Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines
सोशल मीडिया पर बने ‘कन्हैयामय’ माहौल के बाद देश भर से लोग बेगुसराय पहुंच रहे थे. जब मंगलवार सुबह समस्तीपुर से बेगुसराय की तरफ़ बढ़ा तो पता चला कि ‘वामपंथ’ अब सड़क छोड़कर लंबी-लंबी कारों व रॉयल इंफ़िल्ड पर सवार हो चुका है. और लगातार हॉर्न बजाते व हर तरह का ‘प्रदूषण’ फैलाता हुआ बेगुसराय पहुंच रहा है… मौसम ने भी लोगों के जोश में इज़ाफ़ा कर दिया था. सड़कों पर ये जोश इस क़दर था कि आसमान से ओले पड़ने के बाद भी शांत नहीं पड़ा.
बेगुसराय की सड़कें जाम की वजह से दम तोड़ रही थी. जैसे-तैसे सभा-स्थल पर पहुंचने के बाद देखा कि ‘बी.एस.एस. कॉलेजियट आदर्श विद्यालय’ का ग्राउंड पूरी तरह लाले-लाल है. मंच पर प्रोफ़ेशनल सिंगर्स की एक पूरी टीम अपने साज-बाज के साथ मोदी व आरएसएस विरोधी गाने गा रही है. कन्हैया वाले ‘आज़ादी’ सॉन्ग पर पूरा मैदान झूम रहा है. लोगों का उत्साह देखने लायक़ था. बिल्कुल वैसा ही उत्साह जैसा 2014 के चुनाव में मोदी की सभाओं में देखा गया था, हां! यहां उसकी तुलना में लोग कम ज़रूर थे.
मंच पर नामी-गिरामी लोगों में मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सेल्फ़ी लेते हुए नज़र आ रही थी. तभी उसी मंच से ऐलान हुआ कि सेल्फ़ी लेने वाले लोग मंच से नीचे उतर जाएं. वो मुस्कुराते हुए जाकर अपनी जगह पर बैठ गई. मंच पर शहला रशीद, नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस के साथ पीछे की ओर बैठी हुई थी, तभी कार्यकर्ताओं ने उन्हें वहां से उठाकर आगे की कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया. न जाने क्यों, ये दोनों काफ़ी परेशान दिख रही थीं. शायद रोड शो से लौटने के कारण थक गई होंगी. यक़ीनन चेहरे पर थकान साफ़ झलक रही थी…
गाने का कार्यक्रम अब ख़त्म हो चुका था. उन्हें आनन-फ़ानन मंच से हटा दिया गया. अब इस मंच से नेताओं के गरजने की बारी थी. मौक़ा देखकर सबने मोदी और उनके प्रत्याशी गिरीराज सिंह को जी भर के कोसा, साथ ही अपील कि तेजस्वी अपना कैंडीडेट यहां से वापस ले लें, क्योंकि वो दूर दूर तक रेस में नहीं है. कन्हैया चुनाव जीत चुका है. जी हां, आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं. इस मंच से कई वक्ताओं ने इस बात का ऐलान कर दिया कि ‘कन्हैया चुनाव जीत गया’.
इन सबके बीच किसी बड़े नेता की तरह पूरे तीन घंटे की देरी से कन्हैया अपने युवा समर्थकों के साथ सभा-स्थल पहुंचे. लोग बेक़ाबू हो चुके थे. आते ही कन्हैया ने खुद ही माईक संभाल लिया और लोगों से विनती की कि मेहरबानी करके आप सब लोग बैठ जाईए, शायद कुछ ही लोग बैठे होंगे कि कन्हैया ने सबका शुक्रिया अदा किया. और लोगों को बताया कि 29 तारीख़ को वोट की बारिश होगी. नोटतंत्र दहाएगा और लोकतंत्र जीत जाएगा.
