बिहार में अगस्त क्रांति और मुसलमान : प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी रहे सबसे सक्रिय

Beyond Headlines
Beyond Headlines 1 View
3 Min Read

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

आज से ठीक 77 साल पहले… 9 अगस्त 1942… ‘करो या मरो’ का पहला दिन…. और बिहार कई दिन पहले ही से नये तेवर में बौराया था. 8 अगस्त की रात ही पटना में सैंकड़ों गिरफ्तार… और सुबह में देश को ब्रिटिश साम्राज्य की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए बुलंदियों की हद तोड़ती आतुरता… और यही जुनून 48 घंटे बाद फिरंगी राज के प्रमुख प्रतीक (पुराना सचिवालय) पर तिरंगा लहरा देता है. सात नौजवान छात्र शहीद और फिर पूरे देश में आंदोलन की आग…

बता दें कि1942 में इस आन्दोलन शुरू होने से कुछ दिनों पहले ही बिहार सरकार ने सभी ज़िला मजिस्ट्रेटों के पास ऐसे लीडरों की सूची भेज दी थी, जिनके बारे में वो समझती थी कि इनका आन्दोलन संचालित करने में अहम रोल होगा.

उसने इस सूची को ‘ए’ और ‘बी’ दो हिस्सों में तैयार किया था. सूची —‘ए’ में उन लीडरों का नाम दर्ज था, जो काफ़ी अहम थे. इस सूची में 125 लीडरों के नाम दर्ज थे. और इन 125 लीडरों की सूची में सिर्फ़ तीन मुसलमान नेता शामिल थे.

इसमें सबसे अहम नाम प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी का था. इनके अलावा एस.एच. रज़ी उर्फ़ रज़ी अज़ीमाबादी और जहानाबाद काको के रियासत करीम का नाम शामिल था. ख़ास बात ये है कि अंग्रेज़ों का ख़ास ध्यान इन्हीं तीनों की तरफ़ सबसे ज़्यादा था, क्योंकि उन्हें पता था कि इन तीन के पीछे पूरे बिहार के मुसलमान खड़े हैं और प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी का दबदबा तो पूरे देश के मज़दूरों पर है.

बिहार के प्रसिद्ध इतिहासकार के.के. दत्ता के मुताबिक़ ‘करो या मरो’ नारे के साथ प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी 1942 की इस क्रांति में सबसे अधिक सक्रिय रहे. सिंहभूम ज़िला में श्रमिकों के बीच कई छपे हुए इश्तेहार बांटे जा रहे थे. इसमें हड़ताल जारी रखने और अधिक उत्साह के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने की अपीलें की जा रही थीं…

इतना ही नहीं, इस ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी ने जैसे ही सक्रिय होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बग़ावत का बिग़ुल बजाया, तुंरत उन्हें बन्दी बनाकर जेल भेज दिया गया. 1944 के आख़िर में उन्हें हेल्थ ग्राउंड पर जेल से रिहा कर दिया गया. इसकी जानकारी खुद बारी साहब के ज़रिए दिल्ली में रहने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल को 30 मई, 1946 को लिखे एक पत्र से होती है.

दरअसल, अगस्‍त क्रांति से ही अंग्रेज़ों की वापसी की उल्टी गिनती शुरू हुई थी. ये आन्दोलन भारत से ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की अंतिम और निणार्यक लड़ाई थी.

Share This Article