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बेरोज़गारी को ख़त्म करने के लिए अब बेरोज़गारों की ही ख़त्म करने की तैयारी!

BeyondHeadlines News Desk 

नई दिल्ली: मोदी सरकार में शिक्षा की अहमियत दिनों-दिन घटती जा रही है. ताज़ा बजट में माध्यमिक शिक्षा के बजट में ज़बरदस्त कटौती देखी जा सकती है. सरकार ने इसका बजट 255.90 करोड़ से घटाकर महज़ 100 करोड़ कर दिया है. यानी सरकार देश में बेरोज़गारी को ख़त्म करने के लिए बेरोज़गारों को ही ख़त्म करने की तैयारी में नज़र आ रही है, क्योंकि जब बच्चे पढ़ेंगे तो नौकरी किस हद से मांग पाएंगे. 

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने सरकार से माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय योजना के लिए आवंटन में लगाए गए बजटीय कटौती को बहाल करने का आग्रह किया है. फाउंडेशन का मानना है कि इस कमी से माध्यमिक विद्यालयों में बालिकाओं की शिक्षा पर ख़ासा असर पड़ सकता है, जो किसी भी तरह से देशहित में नहीं है.

फाउंडेशन का कहना है कि यह चिंता का विषय है कि मौजूदा बजट में बच्चों के लिए धन के आवंटन में 16 फ़ीसद की वृद्धि के बावजूद, उनके लिए आवंटित धन का प्रतिशत केवल 3.29 तक ही है, जो 2016-17 और 2017-18 के दौरान 3.32% था. हम सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह बालिकाओं के सशक्तीकरण और संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए कीराष्ट्रीय बालिका शिक्षा योजना को और प्रोत्साहन प्रदान करेंगे. राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना और बालश्रम पीड़ितों के पुनर्वास को बजट के दायरे में लाकर और अधिक संसाधन लगाए जाने चाहिए.

हालांकि सरकार की सराहना करते इस फाउंडेशन ने कहा है कि, बाल संरक्षण सेवाओं (सीपीएस) के लिए आवंटन को 2018-19 में 725 करोड़ रुपये से 2019-20 में 1500 करोड़ यानि तक़रीबन दोगुना करने से पीड़ित बच्चों को अधिक सहायता मिलेगी. हम सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत बाल कल्याण के लिए बजट में 89 प्रतिशत की वृद्धि का स्वागत करते हैं, इसके अलावा छात्रवृत्ति के रूप में पिछड़ी जाति के बच्चों को अधिक वित्तीय सहायता से राहत मिलेगी. हम श्रम क़ानूनों को सुव्यवस्थित करने और देश में श्रम न्यायालयों की स्थापना के लिए भी ज़ोर देते हैं.

बता दें कि मोदी सरकार ने दोबारा सत्ता में आने पर ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का नारा देकर दावा किया था कि सरकार अल्पसंख्यकों को शिक्षित कर उनका विश्वास जीतना चाहती है. लेकिन ताज़ा बजट में अल्पसंख्यकों की शिक्षा से जुड़ी सभी योजनाओं का बजट घटा दिया गया है. गरीब अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप का बजट भी इस बार कम होता नज़र आ रहा है. फ़रवरी में पेश किए गए बजट में इसके लिए 530 करोड़ रूपये प्रस्तावित था, लेकिन अब जुलाई में इसके लिए 496.01 करोड़ रूपये रखा गया है. 

व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों- स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सेज के लिए योग्यता सह साधन छात्रवृत्ति योजना यानी ‘मेरिट कम मिन्स स्कॉलरशिप’ के लिए फरवरी के चुनावी बजट में 506 करोड़ रूपये का प्रावधान था, लेकिन अब जुलाई में इस योजना के लिए 366.43 करोड़ रुपये का ही प्रस्ताव रखा गया है.

प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप का प्रस्तावित बजट इस बार कम होता नजर आ रहा है। पिछले वित्तीय साल यानी 2018-19 में इस स्कीम के लिए 1269 करोड़ का बजट रखा गया था. लेकिन इस साल इसके लिए प्रस्तावित बजट को घटाकर 1220 करोड़ कर दिया गया है. बताते चलें कि ये स्कॉलरशिप अल्पसंख्यक कल्याण की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण योजना है, ताकि गरीब अल्पसंख्यक अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें.

मोदी सरकार के इस बजट में सिविल सेवा एवं अन्य प्रतियोगी परिक्षाओं में बैठने वाले छात्रों की मदद के लिए शुरू की गई योजना ‘Free Coaching and allied schemes for Minorities’ का भी बजट फरवरी वाले बजट से कम नजर आ रहा है. फरवरी में इसके लिए 125 करोड़ रूपये प्रस्तावित था, लेकिन अब ये रकम 75 करोड़ रूपये हो गई है.

विदेशों में अध्ययन के लिए शिक्षा ऋण पर ब्याज सब्सिडी (Interest Subsidy on Educational Loans for Overseas Studies) के लिए साल 2018-19 में पहले 45 करोड़ का प्रस्तावित बजट था, लेकिन इसे अब घटाकर 30 करोड़ कर दिया गया है.

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में काम करता है. ये फाउंडेशन अल्पसंख्यक बच्चों के स्कॉलरशिप के बजट में की गई कटौती के मामले में पूरी तरह से ख़ामोश नज़र आ रहा है.

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