कन्हैया ने सबसे पहले महाराष्ट्र से आए एनसीपी के नेता जीतेन्द्र अहवाड का लोगों से परिचय करवाया. फिर जेएनयू से आए गुरमोहर. अभिनेत्री स्वारा भास्कर और बाक़ी साथियों का परिचय करवाया.
मंच पर मौजूद तमाम वक्ताओं ने कन्हैया को संसद भेजने की अपील की. नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस ने अपने बेटे नजीब को याद करते हुए कहा कि ढ़ाई साल से अपने बेटे के लिए संघर्ष कर रही हूं. मेरे बेटे को गायब कर दिया गया है. कन्हैया ही वो शख़्स है जिसने मेरे बेटे के लिए आवाज़ उठाई है… फिर कन्हैया ने भी मोदी व गिरीराज सिंह को निशाने पर रखकर बीजेपी पर खूब प्रहार किया. इनके इस प्रहार से लोगों का उत्साह देखने लायक़ था.
लेकिन उसी सभा स्थल में मौजूद कई लोगों से मैंने बातचीत की तो पता चला कि बेगुसराय की राजनीति इतनी आसान नहीं है, जितना मंच पर आसीन नेता व सेलीब्रिटी लोग समझ रहे हैं.
70 साल के एक बुजुर्ग से ये पूछने पर कि चचा आपको कन्हैया कैसा लगता है और चुनाव में क्या होगा? चचा का जवाब था —लड़का तो बहुते बोलतू है. लेकिन अभी 20 दिन बाक़ी है, देखते रहिए इस 20 दिन में अभी क्या-क्या होता है…
सफ़ेद कुर्ता पर लाल गमछा रखे एक और बुजुर्ग बताते हैं कि मियां लोग तो कन्हैया के साथ हैं, लेकिन इसके ही जाति के लोग इसको वोट दे तब ना… वहीं कई युवाओं ने बताया कि इस बार कन्हैया ही जीतेगा. हालांकि इन युवाओं की ये भी शिकायत थी कि भईया थोड़ा मोदी जी के बारे में ज़्यादा बोल देते हैं. आख़िर काम तो उनके साथ ही करना है इनको. तो थोड़ा कम ही बोलना चाहिए.
बेगुसराय के कुछ इलाक़ों में हमने इस माहौल को और गहराई से जानने की कोशिश की. ज़ीरो माईल के क़रीब ही मोटर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले एक जनाब से बेगुसराय में चुनाव की स्थिति पूछने पर कहते हैं —‘अरे आप मीडिया वाले हैं. कन्हैया का जुलूस नहीं देखे. महाराज बाईक, कार-जीप तो छोड़िए. साथ में ट्रक और बस भी चल रहा था.’ इतना कह कर वो हंस पड़ते हैं.
आपका नाम क्या है? इस पर वो कहते हैं कि सारा खेल तो नाम का ही है. आपका नाम पूछना जायज़ नहीं है.
किसको वोट देंगे? वो तो हम बूथ पर जाकर ही सोचेंगे. हां, लेकिन इतना तय है कि जो बीजेपी को हराएगा हमरा वोट उसी को जाएगा.
आगे बढ़ने पर एक ढाबे में कई लोग चाय पर चर्चा कर रहे थे. बिल्कुल चुनावी विश्लेषक की तरह यहां एंगल पर बातचीत चल रही थी. जातिय समीकरण का ख़ास लिहाज रखा जा रहा था. साथ ही इस बात पर भी लोगों ने ध्यान आकर्षित करवाया कि मीडिया वाला कन्हैया के पीछे पगला गया है. आख़िर क्या वजह है कि यहां नामाकंन गिरीराज सिंह और तनवीर हसन ने भी की. लेकिन किसी मीडिया ने नहीं दिखाया. यहां तक कि स्थानीय अख़बारों में भी नहीं छपा, जबकि वहीं आज का अख़बार देख लीजिए कन्हैया को कितना कवरेज मिला है. यहां मौजूद कुछ लोगों की शिकायत रवीश कुमार से भी थी —‘रवीश भी खेल कर गया. कन्हैया का तो भीड़ वाला भाषण दिखाया और तनवीर का पहिले का भाषण. ई तो बहुत ग़लत बात है.’
