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Reading: समान शिक्षा का सपना टूट गया… इसमें कोई शक?
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BeyondHeadlines > India > समान शिक्षा का सपना टूट गया… इसमें कोई शक?
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समान शिक्षा का सपना टूट गया… इसमें कोई शक?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 13, 2019
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6 Min Read
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By Hemant Kumar Jha

बीते 4 वर्षों में हरियाणा में 208 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया है, 903 और सरकारी स्कूल बंद होने के कगार पर हैं. कारण —उन स्कूलों में निरन्तर घटती छात्रों की संख्या.

ग़ौर करने की बात यह है कि इसी अवधि के दौरान हरियाणा में 974 नये प्राइवेट स्कूलों को मान्यता दी गई है.

अभी पिछले महीने बीबीसी की रिपोर्ट आई थी कि बिहार सरकार ने 1140 सरकारी स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया है. यह आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि इस अवधि में बिहार में कितने नये प्राइवेट स्कूलों को मान्यता दी गई है. लेकिन, इतना निश्चित है कि जितने सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं उससे बड़ी संख्या में नये प्राइवेट स्कूल खुल चुके होंगे.

आप बिहार, यूपी, एमपी, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों के सुदूर गांवों में भी अब अंग्रेज़ी नामों वाले प्राइवेट स्कूलों के बोर्ड देख सकते हैं जिनकी न्यूनतम आधारभूत संरचना भी नहीं होती, जिनमें नियुक्त अधिकतर शिक्षकों की योग्यता नितांत संदिग्ध है… लेकिन उनमें बच्चों की भीड़ है.

सरकारी स्कूलों को बंद करने की शुरुआत राजस्थान से हुई थी. फिर यह सिलसिला मध्य प्रदेश पहुंचा. उसके बाद बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि में भी सरकारी स्कूलों को बंद किये जाने का सिलसिला शुरू हुआ.

बीते एक दशक में इन राज्यों के क़स्बों और छोटे शहरों में जितनी संख्या में प्राइवेट स्कूल खुले हैं उतनी तो कोल्ड ड्रिंक्स की नई दुकानें भी नहीं खुली होंगी.

ठीक है… आप तर्क दीजिये कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक कामचोर हैं, वे ठीक से नहीं पढ़ाते… वे अक्सर हड़ताल पर रहते हैं… और तो और आप यह भी तर्क देंगे कि सरकारी शिक्षकों में अधिकतर अयोग्य हैं. आप पूरी तरह ग़लत नहीं होंगे. नियोजित और पारा शिक्षकों में अयोग्य शिक्षकों की अच्छी ख़ासी संख्या है. लेकिन, अब तो सीटीईटी, टीईटी आदि लेकर नियुक्तियां हो रही हैं, तब भी सरकारी शिक्षकों को लेकर धारणाएं बेहतर नहीं हो रही हैं.

लेकिन, जिस क़स्बाई प्राइवेट स्कूल में आपका बच्चा पढ़ता है उसके शिक्षकों की योग्यता के बारे में आप कितना जानते हैं?

दरअसल, सारा मामला परशेप्शन का है. बहुत जतन से और अत्यंत सुनियोजित तरीक़े से सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के प्रति जन धारणाओं को ध्वस्त किया गया है.

आप टीवी में देखते हैं… अचानक से कोई रिपोर्टर अपने कैमरा मैन के साथ किसी सरकारी स्कूल में पहुंच जाता है और शिक्षकों की योग्यता की जांच करने लगता है. पता नहीं, यह अधिकार उसको किसने दिया… शिक्षकों को उल्टे तुरंत उस रिपोर्टर से पूछना चाहिए कि बताओ टेलीविज़न की स्पेलिंग क्या है, एडिटर्स गिल्ड का अध्यक्ष कौन है, चैनल की स्पेलिंग क्या है.

बहरहाल, आपने अभी तक शायद ही कोई रिपोर्ट देखी हो कि कोई रिपोर्टर किसी प्राइवेट स्कूल में अचानक धावा बोल कर शिक्षकों की योग्यता जांच करने लगा हो. ऐसा करने के अनेक ख़तरे हैं जो वह रिपोर्टर नहीं उठाएगा.

दीवार पर लिखी इबारत को पढ़िये. धीरे-धीरे सरकारी स्कूल बंद होते जाएंगे, प्राइवेट स्कूल खुलते जाएंगे. रिक्शा चलाने वाले, खोमचा पर गोलगप्पा बेचने वाले भी आमदनी का स्तर थोड़ा भी सुधरने पर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजने को उत्सुक हो रहे हैं.

सरकारी स्कूलों और उनके शिक्षकों की ज़रूरत न सरकार को रहने वाली है न समाज को.

यह अकूत मुनाफ़े का क्षेत्र है जिसमें ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहने वाली है. अलग-अलग आमदनी वाले ग्राहकों के लिये अलग-अलग स्तर की शिक्षा की दुकानें. जैसे आप शहर जाते हैं तो देखते हैं कि अलग-अलग औक़ात के लोगों के लिये होटलों की श्रेणियां भी अलग-अलग हैं. उसी तरह रिक्शे-खोमचे वालों के बच्चों के लिये अलग स्कूल, निम्न मध्य वर्ग के बच्चों के लिये अलग, मध्य वर्ग के लिये अलग, उच्च मध्य वर्ग के लिये अलग और उच्च वर्ग के लिये तो ऐसे स्कूलों की श्रृंखलाएं हैं जिनकी फ़ीस के बारे में पढ़ कर हम दंग ही रह जाते हैं.

अलग-अलग श्रेणियों के इन स्कूलों की शिक्षा के स्तर में, सुविधा के स्तर में, शिक्षकों की योग्यता के स्तर में अंतर स्वाभाविक है. ज़ाहिर है, ग़रीब और निम्न मध्य वर्ग के बच्चे ऊंचे अवसरों के मामले में मध्य और उच्च मध्य वर्ग के बच्चों से पिछड़ने को अभिशप्त होंगे.

समान शिक्षा का सपना टूट गया… इसमें कोई शक? 

अब इस संदर्भ में इस नारे की हक़ीक़त का अंदाज़ा लगाइए —“एक भारत, श्रेष्ठ भारत…”

(लेखक पाटलीपुत्र यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. ये लेख उनके फेसबुक टाईमलाईन से लिया गया है.)

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