Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines
बिहार के पूर्वी चम्पारण ज़िला के मोतिहारी शहर के मिस्कॉट में जन्मे गौहर हसन की कहानी हौसलों से भर देने वाली है. पेशे से इंजीनियर रहे गौहर की ज़िन्दगी का बस एक ही मक़सद था, यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल करके आईएएस बनना. इस सफ़र में कई बार नाकामी हाथ लगी, लेकिन गौहर हार नहीं माने. चार बार नाकाम होने के बाद पांचवी बार में अब देश के सबसे ऊंचे इम्तिहान में 137वां रैंक लाकर अपने आईएएस बनने का ख़्वाब पूरा कर लिया है.
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
गौहर हसन को ग़ालिब पसंद हैं और ये शेर उनका पसंदीदा शेर है. वो बताते हैं कि इस शेर का मतलब चाहे जो हो, लेकिन मैंने इससे पैशन और मुहब्बत के बीच रिश्ते को समझा. एक तरफ़ पैशन जो कहता है कि कोई चीज़ जल्दी मिल जाए तो दूसरी तरफ़ मुहब्बत एक ऐसी चीज़ है जो वक़्त मांगती है, जिसमें ‘ख़ून-ए-जिगर’ खर्च करना पड़ता है. मेरे लिए सिविल सर्विस इसी ‘मुहब्बत’ की तरह था. अब तक मेरी ‘आशिक़ी’ इसी के साथ रही. और मैं बस अपनी इस ‘महबूबा’ को पाने के लिए दिन-रात लगा रहा.
गौहर बताते हैं कि यूपीएससी का ये सफ़र काफ़ी लंबा था. कई बार नकारात्मक ख़्याल भी आते थे, तब ग़ालिब के इसी शेर ने मुझे मोटीवेट किया.
बता दें कि इंजीनियर गौहर को कोई ख़ास उर्दू नहीं आती थी, लेकिन शायरी में दिलचस्पी की वजह से इन्होंने उर्दू को बतौर सब्जेक्ट न सिर्फ़ चुना बल्कि सीखकर आज पूरे उर्दू-दां बन चुके हैं.
गौहर के बचपन का शुरूआती दौर मोतिहारी में गुज़रा, फिर वो पूसा में रहने वाले अपने बड़े अब्बू के पास चले गए और वहीं के कैम्पस पब्लिक स्कूल में पढ़ने लगे. बता दें कि इनके बड़े अब्बू यहां राजेन्द्र अग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पोस्टेड थे. जब गौहर पांचवीं क्लास में थे तो बड़े अब्बू रिटायर होकर मोतिहारी लौट आए. फिर गौहर ने मोतिहारी के ही इक़रा पब्लिक स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई की. 2005 में मैट्रिक के इम्तिहान में 70 फ़ीसद नंबर हासिल किए.
फिर इसके बाद गौहर ने नई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से कम्प्यूटर साईंस में डिप्लोमा इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया. 2008 में डिप्लोमा की डिग्री हासिल करके ‘कम्प्यूटर साईंसिस्ट कारपोरेशन’ नामक एक कम्पनी में काम करने लगे. साथ ही साथ जामिया में ही चलने वाले ईवनिंग कोर्स में दाख़िला लेकर 2013 में बी.ई. की डिग्री हासिल की.
गौहर बताते हैं कि, 2014 में जॉब छोड़कर मैंने सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की. मैंने कहीं कोई कोचिंग ज्वाईन नहीं किया. लेकिन तैयारी के लिए पहले हमदर्द स्टडी सर्किल और फिर उसके बाद 2016 में जामिया के रेजिडेंशियल कोचिंग में रहकर तैयारी की. ये पूछने पर कि आपका नाम ज़कात फाउंडेशन के भी लिस्ट में है. इस पर गौहर कहते हैं कि मैंने वहां सिर्फ़ मॉक इंटरव्यू दिया था.
ऐसीक्याबात थी जिससे आपने तय किया किमुझे सिविल सर्विस में ही जाना है? इस सवाल के जवाब में गौहर बताते हैं कि, इसके कई फैक्टर रहे. सबसे पहले जॉब में गया. तब मैं बहुत उत्साहित था. लेकिन बाद में लगा कि शायद मैं खुद से जस्टिस नहीं कर पा रहा हूं. वर्क कल्चर और वहां की पॉलिटिक्स मुझे कभी रास नहीं आई. दूसरी बात मेरे ज़ेहन में ये आई कि मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कभी कोई एग्ज़ाम नहीं दिया है, ऐसे में ख़्याल आया कि कुछ तो करना चाहिए. बस यहीं से सिविल सर्विस का ख़्याल आया. कई लोगों ने मज़ाक़ भी बनाया. क्योंकि मेरा एजुकेशनल बैकग्राउंड कोई बहुत अच्छा नहीं रहा था. बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि ये बहुत मुश्किल है, तो मैंने कहा कि कोई नहीं, कम से कम मेरे ज़ेहन में ये तो बात तो नहीं रहेगी कि मैंने कोशिश ही नहीं की.
