क्या कुलभूषण जाधव को न्याय मिल पाएगा?

Beyond Headlines
6 Min Read

Rajiv Sharma for BeyondHeadlines

पाकिस्तान ने हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत के आदेश के मुताबिक़ पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को राजनयिक मदद या काउंसर एक्सेस देने के बात तो मान ली है, लेकिन उसके साथ एक ऐसी शर्त भी लगा दी जो भारत को मंज़ूर नहीं.

ख़बरों के मुताबिक़ पाकिस्तान से जो प्रस्ताव भारत आया है उसमें कहा गया है कि कुलभूषण यादव से मुलाक़ात के समय दो भारतीय ही नहीं, एक पाकिस्तानी राजनयिक भी साथ मौजूद रहेगा. भारत को यह मंज़ूर नहीं है.

पाकिस्तान के मुताबिक़ कुलभूषण एक ख़ुफिया एजेंट हैं जो पाकिस्तान में आतंक फैला रहा था, जबकि भारत का कहना है कि 49 वर्षीय पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव एक रिटार्यड नौसेना अधिकारी हैं जो अपने कारोबार के सिलसिले में ईरान में थे और उन्हें वहां अगवा करके पाकिस्तान लाया गया और फिर उन पर जासूसी और आतंक फैलाने के आरोप लगाकर उन्हें पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने मौत की सज़ा सुना दी.

पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को काउंसलर ऐक्सेस मुहैया करवाने का प्रस्ताव भारत को दो अगस्त को ही भेजा था, लेकिन वहां पाकिस्तानी अधिकारी की मौजूदगी की शर्त होने की वजह से भारत ने उसे नामंज़ूर कर दिया. अब देखना यह है कि यह काउंसलर ऐक्सेस मिलती कब है.

भारत चाहता है कि जब कुलभूषण जाधव से भारतीय राजनयिक की मुलाक़ात हो तो वहां कोई पाकिस्तानी अधिकारी मौजूद न रहे. क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने काउंसर ऐक्सेस के बारे में आदेश देते हुए इस बारे में कुछ नहीं कहा था कि यह मुलाक़ात कैसे होगी, इसलिए पाकिस्तान ने यह शर्त लगा दी कि जब भारतीय राजनयिक कुलभूषण जाधव से मिलेंगे तो वहां एक पाकिस्तानी अधिकारी भी मौजूद रहेगा.

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने विएना संधि के तहत यह फैसला सुनाया था और जेनेवा समझौते के तहत कहा था कि पाकिस्तान जेल में बंद कुलभूषण जाधव को काउंसलर ऐक्सेस सहित सभी ज़रूरी सुविधाएं मिलनी चाहिए. हालांकि इस आदेश में इस बात का भी ज़िक्र है कि यह मुलाक़ात जिस देश में होनी है, उसमें वहां के क़ानूनों का भी ध्यान रखा जाएगा.

वैसे इससे पहले भारत पाकिस्तान से 16 बार कुलभूषण जाधव को काउंसर एक्सेस या राजनयिक मदद मुहैया कराने की गुजारिश कर चुका है, लेकिन पाकिस्तान ने एक बार भी उसका जवाब नहीं दिया. हां, एक बार ग्लास लगाकर पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव से उसकी मां और पत्नी की मुलाक़ात ज़रूर करवाई. तब भी वहां पाकिस्तान के अधिकारी मौजूद थे और उन्होंने जाधव की मां और पत्नी से बहुत बुरा सुलूक किया था. यहां तक कि उनकी माथे की बिंदी, मंगल सूत्र और जूते तक उतरवा लिए गए थे.

मुलाक़ात के बाद भी जाधव की पत्नी को जूते यह कहकर नहीं लौटाए गए कि इनकी जांच होनी है. उस मुलाक़ात से यह बात भी सामने आई थी कि जब यह मुलाक़ात हुई थी तब जाधव बिल्कुल भी सामान्य दिखाई नहीं दे रहे थे. कई जगह तो इस तरह की ख़बरें भी आईं कि जाधव न सिर्फ़ असामान्य दिख रहे थे, बल्कि उनकी चोटों को भी छिपाने की कोशिश की गई. जो जाधव पाकिस्तान की सैन्य अदालत से फांसी की सज़ा पाकर जेल में बंद हैं उन्हें बहुत अच्छी तरह रखा गया होगा या उन्हें कुछ सुविधाएं दी गई होंगी, इस बात को तो पाकिस्तान के पिछले इतिहास से भी समझा जा सकता है.

भारत सरकार इस मसले को हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी इस मजबूरी में ही लेकर ही गई थी कि उसे पाकिस्तान सरकार से किसी तरह के सहयोग की उम्मीद नहीं थी. वैसे पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जिस आरोप में कुलभूषण जाधव को फांसी की सज़ा सुनाई है, वह भी सुनने में बड़ा अजीब और किसी तरह से भरोसे लायक नहीं लगता.

आख़िर एक रिटायर्ड नौसेना अधिकारी जासूसी या आतंक फैलाने का काम क्यों और कैसे करेगा? इसलिए ज्यादा बड़ा सच यही लगता है कि कुलभूषण जाधव अपने कारोबार के सिलसिले में ईरान में ही थे और उन्हें वहां से अगवा करने के बाद उन पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी गई. यदि पाकिस्तान का रवैया न्यायपूर्ण होता तो वह इस संबंध में भारत से भी संबंध साधता और फांसी की सज़ा सुनाने से पहले जाधव को अपना पक्ष रखने का मौक़ा देता.

अब जब पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को काउंसलर ऐक्सेस मुहैया कराने की बात मान ली है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कुलभूषण जाधव को न्याय मिल पाएगा? वे अपने को पाक-साफ़ साबित करके सुरक्षित अपने देश लौट पाएंगे? यह बात तो शीशे की तरह साफ़ है कि कोई पूर्व नौसेना अधिकारी आख़िर जासूसी या आतंक फैलाने का काम क्यों करेगा? इसका यह मतलब भी नहीं है कि विभिन्न देश एक-दूसरे के ख़िलाफ़ जासूसी नहीं करते या कराते, लेकिन एक पूर्व नौसेना अधिकारी आख़िर इस काम में क्यों शामिल लगेगा या लगाया जाएगा? इसलिए यह किसी को अगवा करने और उस पर झूठे आरोप लगाकर फांसी की सज़ा देने का मामला ही ज्यादा लगता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न अख़बारों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखते रहे हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

Share This Article