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क्या ऐसी इफ़्तार पार्टी का करना और उसमें हमारा जाना जायज़ है?

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: रमज़ान का मुबारक महीना अब हम से जुदा होने को है. ऐसे में सियासी दलों के साथ-साथ मिल्ली व सामाजिक तंज़ीमें इफ़्तार पार्टी का आयोजन ख़ूब दिल खोलकर कर रही हैं. मीडिया संस्थान भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं. लेकिन सवाल है कि क्या ऐसी इफ़्तार पार्टी का करना और बतौर रोज़ेदार हमारा इस इफ़्तार पार्टी में जाना जायज़ है? ये सवाल सोशल मीडिया पर कई पत्रकार पूछते नज़र आ रहे हैं. 

बता दें कि रविवार दो जून को चौथी दुनिया मीडिया ग्रुप की तरफ़ से दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया गया. इस इफ़्तार पार्टी में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, पाकिस्तान के हाई कमिश्नर मोइन-उल-हक़, जस्टिस काटजू, दिल्ली विधानसभा के स्पीकर रामनिवास गोयल, पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब, बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी, पूर्व चुनाव आयुक्त शाहबुद्दीन याक़ूब कुरैशी, अमर उजाला के संपादक विनोद अग्निहोत्री, वरिष्ठ पत्रकार नलिनि सिंह, आचार्य प्रमोद कृष्णम, वरिष्ठ पत्रकार अभय दूबे, अजमेर दरगाह के प्रमुख सज्जादानशीन अब्दुल बारी चिश्ती, वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े, आर.के. आनंद, असलम शेरखान, नायब अमीर जमात-ए-इस्लामी हिन्द सलीम इंजीनियर, मुज़फ़्फ़र अली और मीडिया जगत से जुड़े तमाम लोगों के अलावा साहित्य और समाज के कई गणमान्य लोगों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई.

चौथी दुनिया द्वारा आयोजित इस इफ़्तार पार्टी का विरोध पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर लगातार कई पत्रकार कर रहे थे, लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया. ऐसे में ये सवाल जायज़ हो जाता है कि जो इफ़्तार पार्टी किसी का हक़ मार कर की जा रही हो, क्या उसका विरोध नहीं होना चाहिए.

दरअसल, इस इफ़्तार पार्टी का विरोध इसलिए किया जा रहा था क्योंकि इस पार्टी के आयोजक यानी चौथी दुनिया व लाउड टीवी परिवार के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने अक्टूबर 2018 से अब तक अपने दर्जन भर कर्मचारियों का वेतन ये बोल कर नहीं दे रहे हैं कि उनके पास पैसा नहीं है. 

संतोष भारतीय के इस ज़ुल्म के शिकार हुए एक पत्रकार का कहना है कि दिसंबर 2018 में सबको इस्तीफ़ा देने या फिर मार्च 2019 तक बिना पैसे के काम करने को कहा गया था. ज़ाहिर है कि जब अक्टूबर से ही पैसा नहीं मिल रहा था, तब फिर अगले 4 महीने तक बिना पैसा काम करना मुश्किल था. सो लगभग 10 से अधिक पत्रकारों/कर्मचारियों (तक़रीबन सारे के सारे) ने इस्तीफ़ा दे दिया. सबसे कहा गया कि फ़रवरी 2019 तक बुलाकर सबको बक़ाया वेतन दे दिया जाएगा. मई बीत रही है. लेकिन पैसा मांगने पर हर बार एक ही जवाब होता है कि पैसा नहीं है. 

पत्रकार शशि शेखर ने सोशल मीडिया पर लिखा है —‘या ख़ुदा… संतोष भारतीय को सद्बुद्धि दे… ताकि कर्मचारियों के पसीने की कमाई हड़प कर इफ्तार पार्टी करने वाले को पता चले कि उसका गुनाह क्या है… इतना ही पैसा था तो लाखों रुपये की इफ्तार पार्टी करने से पहले आपको उन कर्मचारियों/पत्रकारों का पैसा देना चाहिए था, जिनसे दिसंबर 2018 में इस्तीफ़ा लेकर अब तक यानी मई 2019 बक़ाया वेतन देने में आनाकानी कर रहे हैं. और आज जब ये सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं अपने हक़ का पैसा लेने के लिए तो आपके दफ्तर से उन्हें धमकी दी जाती है कि अवमानना का केस कर देंगे. आप लाउड टीवी यूट्यूब चैनल लांच करते हैं, इफ़्तार पार्टी करते हैं, लेकिन कर्मचारियों को पैसा नहीं देते हैं, क्यों?’

शशि शेखर ने यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या ऐसी इफ्तार पार्टी में आदरणीय नेतागण/बुद्धिजीवी/पत्रकार जाकर खुदा को खुश करेंगे या नाराज़? क्या ऐसी इफ्तार पार्टी में जाकर आप भी कर्मचारियों का पैसा हड़पने वाले के गुनाह का भागीदार बनेंगे? शायद नहीं…

बता दें कि चौथी दुनिया ऐसी हरकत सिर्फ़ अपने पत्रकारों व कर्मचारियों के साथ ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से उनके लिए काम करने वाले पत्रकारों के साथ भी कर चुकी है. हर रिपोर्ट पर पैसे देने का वादा कर चुके इस संस्थान ने अपने कई स्वतंत्र पत्रकारों को भुगतान नहीं किया. 

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