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Reading: जब भारत के पहले प्रधानमंत्री बैरिस्टर यूनुस के ‘मुसलमानों के प्रतिनिधित्व’ के सवाल को टाल गए गांधी…
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जब भारत के पहले प्रधानमंत्री बैरिस्टर यूनुस के ‘मुसलमानों के प्रतिनिधित्व’ के सवाल को टाल गए गांधी…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 4, 2019
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7 Min Read
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: भारत के पहले प्राईम मिनिस्टर (प्रीमियम) बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस ने इस देश में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के सवाल को लेकर 9 अक्टूबर, 1939 को महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा. 

इस पत्र में उन्होंने ख़ास तौर पर दो मुद्दे उठाए और गांधी जी को कहा कि मेरे इस पत्र पर गंभीरता से विचार करें, ताकि इसका तत्काल ही कोई समाधान ढूंढ़ा जा सके.

बैरिस्टर यूनुस का पहला मुद्दा ये था, ‘अब चूंकि मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर समस्त भारत की जनसंख्या की लगभग एक तिहाई हो गई है, इसलिए सारे केन्द्रीय विधान-मंडलों में मुसलमानों को भी एक-तिहाई प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और सरकारी नौकरियों में भी उन्हें एक-तिहाई स्थान दिया जाना चाहिए.’

उनका दूसरा मुद्दा था, ‘प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी रोक-टोक और हस्तक्षेप के अपने अधिकारों का उपयोग करने का हक़ प्राप्त होना चाहिए, बशर्ते कि वह इस ढंग से हो कि उससे उसके पड़ोसी की भावनाओं को आघात न पहुंचता हो. (इस अंतर्गत प्रत्येक जाति को सड़कों पर जुलूस निकालने, बलि या किसी अन्य प्रयोजन से किसी भी पशु की हत्या करने तथा मनपसंद ढंग से प्रार्थना करने के अधिकार प्राप्त होंगे.)’

बैरिस्टर यूनुस ने इस पत्र के आख़िर में ये भी लिखा, ‘लगभग पिछले दो साल से मैं आपको लिख रहा हूं और अब अगर मैं साग्रह निवेदन करूं कि इस सिलसिले में जल्दी कार्रवाई करवाएं —विशेषकर मौजूदा हालात को देखते हुए तो आशा है कि आप इसे मेरी अधीरता नहीं मानेंगे.’

आख़िरकार गांधी जी को इस पत्र का जवाब देना पड़ा. 14 अक्टूबर, 1939 को लिखे पत्र में गांधी जी ने बैरिस्टर यूनुस को लिखा —‘आपसे मैं तंग आ जाऊं, ऐसा कभी नहीं हो सकता. यह ज़रूर है कि मुझे तानाशाह जैसे अधिकार प्राप्त नहीं हैं, लोग भले कुछ भी कहें. यह काम किसी एक व्यक्ति के करने का नहीं है. आपका पत्र मैं मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को भेज रहा हूं.’

गांधी जी ने इसी तारीख़ को इस संबंध में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को भी एक पत्र लिखा. इसमें वो लिखते हैं —‘प्रिय मौलाना साहब, हमें इस मामले में अपनी नीति की घोषणा कर देनी चाहिए या कुछ न कुछ करना चाहिए.’

ग़ौरतलब रहे कि बैरिस्टर यूनुस बिहार के पहले प्राईम मिनिस्टर (प्रीमियम) थे. चूंकि ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट’ के तहत जब चुनाव हुआ तो सबसे पहले एक अप्रैल, 1937 को पूरे भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वालों में पहले शख़्स बने, इसलिए माना जाता है कि ये भारत के पहले प्राईम मिनिस्टर (प्रीमियम) हैं. मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी की ये सरकार 19 जुलाई 1937 तक रही. इसके बाद बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस ने कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया. 

