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अपने ऊपर कॉन्फीडेंस था और लगातार लगी रही, इसीलिए आज मैं आईएएस हूं…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 19, 2019 3 Views
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9 Min Read
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

हमेशा हर चीज़ आपके हाथ में नहीं हो सकती. लेकिन किसी चीज़ को पाने के लिए मेहनत करना आपके हाथ में ज़रूर है. रेना जमील के हाथ में भी मेहनत करना ही था, और आज अपनी मेहनतों की वजह से आईएएस बन चुकी हैं. 

झारखंड के धनबाद ज़िले के कतरास इलाक़े के छाताबाद गांव में जन्मी रेना जमील की इस बार यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में 380वीं रैंक आई है. जबकि साल 2016 की परीक्षा में इन्होंने 882 रैंक हासिल की थी.

रेना जमील बताती हैं कि 2016 में इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस मिला था. लेकिन आंखों में आईएएस बनने के ही ख़्वाब तैर रहे थे. ट्रेनिंग ज्वाईन करना भी ज़रूरी था. इसीलिए ट्रेनिंग के साथ 2017 यूपीएससी फिर से दिया, लेकिन प्रिलिम्स में ही फेल हो गई. फिर भी मैं हार नहीं मानी. कुछ दिनों छुट्टी लेकर तैयारी की. और इसके नतीजे में 380 रैंक आया और अब मैं आईएएस बन चुकी हूं.

Rena Jamil, UPSC Rank -380

रेना जमील के पिता मोहम्मद जमील अंसारी टाटा कम्पनी से रिटायर हुए हैं. वो टाटा में मैकेनिकल सिपर्ड्स थे. वहीं मां नसीम आरा होम मेकर हैं. इनके चार भाई बहन हैं. बड़े भाई रौनक जमील अंसारी इंडियन रेवेन्यू सर्विस में हैं. इन्होंने 2014 में 763 रैंक हासिल किया था. छोटा भाई इंजीनियर है और अभी प्रसार भारती के साथ काम कर रहा है. वहीं छोटी बहन मास्टर करके पीएचडी में दाख़िले की तैयारी कर रही है. 

रेना आठवीं क्लास तक छाताबाद के उर्दू मिडल स्कूल से उर्दू मीडियम में तालीम हासिल की. फिर यहीं से 10वीं व 12वीं की पढ़ाई भी मुकम्मल की. उसके बाद एस.एस.एल.एन.टी. महिला महाविद्यालय से जूलॉजी में बीएससी और पी.के. रॉय मेमोरियल कॉलेज से एमएसी की डिग्री हासिल की. इसके बाद इन्होंने बीएड भी किया है.  

रेना कहती हैं, अम्मी मेरे लिए हमेशा मोटिवेशनल रहीं. कभी उन्होंने मुझे घर के कामों में नहीं लगाया, बल्कि वो हमेशा पढ़ने पर ज़ोर देती रहीं. हालांकि मेरे लिए ये सबकुछ इतना आसान नहीं था. सिर्फ़ कॉलेज में पढ़ने के लिए मुझे हर रोज़ तक़रीबन 50 किलोमीटर आना-जाना होता था. कभी बस, कभी ऑटो या फिर कभी घंटों पैदल… सुबह निकली तो रात को ही घर पहुंच पाती थी.

ये पूछने पर कि अब आईएएस हैं. ट्रेनिंग के बाद आप जिस ज़िले में जाएंगी, वहां आपका सबसे पहला काम क्या होगा. इस पर रेना कहती हैं कि, हर ज़िले की अपनी अलग-अलग समस्याएं होती हैं. लेकिन मेरा ख़ास ध्यान एजुकेशन व हेल्थ सेक्टर पर होगा. क्योंकि इन दोनों सेक्टर को लेकर मेरा तजुर्बा बहुत ख़राब रहा है. मैं नहीं चाहूंगी कि मेरे ज़िले में कोई हेल्थ सर्विस की वजह से अपनी जान से हाथ धो डाले और किसी की लड़की की पढ़ाई इसलिए ही बीच में छूट जाए कि कॉलेज बहुत दूर है.  

रेना जमील को उर्दू शायरी बहुत पसंद है. ख़ास तौर पर फ़ैज़, ग़ालिब और इक़बाल को पढ़ती रही हैं. ख़ास बात ये है कि रेना अब तक ख़ुद क़रीब 50 नज़्में लिख चुकी हैं. ये तमाम नज़्में उर्दू ज़बान में है. 

