BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ/मुज़फ़्फ़रनगर : 12 जून को सादे ड्रेस में एक आदमी आया और पापा को पूछते हुए घर में घुस गया. मोहल्ले में नूर हसन के यहां वलीमा था. बहुत से मिलने-जुलने वाले भी घर आए थे. पापा ऊपर वाले कमरे में थे. ऊपर से वो पापा को खींचकर लाने लगा तो अफ़रा-तफ़री का माहौल हो गया. हम सब बहनें रोने लगीं और अपने पापा को ले जाने का कारण पूछने लगीं तो पुलिस वाले हमें भी मारने-पीटने लगे…’
ये बातें सलमा की हैं, जो मुज़फ़्फ़रनगर सांप्रदायिक हिंसा मामले में गवाह इकराम की बेटी हैं. आरोप है कि इकराम पर लगातार गवाही बदलने का दबाव बनाया जा रहा है.
यह पूछने पर कि कोई महिला पुलिस थी तो इस पर सलमा ने ‘नहीं’ में जवाब दिया और साथ ही यह भी बताया कि पुलिस वाले महिलाओं तक को मार रहे थे.
उन्होंने बताया कि उनकी अम्मी और उन लोगों ने जब विरोध किया तो पुलिस वालों ने उनके कपड़े तक फाड़ दिए.
60 वर्षीय बुजुर्ग महिला हसीना के पैर और उनकी बहन रुबीना के गर्दन में आज भी चोटों के ज़ख्म देखे जा सकते हैं.
सलमा बताती हैं कि इसके बाद पुलिस वाले उनके पिता को जबरन ले जाने लगे. जब उन्होंने विरोध किया तो गोलियां भी चलाईं, जिसमें एक गोली तो ऐसे मारी जैसे उनको पकड़ना तो केवल बहाना था, वे तो पापा को मारने के लिए ही आए थे.
सलमा ने रोते हुए बताया कि 25 जून को उसकी शादी है और पुलिस वालों ने तो हमारे घर में ग़म का माहौल पैदा कर दिया है.
इकराम की पत्नी का कहना है कि इस घटना के बाद से वो 6 बेटियों और दो बेटों के साथ बहुत असुरक्षित महसूस कर रही हैं. उन्हें डर है कि कब पुलिस आ जाए.
उन्होंने बताया कि 17 जून को शाम लगभग 5 बजे तीन पुलिस वाले दोबारा आए. कहा कि वे पुलिस पर हुए हमले की जांच करने आए हैं.
इकराम की पत्नी ने कहती हैं कि उनके पति पर गोलियां पुलिस ने चलाई, उनके कपड़े फाड़े और अब कह रहे हैं कि पुलिस पर हमला…
इकराम के पिता नफेदिन बताते हैं कि वो रहीसू की हत्या के गवाह हैं और 24 जून को अदालत में उनकी गवाही है. इसलिए उन पर पिछले पांच-सात महीने से बहुत दबाव बनाया जा रहा है.
करन, मदन, प्रवीण, फेरु, विक्की आरोपियों का नाम लेते हुए कहते हैं कि ये सब विधायक उमेश मलिक के आदमी हैं. किसे मालूम था कि वह पुलिस वाले हैं जो सादी वर्दी में आए और घर में घुस गए. घर में कोई बदमाश छिपाए होते तो थोड़े कोई इस तरह जाने देता. पुलिस वाले जब इकराम को नहीं ले जा पाए तो उन लोगों ने यह कहानी बनाई. वो तो मेरे बेटे को उस दिन मार ही देते.
मोहल्ले वाले बताते हैं कि सादी वर्दी वाला नितिन सिपाही था जिसके साथ तीन मोटर साइकिल पर लोग आए थे. थोड़ी ही देर में एक बोलेरो और दो जीप भी आ गई.