दरअसल, 1935 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट’ पारित किया था. एक्ट में प्रधानमंत्री का पदनाम प्रांतीय सरकार के प्रधान के लिए था, लेकिन व्यवहार में वो पद वही था जो आज मुख्यमंत्री का है. 

मोहम्मद यूनुस के बारे में BeyondHeadlines से विशेष बातचीत में राजद नेता व पूर्व राज्यसभा सांसद शिवानंद तिवारी बताते हैं कि –‘उन्होंने बिहार विधानमंडल और पटना हाईकोर्ट जैसी इमारतों की नींव रखी. वो सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक थे. जब औरंगाबाद में दंगा हुआ था तो वो वहां अकेले ही पहुंच गए. उन्होंने वहां शांति जुलूस निकाला. अपने चार महीने के कार्यकाल में तमाम जनता की समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की. वैसा नेता अब किसी को कहां मिलेगा.’ 

यूनुस के परपोते क़ाशिफ़ यूनुस, जो ‘बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस मेमोरियल कमिटी’ के चेयरमैन हैं, बताते हैं कि –‘यूनुस साहब ने बिहार के विकास के बारे में ख़ूब काम किया. राजनीति व वकालत के अलावा बिजनेस व बिहार के डेवलपमेंट पर काम किया. सरकार बनाने से पहले ही उन्होंने बिहार में बैंक खुलवाया, इंश्योरेंस कम्पनी लाए. पटना में उनका बनाया हुआ ग्रैंड होटल तब के बिहार का पहला आधुनिक होटल था.’

क़ाशिफ़ बताते हैं कि –‘बैरिस्टर यूनुस ने किसानों और मुसलमानों पर विशेष ध्यान दिया, जिन्हें आज तमाम पार्टियों ने नज़रअंदाज़ कर दिया है. अगर यूनुस होते तो बिहार में किसानों व मुसलमानों की ऐसी हालत न होती.’

बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस का जन्म 04 मई, 1884 में हुआ. आप इस देश के महान स्वतंत्रता सेनानी व राष्ट्र-प्रेमी मुस्लिम नेता थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के मामले में शुरू से ही कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे, लेकिन जब कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने में विफल हुई तो 1937 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस ने मौलाना मो. सज्जाद की मदद से ‘मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी’ की स्थापना की. 1937 में राज्य चुनाव में 152 के सदन में 40 सीटें मुस्लिमों के लिए आरक्षित थीं, जिनमें 20 सीटों पर ‘मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी’ और पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. शुरू में कांग्रेस पार्टी ने मंत्रिमंडल के गठन से इंकार कर दिया तो राज्यपाल ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में बैरिस्टर मो. यूनुस को प्राईम मिनिस्टर (प्रीमियर) की शपथ दिलाई. लेकिन चार महीने बाद जब कांग्रेस मंत्रिमंडल के गठन पर सहमत हो गई तो यूनुस ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. तब से लेकर अपनी मौत के वक़्त तक यूनुस अपने सिद्धांत पर अडिग रहे और राष्ट्रीय एकजुटता व देश की आज़ादी के सवाल पर हमेशा कांग्रेस का साथ देते रहे.

बैरिस्टर यूनुस की पूरी ज़िन्दगी किसानों, दलितों व मुसलमानों की उन्नति व प्रगति व बिहार के विकास के इर्द-गिर्द घूमती रही, जो उनकी चुनावी राजनीति का भी मुख्य एजेंडा था, मगर ये एजेंडा उनकी ज़िन्दगी में बदलाव लाने को लेकर था न कि उन्हें वोट की फ़सल की तरह इस्तेमाल करके काट कर फेंक देने का, जैसा इन दिनों तमाम सियासी दल लोकसभा चुनाव में कर रहे हैं. आप 13 मई, 1952 में इस दुनिया को अलविदा कह गए.

TAGGED:barrister muhammad yunusEditor's PickMUHAMMAD YUNUS
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