मालपुर पंचायत के क़रीब 70 साल के एक बुजुर्ग का कहना है कि कन्हैया अभी लड़का है. पूरा ज़िन्दगी पड़ा है. इस बार भूमिहार लोग सीनीयर को जिताएगा. इसको अगले साल देखा जाएगा.
बता दें कि ज़्यादातर बुजुर्गों में इस बात की भी चर्चा है कि अगर गिरीराज सिंह चुनाव हारे तो एक भूमिहार नेता ख़त्म हो जाएगा. इसलिए इस बार उनका जीतना ज़रूरी है. वहीं भाजपा समर्थक बेगुसराय के वोटरों में इस बात का प्रचार करते हुए नज़र आ रहे हैं कि कन्हैया तो देशद्रोही है. सिर्फ़ मुसलमानों की बात कर रहा है. सारा मुसलमान उसके साथ है.
बेगुसराय के लोगों की यह भी शिकायत है कि मीडिया ने इस लड़ाई को गिरीराज बनाम कन्हैया बना दिया है. लेकिन सच्चाई ये है कि यहां सभी पार्टियों के उम्मीदवार अपने अपने एजेंडे के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सच ये है कि कामयाबी उसे ही मिलनी है जो पार्टी के जातीय समीकरण में फिट बैठेगा. वैसे भी बेगुसराय लोकसभा सीट से 21 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाख़िल किया है.
बता दें कि यहां भूमिहार वोट काफ़ी मायने रखता है. यहां अब तक सबसे ज्यादा भूमिहार उम्मीदवार ही जीतते आए हैं. पिछली बार ये बीजेपी के साथ खड़े थे, लेकिन इस बार किसका साथ देंगे, ये अब तक स्पष्ट नहीं है. यहां कुल 19 लाख वोटरों में क़रीब 19 फ़ीसद भूमिहार हैं.
भूमिहारों के बाद मुसलमान वोटर भी मायने रखते हैं. यहां क़रीब 15 फ़ीसदी मुसलमान वोटर हैं. उसके बाद 12 फ़ीसदी यादव और 7 फ़ीसदी कुर्मी समुदाय के वोटर हैं.
यहां के जानकारों की मानें तो अब तक राजद के पास एमवाई समीकरण था, लेकिन इस बार महागठबंधन बनने की वजह से एक नया समीकरण बन गया है. अगर इस समीकरण ने साथ दिया तो मुक़ाबला स्पष्ट तौर पर गिरीराज सिंह व तनवीर हसन में होगा. लेकिन अगर कन्हैया मुसलमानों का वोट लेने में कामयाब रहे तो यक़ीनन उनका पलड़ा भारी पड़ सकता है. क्योंकि बेगुसराय का वो युवा वोटर अब तक उनके साथ खड़ा है, जो उसे ‘देशद्रोही’ नहीं मानता है.
अब तक के जो हालात हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि बेगुसराय की सियासत बहुत टेढ़ी है. ऐसे में बेगुसराय में क्या कन्हैया अपनी जीत का परचम लहरा पाएंगे या फिर तनवीर हसन या गिरिराज सिंह के सर बंधेगी पगड़ी? ये 23 मई को आने वाला रिजल्ट ही बेहतर बता पाएगा, लेकिन यहां के लोगों से बात करके इतना तो तय हो गया है कि सोशल मीडिया की क्रांति से यहां के वोटर पर कोई ख़ास फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है. यहां के वोटर राजनीतिक रूप से परिपक्व हैं. और जिन लोगों को लगता है कन्हैया कुमार बोलने वाले नेता होंगे, उनके लिए 67 साल के संतोष साहेब का ये सन्देश— बेगुसराय के हर घर में एक कन्हैया है, बस उन्हें मीडिया, समाज या सिस्टम ने मौक़ा नहीं दिया है…