Edit/Op-Ed

आज जीते कोई भी, पर हारिए न आप!

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

2019 लोकसभा चुनाव के अब नतीजे आ जाएंगे. हालांकि इसको लेकर सबके अपने-अपने क़यास हैं, अपने-अपने एक्जिट पोल… लेकिन सच तो यह है कि जीत का सिंकन्दर वही होगा जिसे देश की जनता का प्यार अधिक मिला होगा. वो कहते हैं ना –जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है. लेकिन मौजूदा हालात में इस बात से भी रूबरू रहना बहुत ज़रूरी है कि कभी-कभी सच हार भी जाता है. या झूठ को ही सच के कपड़े पहनाकर तालियां बजाती जनता के बीच उतार दिया जाता है.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लोकसभा के इस चुनाव में धर्म, सम्प्रदाय, जाति और छद्म राष्ट्रीयता के आधार पर लोगों को बांटने की हर मुमकिन कोशिश की गई है. कुछ राजनीतिक दलों ने तो इसमें अपनी समूची ताक़त झोंक दी. ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि धर्म के आधार पर वोटों की फ़सल काटने की इन कोशिशों से कहीं न कहीं समाज में कड़वापन अधिक छा गया है.

‘कड़वापन’ की बात पर ज़रूरी नहीं है कि आप भी सहमत हों. ये बात अपने खुद के तजुर्बे के आधार पर कह रहा हूं, क्योंकि पिछले छः महीनों से चुनाव के रिपोर्टिंग के दौरान देश के लोगों के दिलों-दिमाग़ में ज़हर को घुलते बहुत क़रीब से देखा है. मज़हब के नाम पर लोगों को नफ़रत की खेती करते भी देखा है. ‘हिन्दुत्व’ के नाम पर पनपने वाले ज़ख़्मों को भी देखा है. देखा है कि किस प्रकार चुनावी लाभ के लिए छद्म राष्ट्रीयता के नाम पर दो भाईयों को आपस में लड़ाया जा सकता है. दो धर्म के लोगों को कैसे आमने-सामने किया जा सकता है. इस चुनाव में यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आ गई है कि सियासी पार्टियां वोटों की फ़सल काटने के लिए इस देश में कुछ भी कर सकती हैं.

ख़ैर, आज जब चुनाव के नतीजे पूरी तरह से आ जाएंगे, तो सारा देश जश्न में डूब जाएगा. पर मुझे यहां एक बात ख़ास तौर पर कहनी है कि जीत चाहे जिसकी भी हो, जश्न मीठा होना चाहिए, कड़वा नहीं. ऐसे में आज आप ज़्यादा सेंटियाइए नहीं. एक दूसरे को गरियाइए नहीं. थोड़ा संयम बरतिए. सब्र से काम लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि जश्न में फोड़े गए पटाखों से कहीं हमारे समाज में ही आग लग जाए.

संयम बरतने की ज़रूरत इसलिए भी है कि राजनीतिक जीत या हार या आर्थिक विकास से ज़्यादा अहम सामाजिक भाईचारा है. यक़ीन मानिए पटरी से उतरी अर्थ-व्यवस्था को दुबारा लाईन पर लाया जा सकता है, लेकिन समाज अगर एक बार पटरी से उतर जाए तो दुबारा विश्वास पैदा करने में बहुत वक़्त लगता है. आज आप आपसी सौहार्द बनाए रखें और लोकतंत्र के पर्व के इस सबसे बड़े जश्न में समाज को पटरी में उतारने का मौक़ा न दें. इंशा अल्लाह ये देश दिवाली के साथ-साथ ईद का जश्न मनाने की भी पूरी तैयारी कर चुका है… 

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