बता दें कि रहीसू हत्याकांड मामले में शमशेर भी एक गवाह हैं. उन पर भी लगातार दबाव है. वो बताते हैं कि आरोपी पक्ष ने साढ़े चार लाख रुपए देकर अन्य गवाहों को अपने पक्ष में कर लिया है जिनमें अफ़रोज़, प्रवीन और यहां तक कि रहीसू का लड़का हनीफ़ भी शामिल है.
रहीसू हत्याकांड मामले के अहम गवाह शमशेर उस दिन इकराम के साथ हुई घटना की बात करते हुए कहते हैं कि करन ने छह लाख रुपए तक गवाही बदलने पर देने को कहा. यही नहीं, इस घटना के पन्द्रह-बीस दिन पहले भी सुरेश और रहीसू का बेटा हनीफ़ आए थे. दो महीने से इनका दबाव बहुत बढ़ गया है.
वे बताते हैं कि करन, सुरेश, भूरा, फेरु, विक्की, मदन, संहसर, प्रवीण, श्यामत ये सभी दो-दो, तीन-तीन साल तो कोई छह महीना जेल काटकर निकले हैं.
बता दें कि इकराम और उनके भाई आदिल भी फेरी के काम से परिवार पालते रहे हैं. सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों के इस मोहल्ले में मुहम्मदपुर रायसिंह, खेड़ा, फुगाना और अन्य जगहों से सांप्रदायिक तत्वों के डर-भय से विस्थापित 60-70 परिवारों का बसेरा है.
एक प्रतिनिधिमंडल ने की परिजनों से मुलाक़ात
इस घटना के बाद इसकी जांच के लिए उत्तर प्रदेश के सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने सफीपुर पट्टी की दंगा पीड़ित बस्ती बुढ़ाना में परिजनों से मुलाक़ात की.
अपनी जांच में पाया कि ग्राम मुहम्मदपुर रायसिंह थाना भौराकलां में 8 सितंबर 2013 को हुई सांप्रदायिक हिंसा में रहीसुद्दीन पुत्र कपूरा की हत्या हो गई थी जिसके गवाह इकराम के पिता नफेदीन हैं. इकराम सहित कई लागों के घरों में आगजनी हुई थी जिसको लेकर मुक़दमा दर्ज हुआ था. इस घटना के बाबत स्पेशल टीम ने जांच की थी जिसके बाद फेरु, करन, संहसर, मदन, प्रवीण, विजय, संजीव, विनोद, प्रवीण आदि को आरोपी बनाया गया था.
इस मुक़दमे में इकराम की गवाही होनी है जिसको लेकर सुरेश, विक्की और अन्य इकराम पर 6-7 महीने से अपने पक्ष में गवाही देने का दबाव बना रहे थे. सुरेश और अन्य 10 जून 2019 को लगभग 10 बजे सुबह इकराम के घर आए और समझौते के लिए दबाव बनाने लगे. सुरेश का कहना था कि विधायक उमेश मलिक के मन मुताबिक़ फ़ैसला कर लो, तुमको 6 लाख रुपए मिलेगा लेकिन गवाही दोगे तो तुम्हारा इनकाउंटर करा दिया जाएगा. इकराम लालच और धमकी के सामने नहीं झुके.
उधर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त आरोपियों के हौसले बुलंद थे. 12 जून 2019 को दोपहर बाद क़रीब ढाई बजे इकराम घर में मेहमानों के साथ बैठा था कि एक व्यक्ति आया और उसने पूछा कि इकराम कौन है. इकराम की पहचान होते ही वह उन्हें घसीटते हुए ऊपर से नीचे की ओर ले आया. तब तक आठ-दस पुलिसकर्मी और आ गए थे. उन लोगों ने कहा कि थाने चलो, सीओ साहब ने बुलाया है. इनमें बुढ़ाना थाने के सिपाही नितिन, सतीश, शिवकुमार व दरोगा ओमकार पाण्डेय व अन्य शामिल थे. इकराम को वे ज़बरदस्ती थाने ले जाने लगे जबकि उनके पास कोई वारंट नहीं था. इकराम की पत्नी हाजरा, लड़कियां गुलफ़शा, रुबी, सलमा, आशमा छुड़ाने लगीं तो उनको डंडों, लात मुक्कों से मारा. इकराम बहुत डरा हुआ था. पुलिस से जान बचाने की कोशिश की तो सामने से एक पुलिसकर्मी ने गोली चला दी. इकराम तुरंत ज़मीन पर लेट गया और गोली से बच गया. फिर पुलिस द्वारा दो और हवाई फायर किए गए और फिर राइफल के कुंदे से मारा.
