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जानिए! मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट की क्या है गाईडलाइन, जिसका पालन नहीं कर रही है सरकार

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 27, 2019 2 Views
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6 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: 17 जुलाई, 2018 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मॉब लिंचिंग और गायों को लेकर एक अहम गाईडलाईन जारी किया था, जिसका पालन केन्द्र व राज्य सरकारों ने अभी तक नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की इसी अवमानना को लेकर एक याचिका दायर की गई, जिसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र व तमाम राज्य सरकारों से जवाब मांगा है.

ऐसे  हमारे पाठकों का जानना ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाइन कहती क्या है—

— सभी राज्य सरकारें भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक के लिए हर ज़िले में नोडल अधिकारी की नियुक्ति करें.

— यह नोडल अधिकारी पुलिस अधीक्षक (एसपी) या उससे ऊपर के रैंक का होना चाहिए.

— नोडल अधिकारी के साथ डीएसपी रैंक के एक अधिकारी को भी तैनात करना है.

— ये अधिकारी ज़िले में मॉब लिंचिंग रोकने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करेंगे, जो ऐसे अपराधों में शामिल लोगों, भड़काऊ बयान देने वाले और सोशल मीडिया के ज़रिए फेक न्यूज़ को फैलाने वालों की जानकारी जुटाएगी और कार्रवाई करेगी.

— सभी राज्यों के गृह सचिव ऐसे इलाक़ों के पुलिस स्टेशन के प्रभारियों और नोडल अधिकारियों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने का निर्देश जारी करें, जहां हाल में मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिली हैं.

— स्थानीय खुफ़िया ईकाई और थाना प्रभारियों के साथ नोडल अधिकारी नियमित बैठक कर ऐसी वारदातों को रोकने के लिए क़दम उठायेंगे. साथ ही जिस समुदाय या जाति को मॉब लिंचिंग का शिकार बनाए जाने की आशंका हो, उसके ख़िलाफ़ माहौल ठीक करने की कोशिश करेंगे.

— ज़िलों के नोडल अधिकारियों और पुलिस इंटेलीजेंस के प्रमुखों के साथ राज्यों के डीजीपी और गृह विभाग के सचिव नियमित रूप से बैठक करेंगे.

— अगर दो ज़िलों के बीच का मामला हो तो उत्पन्न होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए क़दम उठायेंगे.

— पुलिस अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-129 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल कर भीड़ तितर-बितर करने का प्रयास करेंगे.

— मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक के लिए राज्य सरकारों के बीच तालमेल बैठाने के लिए केंद्रीय गृह विभाग भी पहल करेंगे.

— केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या फिर सोशल साइट के ज़रिए लोगों को बताने की कोशिश करेंगे कि अगर किसी ने क़ानून तोड़ने और मॉब लिंचिंग में शामिल होने की कोशिश की, तो उनके ख़िलाफ़ सख्त क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.

— केंद्र और राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि सोशल मीडिया से अफ़वाह फैलाने वाले पोस्ट और वीडियो समेत सभी आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए क़दम उठाएं.

— पुलिस को मॉब लिंचिंग के लिए भड़काने या उकसाने के लिए मैसेज या वीडियो को फैलाने वालों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा-153 (ए) समेत अन्य संबंधित क़ानूनों के तहत प्राथमिकी दर्ज करें और कार्रवाई करें.

—इस संबंध में केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी करे.

— अगर तमाम कोशिशों के बावजूद मॉब लिंचिंग की घटनाएं होती हैं, तो संबंधित इलाक़े के पुलिस स्टेशन बिना किसी हीलाहवाली के फौरन एफ़आईआर दर्ज करें.

— मॉब लिंचिंग की घटना की एफ़आईआर दर्ज करने के बाद संबंधित थाना प्रभारी इसकी जानकारी फौरन नोडल अधिकारी को दे. इसके बाद नोडल अधिकारी की ड्यूटी होगी कि वो मामले की जांच करे और पीड़ित परिवार के ख़िलाफ़ आगे की किसी भी हिंसा को रोकने के लिए क़दम उठाए.

— नोडल अधिकारी को सुनिश्चित करना होगा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं की प्रभावी जांच हो और समय पर मामले की चार्जशीट दाख़िल की जा सके.

— राज्य सरकार ऐसी योजना तैयार करें, जिससे मॉब लिंचिंग के शिकार लोगों को सीआरपीसी की धारा-357ए के तहत मुआवजा देने की व्यवस्था की जाए.

— ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए हर ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाएं, जहां पर ऐसे मामलों की सुनवाई रोजाना हो सके और ट्रायल 6 महीने के अंदर पूरा हो सके.

— मॉब लिंचिंग के आरोपियों को ज़मानत देने, पैरोल देने या फिर रिहा करने के मामले में विचार करने से पहले कोर्ट पीड़ित परिवार की भी बात सुने. इसके लिए उनको नोटिस जारी करके बुलाया जाना चाहिए.

— मॉब लिंचिंग के शिकार परिवार को मुफ़्त क़ानूनी मदद दी जानी चाहिए. इसके लिए उनको लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट -1987 के तहत फ्री में एडवोकेट उपलब्ध कराना चाहिए.

— अगर कोई अधिकारी अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहता है या फिर मामले में समय पर चार्जशीट फाइल नहीं करता है, तो उसके ख़िलाफ़ डिपार्टमेंटल एक्शन लिया जाना चाहिए.

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