https://youtu.be/nR3zLWtP8f8

ऐसी क्या बात थी जिससे आपने तय किया कि मुझे सिविल सर्विस में ही जाना है? इस सवाल के जवाब में रेना बताती हैं कि, आमतौर पर हमारे यहां लड़कियों के एजुकेशन पर ज़्यादा फोकस नहीं किया जाता है. अगर घर वाले पढ़ा भी रहे हैं तो मक़सद सिर्फ़ व सिर्फ़ इतना है कि शादी ठीक-ठाक घर में हो जाएगी. मेरी भी कई दोस्त थी, जो पढ़ने में बहुत शार्प थीं, लेकिन कहीं न कहीं वो आगे नहीं पढ़ सकीं. आगे नहीं जा पाईं. फैमिली प्रेशर या अन्य कारणों से. बहुतों को तो सिर्फ़ इसलिए कॉलेज नहीं भेजा गया क्योंकि कॉलेज की दूरी ज़्यादा थी, लेकिन मेरे मामले में मेरी फैमिली थोड़ी सपोर्टिव रही. ऐसे में मैंने ये सोचना शुरू किया कि मुझे कुछ ऐसा करना है जो दूसरों के लिए मिसाल भी बने. ऐसे लोग मेरी बात सुनें जो अपनी लड़कियों को सिर्फ़ और सिर्फ़ शादियों के लिए पढ़ाते हैं या पढ़ाते ही नहीं हैं. तभी मैंने तय किया कि कुछ बड़ा करना है ताकि लड़कियों के लिए मैं इंस्पेरेशन बन सकूं.  

परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां की? इस पर रेना जमील का कहना है कि 2014 में मेरे बड़े भाई इस परीक्षा में कामयाब हुए. उन्हीं के गाईडेंस पर मैं जामिया आई. इससे पहले मैं एनसीआरटी अच्छी तरह पढ़ चुकी थी. न्यूज़पेपर भी हमेशा पढ़ती थी. मैंने इस परीक्षा के लिए जूलॉजी ही लिया क्योंकि इसी विषय में मैंने बीएससी व एमएससी किया था. 

एक लंबी बातचीत में अपने संघर्षों के बारे में रेना बताती हैं कि मेरी ज़िन्दगी के सफ़र में काफ़ी अप-डाउन्ड्स रहें. दो बार मेन्स तक पहुंच कर कामयाब नहीं हो सकी. तीसरी बार कामयाबी मिली लेकिन जो चाहिए था वो मिला नहीं. बावजूद इसके अपने ऊपर कॉन्फीडेंस था और लगातार अपने मक़सद के लिए लगी रही. आज इसी की वजह से कामयाब हूं. हालांकि मैं इस सर्विस से भी खुश थी, लेकिन वो मेरा मक़सद या गोल नहीं था. तभी मैं सर्विस के साथ तैयारी में लगी रही. मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ आईएएस बनना चाहती थी और मैं बन गई.

यूपीएससी की तैयारी करने वालों को क्या संदेश देना चाहेंगी? इस सवाल पर रेना बताती हैं कि तमाम चीज़ें आपके हाथ में नहीं है. बस मेहनत करना ही आपके हाथ में है. और हां! मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है. मेरे साथ भी कई समस्याएं आई. फेल भी हुई. सारी चीज़ें मेरे साथ भी लगी रही. लेकिन मैं लगातार मेहनत करती रही. मैं आपसे भी यही कहूंगी कि हमेशा अपने ख़्वाब को पूरा करने के बारे में ही सोचें. अगर मैं भी ऐसा नहीं करती तो यक़ीनन मैं आईएएस नहीं होती. 2016 वाले सर्विस को ही कर रही होती. इसलिए इस परीक्षा में कामयाबी के लिए सब्र बहुत ज़रूरी है. 

साथ ही मैं ये भी कहना चाहूंगी कि न्यूज़पेपर ज़रूर पढ़ें, क्योंकि लोगों के विचारों का पढ़ना ज़रूरी है, इससे आपको खुद के विचार डेवलप करने में आसानी होती है. और हां! अपने रिसोर्सेस हमेशा लिमीटेड रखना चाहिए. सब पढ़ने के चक्कर में लगे तो फिर सिलेबस कभी पूरा नहीं हो पाएगा. जो भी पढ़े, दिल से पढ़े और पूरा वक़्त देकर पढ़ें. 

देश के युवाओं खास़ तौर से अपने क़ौम की लड़कियों से आप क्या कहना चाहेंगी? तो इस पर रेना  कहती हैं कि, एजुकेशन ही आज सबकुछ है. तो एजुकेशन पर हर हाल में ध्यान दें. मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटें. अगर मैं कर सकती हूं तो यक़ीन मानिए कोई भी कर सकता है. लेकिन इसके लिए आपको आगे आना पड़ेगा और मेहनत करनी होगी.  

वो ख़ास तौर पर लड़कियों से कहती हैं कि आपको खुद से आगे आने और मेहनत करने की ज़रूरत है. साथ ही समाज की भी ज़िम्मेदारी है कि लड़कियों को तंगनज़री के साथ देखना बंद करें. बल्कि उन्हें आगे बढ़ाएं. लड़कियों में टैलेंट बहुत ज़्यादा होता है. बस हम थोड़ा सा ओपन माईंडेड हो जाएं तो बहुत आगे चली जाएंगी. साथ ही लड़कियों की भी ज़िम्मेदारी है कि वो मेहनत करके अपने सपनों को पूरा करें… और हां, ख्वाब थोड़ा बड़ा होना चाहिए. 

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