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झारखंड में चोर बताकर 12 किए गए लिंच, सिर्फ़ मुसलमान नहीं, हिन्दुओं की भी हुई मौत, नहीं मिला किसी को इंसाफ़

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 2, 2019
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9 Min Read
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: झारखंड में आतंकी भीड़ के ज़रिए तबरेज़ अंसारी की हत्या के बाद आम लोगों का गुस्सा अभी तक चरम पर है. नफ़रत की इस हिंसा के ख़िलाफ़ हर तरफ़ से इंसाफ़ की पुकार लगाई जा रही है, लेकिन अतीत के रिकॉर्ड से ज़ाहिर होता है कि इंसाफ़ इस बार भी अपनी चौखट पर दम तोड़ देगा. 

इस फ़ैसलाकुन नतीजे पर पहुंचने की वजह साफ़ है कि दो साल पहले भी 2017 में झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में मॉब लिंचिंग की कई घटना हुई. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आदेश पर जांच कमिटी बैठी, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. प्रशासन क़ातिलों को पकड़ने से ज़्यादा इस घटना के विरोध में हुए प्रदर्शनों में शामिल लोगों को फंसाने में जुटा रहा.

बता दें कि झारखंड में सिर्फ़ गाय के नाम पर ही नहीं, बच्चा चोरी की अफ़वाह पर भी लोग भीड़ का शिकार हुए हैं. ये अफ़वाह इतनी उठी कि झारखंड की सड़कें 11 लोगों के खून से रंग गईं. और इनसे अलग 14 लोग बेरहमी से पीटे गए. ये बात अलग है कि न किसी का बच्चा चोरी हुआ, न किसी थाने में इसकी शिकायत दर्ज हुई और न ही मरने वाला बच्चा चोर था. 

इन घटनाओं के बाद एनएचआरसी ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक डी.के. पांडेय को नोटिस जारी किया. आयोग के नोटिस के बाद एक जांच कमिटी बनाई गई, जिसमें कोल्हान के आयुक्त डॉ. प्रदीप कुमार और डीआइजी प्रभात कुमार शामिल थे. इसकी अध्यक्षता कोल्हान के प्रभारी आयुक्त कर रहे थे. इस जांच टीम को एक महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन इस टीम ने 15 दिन में ही यानी 06 जून, 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. 

सरकार ने इस रिपोर्ट को अभी तक पब्लिक नहीं किया है. लेकिन BeyondHeadlines के पास ये रिपोर्ट मौजूद है, जिसे आरटीआई के ज़रिए हासिल किया गया है. 

रिपोर्ट में बच्चा चोरी की अफ़वाह में मारे गए 9 लोगों का ज़िक्र है, जबकि असल में इस तरह की अफ़वाहों में 11 लोगों की मौत हुई थी. रिपोर्ट में कई अधिकारियों के ट्रांसफर और निलंबन की अनुशंसा भी की गई. मगर इस रिपोर्ट से यह साफ़ नहीं हो पाया कि अफ़वाहें किसने फैलाईं और कितने सुनियोजित ढंग से यह पूरे झारखंड में फैलती रही और क़ानून व्यवस्था के रखवाले इसे रोक पाने में क्यों नाकाम रहे.

झारखंड में जब बच्चा चोरी की अफ़वाह में हत्याएं हो रही थीं, तब 20 अगस्त 2017 को मानगो में ‘मुस्लिम एकता मंच’ नाम के एक संगठन ने विरोध-प्रदर्शन किया था. रिपोर्ट में इस विरोध-प्रदर्शन का ज़िक्र करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा किया गया उपद्रव बताया गया है. साथ ही ‘मुस्लिम एकता दल’ की तुलना इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन से की गई.

जांच दल अपनी अनुशंसा में यह भी कहता है कि, ‘सरकार मुस्लिम एकता मंच पर प्रतिबंध लगाने के बारे में विचार कर सकती है. मुस्लिम एकता मंच कम्यूनल एवं अपराधिक क़िस्म के लोगों का मंच है. आने वाले समय में यह विकराल रूप ले सकती है एवं इंडियन मुजाहिदीन के तर्ज पर हो सकती है.’

भाजपा नेता ने बनाया था मुस्लिम एकता मंच

हैरान करने वाली बात ये है कि मुस्लिम एकता मंच का गठन साल 2016 मार्च में भाजपा के जमशेदपुर अल्पसंख्यक मोर्चा के ज़िला अध्यक्ष आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी ने किया था.

जमशेदपुर के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी झारखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय के क़रीबी हैं. 

