Gaurav Aranya for BeyondHeadlines
लोकसभा चुनाव 2019 में इस बार सबसे ज़्यादा सुर्खियों में यदि कोई ससंदीय क्षेत्र है तो वह है, बिहार का बेगूसराय. और सुर्खियों में रहने का कारण है— भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार, जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
जेएनयू के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष, कन्हैया कुमार उस समय चर्चा में आए जब उन्हें 2016 में देशद्रोह के मामले में जेएनयू कैंपस से गिरफ्त्तार किया गया. उनकी गिरफ़्तारी एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई, और जेएनयू सहित पूरे देश में इसका काफ़ी विरोध हुआ. इस घटना ने कन्हैया कुमार को एंटी मोदी फेस के रूप में पूरे देश में स्थापित कर दिया. तब से कन्हैया को सार्वजनीन मंच पर काफ़ी तव्वजो दिया जाने लगा. हाज़िर जवाब होने के कारण हमेशा सुर्खियों में रहने वाले कन्हैया आज सोशल मीडिया में छाए रहते हैं.
कन्हैया कुमार के अलावा, बेगुसराय से बीजेपी के तेज़-तर्रार और हिन्दुत्ववादी चेहरा गिरिराज सिंह और महागठबंधन से राजद प्रत्याशी तनवीर हसन चुनावी मैदान में हैं. बेगूसराय में पूर्व में हुए कई चुनावी परिणाम को देखा जाए तो यह चुनाव गिरिराज सिंह और तनवीर हसन के बीच सीधी टक्कर है.
बेगूसराय में लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव में बीजेपी के भोला सिंह को 4.28 लाख वोट मिले थे. वहीं राजद के तनवीर हसन को 3.70 लाख वोट मिले थे. भोला सिंह महज़ 58335 वोट के अंतर से राजद प्रत्याशी तनवीर हसन को मात दे पाए थे. वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राजेन्द्र प्रसाद सिंह को 192639 वोट मिले थे.
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में भूमिहारों की आबादी क़रीब 4.79 लाख है, वहीं मुसलमान की आबादी 2.5 लाख, अतिपिछड़ों की आबादी क़रीब 1 लाख और यादवों की अबादी 80 हज़ार के आस-पास है. बेगूसराय में आबादी की दृष्टि से भूमिहार हमेशा निर्णायक भूमिका में रहते हैं.
वर्तमान जातीय समीकरण में भूमिहार समाज बीजेपी के साथ खड़ा नज़र आ रहा है. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव 2009 में एनडीए से जदयू के मोनाज़िर हुसैन ने यहां से जीत हासिल की थी. वहीं लोकसभा 2014 में यहां से बीजेपी के टिकट पर भोला सिंह जीते थे. ऐसे में बेगुसराय संसदीय क्षेत्र में गिरिराज सिंह का पलड़ा भारी है.
चुनावी विश्लेषक इसे त्रिकोणीय मुक़ाबला मान रहे हैं. इसके दो बड़ी वजह है. पहली वजह ये है कि भूमिहारों का एक वर्ग भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ भी है. जो बेगुसराय के चुनाव को रोचक बना रहा है. क्योंकि विश्लेषक यह मान कर चल रहे हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पहले से मौजूद भूमिहार वोट में सीपीई के पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार, अपने सेलेब्रिटी रूप से भूमिहारों के अधिक से अधिक वोट को अपनी तरफ़ करने में कामयाब हो पाएंगे.
वहीं दूसरा कारण है, कन्हैया का एंटी मोदी फेस. जो लालू यादव के बाद, बिहार में स्थापित दूसरा चेहरा है. विश्लेषक यह मान रहे हैं कि इसका लाभ उन्हें मिलेगा और मुस्लिम समाज भी उन्हें वोट करेगा. लेकिन ऐसा हो इसकी भी सम्भावना कम ही दिखाई देती है. इसके भी दो कारण हैं.