इकराम की पत्नी ने पति को पिटता देख उसे बचाने की कोशिश की तो उसे और उसकी बेटियों तक को मारा. उसकी पत्नी के कपड़े तक फाड़ दिए. आस-पड़ोस के काफ़ी लोग इकट्ठा हो गए पर पुलिस कुछ सुनने को तैयार नहीं थी. पुलिस इलियास उर्फ़ मिंटू और इंतज़ार फौजी को पीटते हुए थाने ले गई और बिना क़सूर के हवालात में बंद कर दिया. थाने पर आम जनता ने पहुंचकर निर्दोषों को छोड़ने की मांग की तो रात आठ बजे के क़रीब उन्हें छोड़ा.
इस प्रतिनिधीमंडल का कहना है कि पुलिस थाना बुढ़ाना पर सत्ता पक्ष का दबाव साफ़-साफ़ दिखा जो मुज़फ्फ़रनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक उतरने पर उतारु दिखी. जो लोग दंगे के बाद अपना घर-गांव छोड़ने को विवश हुए, एक बार फिर राजनीतिक बदले की भावना से भरे पुलिसिया हिंसा का शिकार हो रहे हैं. पुलिस अपने ऊपर उठ रहे सवालों से बचने के लिए कह रही है कि वो वहां बदमाश को पकड़ने गई थी. सवाल उठता है कि इकराम पर पुलिस ने फायरिंग क्यों की. सादी वर्दी में इकराम को मारते-पीटते पुलिस का जो वीडियो सामने आया है उसे देख कोई भी कह सकता है कि पुलिस इकराम का इनकाउंटर करने आई थी. अपने बचाव में पुलिस ने यह कहानी गढ़ी कि वो राजा नाम के किसी बदमाश को पकड़ने के लिए गई थी जिसे इकराम ने सरंक्षण दिया था. ऐसे में पुलिस ने उसको भगाने के एवज में इकराम को निशाना बनाया. ऐसा करके वह यूपी में हो रही फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में एक और मुठभेड़ को न सिर्फ़ शामिल करती बल्कि मुज़फ्फ़रनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी भाजपा विधायक उमेश मलिक के समर्थकों की गर्दन क़ानून के हाथों से छुड़ा लेती. अगर ऐसा नहीं था तो क्यों पुलिस बार-बार वीडियो में भी कह रही है कि सीओ साहब बुला रहे हैं. किसी को बिना वारंट के उठाने में सीओ साहब की इतनी दिलचस्पी क्यों थी कि उसके ऊपर तीन-तीन गोलियां चलाई गईं. क्या अगर कोई अप्रिय घटना हो जाती तो उसका दोषी सीओ साहब और उनके कहने पर आए पुलिस कर्मी नहीं होते. इस आपराधिक घटना के दोषी पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ सख्त कारवाई की जाए.
बता दें कि इस प्रतिनिधिमंडल में इलाहाबाद हाईकोर्ट अधिवक्ता संतोष सिंह, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, बाकेलाल यादव और स्थानीय अफ़क़ार इंडिया फाउंडेशन के रिज़वान सैफ़ी, नदीम खान, अस्तित्व सामाजिक संस्था के कोपिन और कविता शामिल थीं.