मुद्दे से भटकी हुई है ये रिपोर्ट

यह जांच रिपोर्ट इस मायने में हैरान करने वाली है कि यह बच्चा चोरी की अफ़वाह पर केंद्रित न होकर काफ़ी भटकी हुई है. रिपोर्ट में मुस्लिम एकता मंच और राज्य के सभी ज़िलों में पशु बाज़ार को नियंत्रित करना ज़रूरी बताया गया है लेकिन बच्चा चोरी की अफ़वाह के लिए ज़िम्मेदार कौन है, इसका ज़िक्र नहीं मिलता.

बताते चलें कि कोल्हान के आयुक्त डॉ. प्रदीप कुमार की अध्यक्षता में बनी इस जांच कमिटी में क़रीब दो दर्जन घटनाओं में सिर्फ़ 5 को ही अपनी जांच में शामिल किया था. इनमें 11 मई, 2017 को जादूगोड़ा में रिफ़ील टुडू नाम के एक विक्षिप्त व्यक्ति की बच्चा चोर के आरोप में पीट-पीट कर की गई हत्या, 12 मई, 2017 को जादूगोड़ा में ही एक अन्य विक्षिप्त व्यक्ति की बच्चा चोर के आरोप में पीट-पीट कर की गई हत्या, 18 मई, 2017 को सुबह सरायकेला-खारसांवा अन्तर्गत राजनगर थाना क्षेत्र के शोभापुर गांव में चार लोगों की स्थानीय लोगों द्वारा की गई हत्या, 18 मई, 2017 की ही रात्रि में क़रीब 8 बजे पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर ज़िलान्तर्गत बागबेड़ा थाना अन्तर्गत नागाडीह गांव में बच्चा चोरी के आरोप में स्थानीय लोगों द्वारा तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या और 20 मई, 2017 को सुबह मानगो में मुस्लिम समुदाय द्वारा किया गया उपद्रव शामिल था.

स्पष्ट रहे कि झारखंड में बच्चा चोरी की अफ़वाह बीते साल 2017 में अप्रैल के अंतिम सप्ताह से फैलनी शुरू हुई थी. 2 मई को इस अफ़वाह का पहली दफ़ा हिंसक परिणाम देखने को मिला. डुमरिया थाने के बनकाटी में ग्रामीणों ने एक वृद्ध को बच्चा चोर कह बुरी तरह पीट दिया. इसके महज़ 9 दिन बाद 11 मई को जादूगोड़ा और गोलूडीह में दो युवकों को पीटा गया. एक की मौत हुई. इसी दिन आसनबनी में एक दूसरे शख्स पर बच्चा चोर होने का आरोप लगाकर उसे पीट-पीट कर भीड़ ने मार डाला. लेकिन पुलिस इसके बाद भी सतर्क नहीं हुई. 

बता दें कि अब ताज़ा मामले में भी पूरी कहानी को मोड़ने की कोशिश शुरू हो गई है. जिस धातकीडीह गांव में तबरेज़ की पिटाई की गई थी, उसी गांव की महिलाओं ने 30 अज्ञात लोगों पर एफ़आईआर दर्ज कराई है. प्राथमिकी के अनुसार 24 जून की सुबह लगभग 11 बजे चार पहिया वाहन पर चेहरा ढंके लगभग 30 लोग गांव में हथियार लेकर आए और गंदी-गंदी गालियां देने लगे. उन लोगों ने महिलाओं को गालियां देते हुए बम से उड़ाने की धमकी दी. महिलाओं ने गांव में सुरक्षा की मांग करते हुए उन अज्ञात लोगों पर कार्रवाई की मांग की है. आरोप है कि इन वाहन पर एमआईएमआईएम का झंडा व बोर्ड लगा था.  

वैसे आपको लग रहा होगा इन घटनाओं में मेरा क्या जाता है. मरते तो मुसलमान हैं और हाल के सालों में आपको मुसलमानों से नफ़रत करना ही तो सिखाया गया है. याद रखें, ये बीमारी बढ़ी तो इसके शिकार सब होंगे. सिर्फ़ मुसलमानों के घर नहीं जलेंगे, बल्कि पड़ोसी भी इसकी ज़द में आएंगे. 

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि साल 2017 में बच्चा चोरी के नाम पर झारखंड की जिस मॉब लिंचिंग में 11 लोग मारे गए थे, उनमें सिर्फ़ 5 मुसलमान थे, बाक़ी आदिवासी और हिंदू थे. और नागाडीह के उस मामले को कोई कैसे भूल सकता है, जिसमें एक ही परिवार के चार लोगों की जान चली गई. मणिचंद प्रसाद की आंखों के आंसू आज भी सूखे नहीं हैं और न ही उनके आंसू व दर्द को पूरी ज़िन्दगी भूल सकता हूं. इसलिए याद रखें— इंसाफ़ के साथ खड़े नहीं हुए तो देर सवेर नाइंसाफ़ी की आग आपके जिस्म तक ज़रूर पहुंचेगी.

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