाई और तेज़ कर दी है.
कांग्रेस पार्टी के अनुसार राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने का उद्देश्य दक्षिण राज्यों को यह संदेश देना है कि कांग्रेस उनकी संस्कृति, भाषा और परंपराओं का सम्मान करती है और राहुल गांधी उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच एक सेतु का काम करेंगे. वहीं भाजपा का कहना है कि अमेठी में जहाज़ डूबता देख कप्तान भाग निकला. स्मृति ईरानी के सामने राहुल असुरक्षित महसूस कर रहे हैं इसलिए उन्होंने वायनाड से भी मैदान में उतरने का फ़ैसला किया.
ऐसा कहते हुए भाजपा के छोटे बड़े सभी नेता जान-बूझकर भूल रहे हैं कि राहुल गांधी कोई पहले राजनीतिज्ञ नहीं हैं जो एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की वड़ोदरा और उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. तब मोदी दोनों सीटों से जीत गए थे. बाद में उन्होंने वड़ोदरा सीट से इस्तीफ़ा दे दिया और अभी लोकसभा में वाराणसी से प्रतिनिधित्व करते हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी ने तो अपना पहला ही चुनाव 1952 में उत्तर प्रदेश की दो सीटों मथुरा और लखनऊ से लड़ा था और दोनों सीटों पर उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई थी. फिर उन्होंने 1957 में उत्तर प्रदेश के तीन हलक़ों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से मुक़ाबला किया था. बलरामपुर से अटल जी ने जीत हासिल की थी, लखनऊ में वह दूसरे नंबर पर आए थे और मथुरा से उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई थी. 1991 में एक लंबे समय के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर लखनऊ और इस बार मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया.
तब समाजवादी पार्टी द्वारा यह कहा गया था कि वाजपेयी हार की डर से विदिशा भागे हैं. उस समय राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि समाजवादी पार्टी फ़िल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी को वाजपेयी के ख़िलाफ़ लखनऊ से मैदान में उतार सकती है. उसी वर्ष 1991 में भाजपा के दूसरे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी ने नई दिल्ली के साथ गुजरात की गांधीनगर सीट से भी मुक़ाबला किया था. नई दिल्ली सीट पर उनका मुक़ाबला मशहूर फ़िल्म अभिनेता राजेश खन्ना से था. राजेश खन्ना कांग्रेस की टिकट पर राजनीतिक मैदान में थे.
उस समय इन दो दिग्गज नेताओं पर उसी तरह के सवाल उठे थे जैसे आज राहुल गांधी पर उठ रहे हैं. तब वाजपेयी और आडवाणी दोनों ने ही दोनों सीटों से जीत हासिल करके विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब दिया था. राहुल के अलावा इससे पहले कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी रायबरेली और कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर जीत हासिल कर चुकी हैं. 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी भी दो सीटों से लड़ी थीं, उनमें से एक सीट आंध्र प्रदेश के मेडक में जीत हासिल की थी.
कांग्रेस कोशिश कर रही है कि वह अपना प्रभुत्व पूरे देश में स्थापित करे और मुक़ाबला केवल भाजपा के साथ नहीं बल्कि हर उस पार्टी के ख़िलाफ़ है जो कांग्रेस का विरोध कर रही है. कांग्रेस राहुल की राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय नेता की छवि पेश करने की कोशिश कर रही है. जिससे भाजपा पर भी नरेन्द्र मोदी को दक्षिण की किसी सीट से उतारने का दबाव बढ़ेगा. हालांकि भाजपा ऐसा नहीं करेगी क्योंकि इससे दक्षिण भारत चुनाव का केंद्र बन जाएगा, इसीलिए भाजपा ऐसा नहीं चाहेगी.
ग़ौरतलब है कि केरल की वायनाड सीट पर कांग्रेस का क़ब्ज़ा रहा है. केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्य अध्यक्ष रह चुके एमआई शाहनवाज़ दो बार इस सीट से जीत चुके हैं और यहां भाजपा दौड़ में भी नहीं रही है. नवंबर 2018 में लीवर की बीमारी से शाहनवाज़ की मौत हो गई. यह सीट कन्नूर, मलप्पूरम और वायनाड के संसदीय क्षेत्रों को मिलाकर बनी है. वायनाड सीट का कुछ हिस्सा तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा से लगा हुआ है. वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 80 से अधिक गांव हैं और सिर्फ़ चार शहर हैं.
भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाकर फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है (हालांकि राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हितों को कहीं पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया है) और एक दक्षिणी राज्य की तुलना में यह मुद्दा उत्तरी राज्यों में उसके लिए ज़्यादा मुफ़ीद साबित होगा. नॉन इशूज़ को इशू बनाया गया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, नौकरियों, राफ़ेल जंगी विमानों का सौदा, भ्रष्टाचार का ख़ात्मा और किसानों के मुद्दे दृश्य से हट गए हैं. या यूं कह लें कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा अन्य सभी मुद्दों को निगल गया है.
बहरहाल राहुल यहां भाजपा नहीं, वामपंथी दलों के ख़िलाफ़ लड़ेंगे. ऐसे राज्य से चुनाव लड़ने की क्या ज़रूरत थी जहां लगभग सभी सीटों पर सेकुलर दलों के पक्ष में वोट डालने की संभावनाएं मौजूद हैं?
दरअसल राहुल गांधी लगातार तीन बार से अमेठी लोकसभा सीट से सांसद हैं. ख़बरों की मानें तो अमेठी से स्मृति ईरानी राहुल गांधी को टक्कर दे रही हैं. दूसरी वजह यह हो सकती है कि कांग्रेस वायनाड सीट के ज़रिए केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में पार्टी को मज़बूत करना चाहती है.
(फ़ैसल फ़ारूक़ मुंबई में रह रहे जर्नलिस्ट और स्तंभकार हैं.)