पहला कारण यह है कि लालू यादव ने विपरीत परिस्थिति में मुस्लिम समाज के साथ खड़े होकर उनका विश्वास अर्जित किया है. जबकि कन्हैया कुमार जेएनयू विवाद के कारण एंटी मोदी फेस के रूप में उभरे नेता हैं.
लालू यादव ने लालकृष्ण आडवानी की विवादित रथ यात्रा रोकी थी. बिहार के समस्तीपुर में, 23 अक्टूबर 1990 को लालकृष्ण अडवाणी को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर ही गिरफ्तार कर, रथ यात्रा को रोका गया था.इसके बाद बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ और देश भर में दंगा फ़ैल गया लेकिन लालू यादव ने अपनी प्रशासनिक क़ाबिलियत के बल पर बिहार में दंगा नहीं होने दिया. इन दो घटनाओं ने मुस्लिम समाज को लालू यादव के क़रीब ला दिया. मुस्लिम समाज में सन्देश गया कि यदि कोई उनके साथ खड़ा हो सकता है तो वह लालू यादव है.
लालू यादव के साथ मुस्लमान वोटरों की घनिष्टता कितनी मज़बूत है, वह विधानसभा चुनाव 2010 में साफ़ दिखाई देती है. जब कांग्रेस पार्टी ने राजद का साथ छोड़ अकेले चुनाव लड़ा था. इस चुनाव ने कांग्रेस को 243 सीटों में केवल 4 सीट पर जीत मिली थी, वहीं उन्हें महज़ 8.37 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था. पारंपरिक रूप से मुसलमानों को कांग्रेस के नज़दीक माना जाता है, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को मुंहकी खानी पड़ी थी.
कन्हैया को मुस्लिम समाज का वोट नहीं मिलेगा, इसका दूसरा कारण यह भी है कि मुस्लिम समाज को यह पता है कि यादव समाज लालू यादव के साथ खड़ा रहेगा. यदि मुस्लिम समाज कन्हैया को वोट करेगा तो मुसलमान और यादव का वोट बंट जाएगा. जिसका लाभ सीधा बीजेपी को मिलेगा. मुस्लिम समाज गिरिराज सिंह जैसे हिन्दुत्वादी नेता के सामने ऐसी ग़लती कभी नहीं करेंगे. जिससे उनका वोट बेकार हो जाए. इस तरह मुसलमान और यादव समाज लालू यादव के नेतृत्व में तठस्थ खड़ा है.
जहां तक भूमिहार वोटरों का सवाल है. भूमिहार समाज कन्हैया के टीआरपी से प्राभावित होंगे और इसका लाभ उनको वोटों में प्राप्त होगा? ऐसा लगता नहीं है. क्योंकि सांप्रदायिक माहौल में भूमिहार समाज बीजेपी का साथ नहीं छोड़ेगा.
फिर क्या कारण है कि बेगूसराय त्रिकोणीय दिखाई दे रहा है? उसका कारण है, सोशल मीडिया पर कन्हैया की शानदार उपस्थिति. कन्हैया कुमार की टीआरपी सोशल मीडिया पर काफ़ी अच्छी है. जो बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में होने वाली रिपोर्टिंग में साफ़ दिखाई दे रहा है. बिहार में लेफ्ट की हमेशा यह शिकायत रही है कि मीडिया उन्हें जगह नहीं देती है. वहीं लगभग सभी मीडिया हाउस ने कन्हैया को प्रमुखता से जगह दिया. बेगूसराय को कम से कम त्रिकोणीय बना दिया है. पब्लिसिटी प्रत्याशियों के लिए संजीवनी का काम करता है, लेकिन बिहार में चुनाव जातियों के इर्द-गिर्द घूमती है और इस जातीय समीकरण में कन्हैया कमज़ोर नज़र आते हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. पटना यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की डिग्री हासिल कर बिहार व देश के राजनीतिक एवं सामाजिक घटनाक्रम पर नज़र रखते हैं. इनसे gaurav.aranya@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.)