इस परीक्षा के लिए कौन सा विषय लिया था और क्यों? तो इस सवाल के जवाब में गौहर बताते हैं कि यूपीएससी के सिलेबस में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग विषय नहीं था, तो फिर मैंने उर्दू को बतौर सब्जेक्ट चुना. शायद ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे शायरी पसंद थी और उर्दू पढ़ने में बहुत मज़ा आता था. हालांकि मुझे उर्दू कुछ ख़ास आती नहीं थी, लेकिन यहीं से उर्दू लिखना शुरू किया. ख़ूब मेहनत की. रफ़्ता-रफ़्ता मैं उर्दूदां बनता गया.
तैयारी के दौरान किन ख़ास बातों का ध्यान रखा? इस सवाल के जवाब में गौहर का कहना है कि मैंने खुद के ऊपर भरोसा रखा. इस एग्ज़ाम में डॉक्यूमेंटेशन बहुत ज़रूरी है. जो कुछ भी पढ़ रहे हैं, उसको एक जगह लिखिए, इसलिए मैंने अपना नोट्स बनाया. क्योंकि चीज़ें याद नहीं रहती. इसलिए उसका बार-बार रिवीज़न बहुत ज़रूरी है.
यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगे? इस पर गौहर कहते हैं कि सबसे पहले अपना ज़ेहन बनाईए. एक बार सिविल सर्विस में आने का मूड बना लिया तो समझिए आपका आधा काम हो गया. फिर आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना है.
वो कहते हैं कि अक्सर देखा है कि यूपीएससी के हराने के पहले आदमी अपने आप से हार जाता है. कि मुझसे नहीं हो पा रहा है. आपसे बिल्कुल होगा. बस अपने कमियों को दुरूस्त कीजिए और खुद पर यक़ीन रखिए. इंसान हैं तो ख़्वाहिशें भी होंगी, लेकिन उसको रोक कर अपनी मंज़िल पर नज़र रखिए. शायर बशीर बद्र ने का ये शेर आपके बहुत काम आ सकता है—
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
वो आगे कहते हैं, अपने ऊपर से यक़ीन कभी ख़त्म नहीं होने देना है. इस इम्तिहान में आत्मविश्वास का सबसे अहम रोल है. अगर आप में आत्मविश्वास है कि कर लेंगे तो इंशा अल्लाह ज़रूर कर लेंगे.
गौहर अपनी इस कामयाबी का सारा श्रेय अपने अब्बू-अम्मी को देना चाहते हैं. वो कहते हैं कि इन दोनों लोगों का बहुत बड़ा रोल रहा. तैयारी के दौरान कभी किसी चीज़ के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ी.
अब्बू जमील अहमद इस वक़्त बिहार के गया इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं, वहीं अम्मी नग़मा कौसर होममेकर हैं. इनके दो भाई व दो बहन हैं. एक छोटा भाई जामिया मिल्लिया इस्लामिया से समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन कर रहा है, तो छोटी बहन जामिया से ही ऑर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रही हैं. एक बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. वो मोतिहारी के एफ़सीआई में जॉब करती हैं.

गौहर की पहली च्वाईस आईएएस है. वो कहते हैं कि मैं एक ईमानदार ऑफ़िसर बनने की कोशिश करूंगा. इंशा अल्लाह हमेशा लोगों के वेलफेयर के लिए काम करूंगा ताकि लोग मुझे पसंद करें. यहां मेरे अब्बू की नसीहत काम आएगी. उन्होंने पूरी ज़िन्दगी ईमानदारी से काम किया है. न कभी रिश्वत लिया और न दिया है. बचपन से ही हमारे लिए तय कर दिया था कि हम भाई-बहनों को जो करना अपने दम पर करना है. मैं कहीं भी एडमीशन या नौकरी के लिए डोनेशन नहीं दूंगा.
अपने क़ौम के नौजवानों को संदेश देते हुए कहते हैं कि, हमने देखा है कि हमारे ज़्यादातर नौजवान पढ़ना ही नहीं चाहते, बस पैसा कमाना चाहते हैं. यक़ीनन पैसा ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है लेकिन पैसा ही सबकुछ नहीं है. ये भी ज़रूरी है कि आप ये पैसा किस तरह से कमा रहे हैं.
वो कहते हैं कि हमारे नौजवानों में ये भावना है कि हमारे साथ भेदभाव होता है. लेकिन मेरा कहना है कि हम लोग खुद अपना सौ फ़ीसद नहीं देते हैं. इसलिए सिस्टम को दोष देने से पहले खुद को बेहतर बनाने के बारे में सोचिए.
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है…