कन्हैया की रैली में मैं क्यों गई? —नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस

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Photo by Afroz Alam Sahil

By Fatima Nafis

पिछले कई सालों से मैं अपने बेटे की खोज में दर-दर घूम रही हूं. क्या सही है, क्या ग़लत है अभी सीख ही रही हूं. धरना, प्रदर्शन, नेताओं से अपील, कोर्ट, कचहरी, सीबीआई, जेएनयू, जो जब जिसने बताया, वो किया. सिर्फ़ एक उम्मीद से कि शायद कोई कोशिश कामयाब हो जाए. जब जहां जिसने बुलाया, जिस पार्टी ने, जिस भी नेता ने हम चले गए और सिर्फ़ एक ही उम्मीद थी कि शायद कोई मदद मिल जाए नजीब को ढूंढने में. बस… 

सच्चाई ये है मेरे बच्चों कि मैं न कोई नेता हूं, न इतना राजनीति समझती हूं. लोगों को अगर मेरी ज़ात से कोई फ़ायदा पहुंचता है तो उसमें कोई अल्लाह की मर्ज़ी होगी. मुझसे चंद लोग, फेसबुक पर लगातार एक सवाल पूछ रहे है और मैं ज़ेहनी तौर पर उससे परेशान भी हूं —कन्हैया की रैली में मैं क्यों गई? 

मेरे नज़दीक वो भी मेरे बेटे जैसा है और मेरी लड़ाई में बराबर का शरीक रहा है. यह पार्टी  या विचारधारा या वोट का सवाल नहीं है. यह उस व्यक्ति की मदद करने के बारे में है, जिसने उसके मुश्किल दिनों में मदद की. लेकिन ये मैंने नहीं सोचा था कि इन धरनों में आने वाले कुछ बेटे, एक साथ, मेरे से हिसाब मांगने लगेंगे तो में क्या करुंगी? 

मुझे नहीं पता. मैं डर गई हूं अब कहीं और जाने में जबकि मुसलसल लोग बुला रहे हैं. कुछ लोगों ने अब मुझे इंसानों से पहले उनकी पार्टी देखने के लिए मजबूर करा है. मैं नहीं जानती कि कौन बड़ा नेता कहीं दूर बैठ कर मेरी आवाज़ उठा रहा था, उसके लिए माफ़ी, मैं सिर्फ़ उन चेहरों पहचानती हूं, जो मेरे शाना-बा-शाना खड़े थे, बसों में धक्के खा रहे थे, कोर्ट कचहरी मेरे साथ में थे. 

अगर उन लोगों में से कोई भी जो पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर या सीबीआई दफ्तर के बाहर, कचहरी में, या दिल्ली की सड़कों पर मेरे साथ थे. कहीं मेरी ज़रुरत महसूस करेंगे तो मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी उनके पास जाऊं. कौन कम था, कौन ज़्यादा, कैसे तय होगा? 

इस लिहाज़ से JNU, AMU, JMI, DU, HCU, आज़मगढ़, दिल्ली, लखनऊ, मेवात, मुंबई, केरल, अलीगढ़, SIO, MEEM TEAM, UAH, आम जनता (सब यूनिवर्सिटीज़ —शहर और संघठन के नाम नहीं गिना सकती उसके लिए माफ़ी चाहती हूं.) से ज़्यादा शायद ही किसी ने मेरे लिए कुछ किया हो. 

मुझे इन बच्चों और लोगो को राजनीतिक चश्में से देखने के लिए मजबूर न करे. आपकी आपसी बहस आप लोग आपस में हल करे, मैं उसका क्या ही जवाब दूंगी. मुझे आप सब मेरे बच्चें नजीब की तरह प्यारे हैं. आपका सवाल पूछना जायज़ है, पर जब आपके पास मेरा और मेरे बेटे का नंबर मौजूद है, तो आपको इस तरह पोस्ट डालने से पहले एक बार मुझसे पूछना तो चाहिए था. 

मुझे आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत दुःख हुआ क्यूंकि आपने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि जितने लोग आज तक नजीब के लिए आवाज़ उठाए है या अपने मंच से मेरी आवाज़ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाई मैं उन सबका एहसान कैसे उतारूंगी. बाक़ी अल्लाह बेहतर जानने वाला है…

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