BeyondHeadlines Correspondent
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत में इन दिनों बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के आपराधिक मामले में सुनवाई चल रही है. इस आपराधिक मामले में एक नया नाम साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का भी जुड़ सकता है. ख़ास बात ये है कि इनका आरोप साबित करने की ज़रूरत भी नहीं है, क्योंकि इन्होंने खुद क़बूल किया है कि वो बाबरी मस्जिद को गिराने में शामिल रही हैं. यानी वो अब इस मामले में स्वतः आरोपी बन गई हैं.

बता दें कि भोपाल में ‘टीवी 9 भारतवर्ष’ के वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को दिए अपने एक इंटरव्यू में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने ये बात क़बूल किया. इनके इस क़बूलनामे पर जब चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया तो साध्वी का कहना था कि उन्होंने जब राम मंदिर बनाने की बात की, तब वो उम्मीदवार नहीं थीं. लेकिन साध्वी ने सोमवार को जैसे ही अपना नामांकन दाख़िल किया, यहां के ज़िला अधिकारी ने इन पर आचार संहिता उल्लंघन के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ करने का आदेश दे दिया है.
ग़ौरतलब रहे कि साध्वी प्रज्ञा ने टीवी 9 से बातचीत में कहा था —“ढांचे पे चढ़कर तोड़ा था मैंने. हम तोड़ने गए थे ढांचा. मुझे भयंकर गर्व है इसका. देश का कलंक मिटाया था. राम मंदिर हम बनाएंगे. ईश्वर ने मुझे अवसर दिया था, शक्ति दी थी और मैंने ये काम कर दिया.”
BeyondHeadlines से ख़ास बातचीत में पत्रकार अभिषेक उपाध्याय बताते हैं, ‘साध्वी प्रज्ञा इन सवालों के लिए तैयार नहीं थीं. वे सिर्फ़ अपने टॉर्चर और भगवा आतंकवाद पर बात करना चाहती थीं. ऐसे में अचानक ही मैंने राम मंदिर पर सवाल पूछ लिया. उन्होंने पहले टालने की कोशिश की मगर फिर खुल गईं, और जब खुलकर बोलना शुरू किया तो वो सब बोल गईं जो उनकी मुसीबत का सबब बन गया. ख़ास बात ये भी है कि इंटरव्यू ख़त्म होते-होते उनके कैम्प के लोगों को समझ आ गया कि वे कुछ ज़्यादा ही बोल गईं हैं. वे इसे डिलीट करने को कहने लगे. किसी तरह उन्हें समझा-बुझाकर वहां से विदा ली और फिर ये इंटरव्यू पर्दे पर उतार दिया.’


सोशल मीडिया में कुछ लोगों के ज़रिए ये भी कहा गया कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई साध्वी नाबालिग़ थीं, लेकिन आज खुद साध्वी प्रज्ञा का हलफ़नामा ये बताता है कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई, उस वक़्त साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 22 साल की थीं. इनके हलफ़नामे के मुताबिक़ इस वक़्त इनकी उम्र 49 साल है.
बता दें कि 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ढहाए जाने के मामले में कुल 49 एफ़आईआर दर्ज हुई थीं. एक एफ़आईआर फ़ैज़ाबाद के थाना रामजन्म भूमि में एसओ प्रियवंदा नाथ शुक्ला जबकि दूसरी एसआई गंगा प्रसाद तिवारी ने दर्ज करवाई थी, बाक़ी 47 एफ़आईआर अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग पत्रकारों और फोटोग्राफ़रों ने दर्ज कराए थे. सीबीआई ने जांच के बाद इस मामले में कुल 49 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल किया था. अब इस मामले में कुल 32 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दिन-प्रतिदिन सुनवाई हो रही है. 19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर इस मामले की सुनवाई दो साल में पूरा करने का निर्देश विशेष अदालत को दिया था.
30 मई, 2017 को इस आपराधिक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, महंत राम विलास वेदांती, बैकुंठ लाल शर्मा उर्फ़ प्रेमजी, चंपत राय बंसल, धर्मदास व डॉ. सतीश प्रधान के ख़िलाफ़ आरोप तय किया था जबकि गवर्नर होने के नाते कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ आरोप तय नहीं हो सका था. हालांकि आरोप तय होने के बाद विष्णु हरि डालमिया और रमेश प्रताप सिंह की मौत हो चुकी है जबकि आरोप तय होने से पहले 14 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है.