BeyondHeadlines News Desk
रांची : झारखंड में वन विभाग द्वारा वहां की कोल कंपनियों को 1824.5 करोड़ का फ़ायदा पहुंचाने की साज़िश का पर्दाफ़ाश हुआ है. वन विभाग की ये साज़िश वन विभाग की ही आंतरिक जांच में सामने आया है. लेकिन इसे दुनिया के सामने यहां के दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार सत्यदेव यादव लेकर आए हैं.
बता दें कि राज्य सरकार ने अगस्त 2018 में पीसीसीएफ वन्यजीव से नॉर्थ कर्णपुरा की समेकित योजना के अंतिम प्रारूप को स्वीकृति के लिए सौंपने का निर्देश दिया. पीसीसीएफ़ वन्यजीव का पदभार ग्रहण करने के बाद पी.के. वर्मा ने अध्ययन के दौरान पूरे खेल को पकड़ा. अब नए सिरे से 2089 करोड़ की योजना बनाकर सरकार को भेजी गई है.
ये मामला नॉर्थ कर्णपुरा की केरेडारी कोल माइनिंग परियोजना से जुड़ा है. इस क्षेत्र में खनन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए 2050 करोड़ की समेकित वन्यजीव प्रबंधन परियोजना बनाई गई थी. लेकिन फाइल से वित्तीय दस्तावेज़ ग़ायब कर योजना की लागत 225.25 करोड़ कर दी गई.
इस साज़िश के पर्दाफ़ाश होने के बाद अब राज्य सरकार ने पांच सदस्यीय जांच टीम का गठन किया है जो अगले तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.
55200 हेक्टेयर में 100 कंपनियां करेंगी खनन
रांची, चतरा, लोहरदगा और हज़ारीबाग के 3.146 लाख हेक्टेयर में नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक का फैलाव है. इसके 55200 हेक्टेयर में 60 से 100 कंपनियां आने वाले समय में खनन करेंगी. कोल ब्लॉक आवंटन से पहले खनन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए समेकित वन्य प्राणी प्रबंधन योजना बनाई गई.
वन विभाग के सर्वे के मुताबिक़ बड़े स्तर पर खनन से क्षेत्र की प्राकृतिक, वनस्पति, जैव संपदा, वन्यजीव, वन्यजीवों का रास्ता और पांच लाख की आबादी बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में आएगी. यही नहीं, दामोदर नदी के तीन महत्वपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र तेनुघाट, उत्तरी कोयल, पलमीर और फलगू प्रभावित होंगे. इसके साथ ही दामोदर नदी से लगे विशेष जैव विविधता वाले क्षेत्र महुदी हिल, सत पहाड़, दुर्लभ औषधीय पौधे, भूदृश्य, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विरासत तहस-नहस होगी.
इस दुष्प्रभाव को रोकने के लिए नवम्बर 2015 में 2050 करोड़ की समेकित वन्यप्राणी प्रबंधन योजना तैयार की गई. योजना का वित्तीय लक्ष्य 10 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर खनन क्षेत्र निर्धारित किया गया. यह राशि खनन कंपनियों को मिलकर खर्च करना है.
